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उपायकर्त
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उपास्तिः
परोऽस्त्युपाय:' (भक्ति० पृ० २५) उपायत:-प्रधान/साधन
से-(सम्य० १५/१) में 'उपाय' का अर्थ साधक भी है। उपायकर्तृ (वि०) प्रयत्नशील, उपाय करने वाले। 'अनेक
धान्यार्थमुपायकोंमहत्सु' (सुद० २/२९) उपायनं (नपुं०) [उप+अय्+ल्युट्] १. उपहार, भेंट, प्राभृत,
पारितोषिक, पुरस्कार। 'उचितोपायनपावनोत्सव' (जयो० २०/३३) २. अपहारक, निकटस्थ स्थान बनाना। 'जगतां तृडुपायनोऽपि कूप:' 'किमु नो वारिदवारि दक्षरूप:' (जयो०
१२।८६) उपायनी (वि०) उपहार देने योग्य। (जयो० ११/६५) उपायनीकृत्य (सं०कृ०) उपहार देकर, भेंट देकर। जगन्ति
जित्वात्रिभिरवशेषावुपायनीकृत्य पुनर्विशेषात्' (जयो०
११/६५) उपायपदं (नपुं०) योग्यस्थान, समुचित पद। 'वञ्चिताः स्म
किमुपायपदे ते' (जयो०४/१०) उपायपर: (पुं०) उपाय/प्रयत्न में तत्पर। 'तत्कृत्यमित्थं च । ___ तदित्युपायपदो नरोऽयं भविता सुखाय।' (जयो० २७/५८५) उपाय-सञ्जात (वि०) प्रयत्न को प्राप्त हुआ। (जयो० वृ०३/१०) उपायान्तर (वि०) प्रयत्न बिना भी। (हित०१४) उपारब्ध (वि०) प्रारम्भ करने वाली। (सुद० १३३) उपारब्धवती (वि०) प्रारम्भ करती हुई। उपारम्भः (पुं०) [उप+आ+र+घञ्] प्रारम्भ, समारम्भ,
उपक्रम, शुरू! उपार्जनं (नपुं०) [उप+अ+ ल्युट्] कमाना, लाभ उठाना।
(जयो० ३/१) उपार्जित (वि०) कमाया गया. संचित किया गया, लाभ लिया
गया। श्मसानमासाद्य कुतोऽपिसिद्धिरुपार्जिताऽनेन सुमित्र
विद्धि।" (सुद० १०७) उपार्थ (वि०) अल्प मूल्य वाला। उपालम्भः (वि०) [उप+आ+लभ+घञ्] उलाहना, निन्दा, |
गर्दा, द्वेष, दुर्वचन, व्यापाय। (जयो० वृ० ८/२४)
उपालम्भः सपिपास-वचनैः शिक्षा (जैन०ल० २८) उपालम्भिन् (वि०) मारपीट, बन्धन, दुर्वचन वाला। बन्धस्य
हेतुत्वमुपैत्यसो योपालम्भिनश्चौर्यमिवात्र दस्योः। (सम्य०
२७) उपावर्तनं (नपुं०) [उप+आ+वृत्+ ल्युट्] १. लौटना, मुड़ना,
वापिस होना। २. परावर्तन, परिभ्रमण, घूमना, हिंडन, परिहिंडन।
उपाद्रिय् (सक०) स्वीकार करना, अंगीकार करना।
'शालिकालिभिरूपाद्रियते वा' (जयो० ४/५७) उपाश्रमं (नपुं०) स्थान, आश्रय, आधार। (जयो० १३/६०) उपाश्रयः (पुं०) [उप+आ+श्रि+अच्] १. आश्रय, आधार,
अवलम्बन। २. पात्र पाने योग्य, ३. निर्भर रहना, आधीन होना। ४. समवसरणा 'नाभेयस्योपाश्रय समवसरण नाम'
(जयो० वृ० २६/४२) उपाश्रय् (सक०) आश्रय लेना, आधार बनाना, अवलम्बन
करना (उपाश्रयन्- मुनि० ८) उपाश्रयन्त (सुद० ११८) उपाश्रयति (जयो० २/९) ज्ञानेन नानन्दमुपाश्रयन्तश्चरन्ति
ये ब्रह्मपथे सजन्तः।' (वीरो० १/६) उपाश (वि०) अभिलाष युक्त, प्राप्ताभिलाषी। 'पुरा सरोजेषु
मयेत्युपाशः' (जयो० ११/४५) उपासकः (पुं०) [उप+आस्+ण्वुल] १. श्रावक, व्रत ग्रहण
करने वाला, ग्रहस्थ। (जयोल १/११३) उपाशकदशा (स्त्री०) श्रावक आवस्था। उपासकाः श्रावकाः,
तद्गतक्रियाकलापनिबद्धदशाः, दशाध्ययनोपलक्षिता:
उपासकदशा। (जैन०ल० २८१) उपासक-सूत्रं (नपुं०) उपासकाध्ययन। (हि०सं०२५) उपासकाचारः (पुं०) श्रावकों के आचार-विचार। नोपासकाचार
विचारलोपी' (वीरो० ११२९) उपासका नामधीति: (स्त्री०) उपासकाध्ययन। (जयो० २/४५) उपासकाध्ययनं । नपुं०) उपासकाचार, श्रावकाचार के गुणों
का चिन्तन। 'उपासकाध्ययने श्रावकधर्मलक्षणम्'
(स.वा०१/२०) उपासद् (सक०) मिटा लेना, शान्त कर लेना।
'जातुवृत्तिमुपासदत्' (समु० ९/११) उसासनं (नपुं०) [उप+आस्+ल्युट्] १. सद्भाव, दया, करुणा।
२. अर्चन, पूजन, आदर. आराधना मनन-चिन्तन। उपासा (स्त्री०) [उप+आस्। अ+टाप्] आराधना, सेवा, आदर,
सम्मान! * पूजा। उपासना (स्त्री०) [उप+आस्+युच्] १. आराधना, अर्चना,
पूजा, १. सद्भाव, समादर, धार्मिक मनन-चिन्तन। (जयो०
१५/६९) उपासनाविधिः (स्त्री०) पूजन सामग्री। (दयो० ८३) उपास्तमनं (नपुं०) रवि का अस्त होना। उपास्तिः (स्त्री०) [उप+आस्+क्तिन्] आराधना, उपासना,
सेवा, पूजा, अर्चना।
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