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अङ्गतिः
१४
अङ्गारिका
अङ्गतिः (स्त्री०) यान, सवारी।
अङ्गविधिः (पुं०) शरीर क्रिया। अङ्गदः (पुं०) अङ्गद राजा। (जयो० ७/८७)
अङ्गवीरः (पुं०) नायक, प्रधान। अङ्गदं [अंग दायति धति वा] आभूषण विशेष, भुजा में पहनने अङ्गस् (पुं०) [अ +असुन्-कुत्वम्] पक्षी। का आभूषण। ०बाजूवंद: बाहु का अलंकरण।
अङ्गसंस्कारः (पुं०) शरीर क्रिया, देहालंकरण। अङ्गदेशाधिपतिः (पुं०) अङ्गदेश का राजा। (जयो० ६/५१) अङ्गसंहतिः (स्त्री०) अङ्गशक्ति, शारीरिक बल। अङ्गना (स्त्री०) [प्रशस्तं अङ्ग अस्ति यस्याः , अङ्ग+न+टाप्] | अङ्गसंपर्कः (पुं०) संभोग, आलिङ्गन। ०देह लीला, ०मैथुन।
स्त्री, वनिता, रमणी। (सुद० १० ८३) जीवन संगिनी। | अङ्गसंसर्गः (पुं०) अङ्गसङ्ग, अङ्गसंपर्क, मैथुन, संभोग। अङ्गनानुकरणप्रतिपत्तेः। (जयो० ४/३४)
अङ्गस्पर्श, शरीरालिंगन। (जयो० १३/९०) अङ्गनाकुलं (नपुं०) स्त्री समूह। (जयो० १३/३८)
असारः (पुं०) शरीरप्रभा, देहकान्ति। (वीरो० १/३) अङ्गन्यासः (पुं०) अङ्गस्पर्श, मन्त्र द्वारा शरीर स्पर्श। अङ्गसेवकः (पुं०) निजी भृत्य। ०अंग रक्षक। अङ्गपालिः (स्त्री) रेखा परम्परा, आलिंगन। (जयो० २३/२५) | अङ्गस्थ (वि०) शरीरस्थ, देहजन्य। (भक्ति सं० पृ० ३०) ___ कुलैस्तमालीभवदङ्कपाली (जयो० २३/२५)
अङ्गस्फालन (वि०) अङ्गविक्षेप, स्फीत्कर, अङ्गस्फुरण, शरीर अङ्गभागः (पुं०) अङ्गाश, शरीर भाग। (सुद० १०१) प्रयुक्तये स्पंदन। (जयो० वृ० २७/१८) __साम्प्रतमङ्गभागः। (सुद० १०१)
अङ्गाख्यः (पुं०) आचारांग आदि अंग आगम (वीरो० २२/६) अङ्गभूः (पुं०) पुत्र, कामदेव। (सुद० ४/९)
शरीर सम्बंधी निरुपण। अङ्गमन्त्रं (नपुं०) शरीर मन्त्र।
अङ्गाङ्गः (पुं०) शरीर, देश। अङ्गेति मृदु-भाषणे। (जयो० १५/१६) अङ्गमतिः (वि०) एकादश वेत्ता मसकपूरण यति। (जयो० २३/८७) अङ्गाङ्गिन् (नपुं०) शरीर और आत्मा। अङ्गाङ्गिनारेकयनुदेऽथ अङ्गमर्दः (पुं०) देहमर्दन, मालिश। उपटन, संबाहन।
घाणी। (समु० १/५) अङ्गमर्दिन् (पुं०) मालिश।
अङ्गातिग (वि०) अंगवर्जित, शरीर रहित। (जयो० २/१५७) अङ्गमर्षः (पुं०) गठिया रोग। गांठ देहागत मस्सा।
अङ्गातीत (वि०) आत्मीय, निजीय, स्वकीय। (जयो० वृ० अङ्गरक्षकः (पुं०) सेवक, व्यक्तिगत सेवक, शरीर रक्षक। ११/१००) अङ्गरक्षणं (नपुं०) किसी व्यक्ति की रक्षा।
अङ्गाधिपतिः (पुं०) अङ्गदेशाधिपति। (जयो० ६/५१) अंग अङ्गरक्षणी (स्त्री०) कवच, पोशाक।
देश का राजा। अङ्गरागः (पुं०) सुगन्धित लेप। (जयो० १४/६४)
अङ्गाभिधानः (पुं०) अङ्गदेश (सुद० १/१५) अङ्गरागी (पुं०) प्रियतम। (जयो० २३/८९) ललनाऽऽलिङ्गन- अङ्गान्तरितं (नपुं०) एक्सरे यंत्र (वीरो० २०/८) मगरागिणा।
अङ्गायित (वि०) अङ्गगत। (सम्य०५८) अङ्गलता (स्त्री०) शरीर वल्लरी। प्रागेवाङ्गतायाः पल्लविता। अङ्गारः (वि०) अङ्गार, बह्निस्फुलिङ्ग। (जयो० ६/५१) (जयो० १/९१)
अङ्गारं (नपुं०) अङ्गार, अग्निखण्ड। अङ्गवत् (वि०) प्राणिजन्य (सुद०४/३०)
अङ्गारकः (पुं०) [अङ्गार+स्वार्थेकन्] कोयला। अङ्गवत्त (वि०) आत्मीय भाव, निजभाव।
अङ्गारकं (नपुं०) बह्निकण। (जयो० १६/२४) अङ्गवान् (वि०) अङ्गवाला, शरीर युक्त। मृदु-चन्दन- चर्चितङ्ग- अङ्गारकभावः (पुं०) वह्निकणभाव। अङ्गारकाणां वह्निकणानां वानपि। (सुद०३/७)
भावः। (जयो० १६/२४) अङ्गविकल (वि०) अपाहिज, पङ्गः मूर्छित, अङ्गशून्य। अङ्गारकित (वि०) [अङ्गारक्+इतच्] झुलसा हुआ, भुना हुआ। अङ्गविकृतिः (स्त्री०) अवसाद, शरीर विकार, मिरगी। अङ्गारतुल्य (वि०) अंगारे के समान। (वीरो० ६/२७) अङ्गविकारः (पुं०) शारीरिक दोष, देहकष्ट।।
अङ्गारिः (स्त्री०) [अङ्गार-मत्वर्थेठन् पृषो-कलोप] अंगीठी, अङ्गविक्षेपः (पुं०) अङ्गसंचलन, शरीर गति, देहचेष्टा।
कांगड़ी। अङ्गविद्या (स्त्री०) शरीर सम्बन्धी शास्त्र। काय चिकित्सा, | अङ्गारिका (स्त्री०)[अङ्गार-मत्वर्थे ठन्-कप्-च] अंगीठी, अष्टांग क्रिया सम्बंधी ग्रन्थ।
हसन्ती, कांगड़ी। (जयो० २२/८)
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