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उपहस्
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उपात्तप्रतिपत्तिः
पकड़ना, दबोचना। २. निकट आना। ३. बांटना, वितरित उपांशु-पांसुल (वि०) अतिशयरेणु व्याप्त। (जयो० वृ० ३/१११) करना. भोजन देना।
उपाकरणं (नपु०) [उप+आ+कृ+ ल्युट्] सन्निकट लाना, आरम्भ उपहस् (अक०) उपहास करना, व्यंग करना, निन्दा करना। के लिए निमन्त्रण। १. उद्यत, आरम्भ, उपक्रम। उपहसित (भू० क० कृ०) [उप+हस्+क्त] उपहास करना, उपाकर्मन् (नपुं०) [ उप+आ+कृ+ मनिन् ] उपक्रम, अनुष्ठान। भर्त्सना किया गया, निन्दित किया गया।
उपाकृत (भू० क० कृ०) [उप+आ+ कृ+ क्त] आरम्भ, कार्य उपहस्तिका (स्त्री०) [उपहस्त+कन्+टाप्] पान-दान, एक किया गया, प्रयत्नशील। पात्र, जिसमें ताम्बूल रखा जाता है।
उपाक्षम् (अव्य०) नेत्राभिमुख, नयन सम्मुख, निज सम्मुख। उपहारः (पुं०) [उप+ह+घञ्] १. भेंट, प्राभृत, आहूति। (वीरो० उपाख्यान (नपुं०) [उप। आख्यिा ल्युट्] लघुकथ, गल्प,
२/३६) २. परितोषिक-'मनो ममैकस्य किलोपहारो' (जयो० कथा, आख्यायिका। ३/९७) 'किलोपहारं पारितोषिकं भविष्यति।' (जयो० ५/९७) उपागमः (पुं०) [उप+आ+गम्+अप्] पहुंचना, आना, निकटता उपहार को 'उपायनी' भी कहते हैं। (जयो० ११/६५) ३. को प्राप्त होना, घटित होना। २. प्रतिज्ञा, स्वीकृति। कर, क्रय-विक्रय कर। 'करत्वे उपहाररूपेण कलितं' उपाग्रं (नपुं०) निकट, पास, समीप। (जयो० वृ० ५/७६)
उपाग्रहणं (नपुं०) [उप+आ+ ग्रह् + ल्युट्] ज्ञानोपर्जन, अभ्यास, उपहारलेश: (पुं०) परितोषकोश, उपहार भाग। सुमस्थवार्विन्दुदला- विशेष ग्रहण। ____ पदेशं मुक्तामयन्तेऽप्युपहारलेशम्।' (वीरो० ४/१८) उपाङ्गं (नपुं०) उपभाग, उपशीर्षक, अवयव, शरीर के हस्त उपहारिन् (वि०) [उपहार+णिनि] भेंट प्रस्तुत करने वाला, पैरादि अंग।
वस्तु प्रदाता, प्राभृतदाता, पारितोषिक प्रस्तुतकर्ता। 'पुनरपरं, उपाङ्गिन् (वि०) अंगवाली। (जयो० ५/७) रूपबलोपहारिणं' (जयो० २/१५५)
उपाचारः (पुं०) [उप+आ+च+घञ्] १. रोग निदान, कार्यविधि। उपहारीकृत (वि०) उपहार देने वाला, भेंटदाता। (जयो० उपाजगाम (भूतकालिक प्रयोग) समागत, प्राप्त हुआ। ३/९४)
कश्चिदुपाजगाम' (जयो० १/७७) उपहारीकृत्य (सं०कृ०) उपहार देकर, पारितोषिक प्रदान करके। । उपाजे (अव्य०) आश्रय, सहारा, यह 'कृ' धातु के साथ ही। (जयो० वृ० ३/३६)
उपाञ्चित (वि०) समागत, प्राप्त (समु० ७/२) उपहासः (पुं०) [उप+हस्+घञ्] अट्टहास, परिहास, व्यंगपूर्ण उपाञ्जनं (नपुं०) [उप+अ+ ल्युट्] लीपना, मलना, पोतना, हास।
सफेदी करना। उपहासक (वि०) [उप+हस्+ण्वुल्] हास्य करने वाला। उपात् (भू०) पड़े हुए, रखे हुए, गिरे हुए। (सुद० २/४७) उपहासकः (पुं०) विदूषक, जोकर।
उपात्तः (वि०) १. पूर्वोपाजित, 'उपात्तपापोच्चयसम्विलोपी' उपहास्य (सं०कृ०) हंसी उड़ाने वाला।
(समु०६/३२) २. आरोपित 'शृङ्गोपात्त-पताकाभिराह्वयन' उपहित (वि०) [उप+धा+क्त] १. रखा गया, निक्षिप्त, प्रस्तुत (जयो० ३/७४) उपात्ता-आरोपिता-'उपात्त-सम्यक्त्वगुणो
किया, युक्त। 'चपलतोपहितचेता' (सुद० १/४३) २. रुपूर्तीन्'। (सम्य० ५८) तिरोभूत, अभिभूत, आच्छादित, तिरोहित। 'ध्रुवाव्युपहितान्यपि उपात्तजाति: (स्त्री०) उपलब्ध जाति। (वीरो० ११/२३) भोगभुवा तु वा' (जयो० ९/९८)
उपात्तजातिस्मृतिः (स्त्री०) प्राप्त जाति का स्मरण। उपहितचेता (वि०) आच्छादित चित्त वाला। (सुद० १/४८) उपात्तढंग (वि०) समीचीन विधि। (सम्य० २९) (वीरो० उपहतिः (स्त्री०) [उप+हे+क्तिन्] आह्वान, निमंत्रण, आमन्त्रण,
११/२३) बुलावा।
उपात्त-तामस (वि०) तामसता रखने वाला, तमोगुणयुक्त उपह्वरः (पुं०) [उप++घ] एकाकी स्थान, शून्यस्थान।
(जयो० २/१०९) 'राक्षसाशनमुपात्त-तामसं उपह (सक०) [उप+ह] धारण करना, रखना, ग्रहण करना। उदात्ततोरणः (पुं०) तोरण वृक्ष को प्राप्त। (जयो० २४/५०)
'मुक्तादंतौ च ता उपजहार नृपाययुक्ताः ' (समु० ४/३८) उपात्तप्रतिपत्तिः (स्त्री०) अन्यथानुपत्तिरूप अवयव, 'अनुमानाङ्ग उपांशु (अव्य०) [उपगता अंशवो यत्र] (जयो० ३/१११) रूप प्रतिपत्ति' 'उपात्ता संलब्धा प्रतिपत्तिः प्रगल्भता येन सः'
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