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उदन्तवान्
१९७
उदार
उदन्तवान् (वि०) निकली हुई। (सुद० २/४३६) उदपूर (वि०) आच्छादित। (सुद० २/११) उदभूत (वि०) समुच्छलत्तरङ्ग। (जयो० ५/३४) उत्पन्न हुई।
२. फैलना, बढ़ना, उदय होना। २. ढकना, आवरण
करना। ३. उछल-कूद (जयो० २/५७) उदयः (पु०) [उद्।इ. अच्] १. उगना, वृद्धि (सुद० २/४४)
निकलना, फैलना, निष्पन्न होना। (सुद० २/४४) 'या नाम पात्री सुकृतोदयानाम्' (सुद० २/१०) २. फलदेनाकर्मों का परिपाक समयानुसार अपना फल देता है। (सम्य० १/१) जयोदय, वीरोदय, दयोदया 'उदीर्य कर्मानुदयप्रणाशात्तदग्रतोबन्धविधेः समासात्।' (समु०८/१७) 'कर्मणो विपच्यमानस्य फलोपनिपात उदय' (त० वा० २/१) 'द्रव्यादि
कर्मवशात् कर्मणः फल प्राप्तिरूदय:।' (त० वा०६/१४) उदय (अक०) उत्पन्न होना, उदित होना, निकलना, फैलना।
'उदयन्ती समुदयं गच्छतीति' (जयो० ६/४३) उदयत्
(सुद०३/२) उदयगिरिः (पुं०) भवनस्थान। (जयो० १०/८२) उदयनः (पुं०) उदयन राजा, कौशाम्बी का शासक। उदयनं (नपुं०) [ उद्। इ+ल्युट्] उगना, निकलना, फैलना। उदयाङ्करः (पुं०) उदय का प्रादुर्भाव, वृद्धिभाव। (जयो० २२) उदयाद्रिः (पुं०) उदयाचल। (समु० ३/११) (सुद० ७८) उदयि (वि०) उदय को प्राप्त, अभ्युदय को प्राप्त, उत्कर्षगत। ___ 'उदयोऽस्यास्तीत्युदयि' (जयो० वृ० ५/१०) उदयिनी (वि०) उदयप्राप्त। उदरं (नपुं०) उदर, पेट। 'इहोदयोऽभूदुदरस्य यावत्' कुक्षि
(सुद० २/४१) 'तस्याः कृशीयानुदरो जयाय' (सुद० २/४३)
उदराम् (सुद० २/५०) उदरस्य (सुद० २/४०) उदर-गह्वरं (नपुं०) गभीरतरनाभिकुहर। (जयो० वृ० १४/६८) उदर-क्षणं (नपुं०) उदर प्रदेशं (सुद० ३/२) उदरत्राणं (नपुं०) वक्षस्त्राण, चोली, कबच, अंगिया। उदरचुम्बिचीरः (पुं०) स्वच्छ चादर। (सुद० २/११) उदरपूर (नपुं०) भरपूर उदर, भरा हुआ पेट। उदरपूर्तिः (स्त्री०) पेट पूर्ति। (दयो० ३/९) उदरपोषणं (नपुं०) पालन पोषण, भरण-पोषण। उदर-विकारः (पुं०) पेट रोग, उदर व्याधि। उदररिन् (वि०) तोंद वाला, उभरे हुए पेट वाला। उदराध:स्थित (वि०) रेखात्रय, त्रिबलि। (जयो० ३/६० उदरिणी (वि०) गर्भिणी स्त्री। (सुद० २/४९) उदर सम्बन्धी
'मुक्तात्मभावोदरिणी जवेन' (सुद० २/४२)
उदरोद्भवः (पुं०) स्वतनय, पुत्र। (जयो० २/१५२) उदर्कः (पुं०) [उद्+अ+घञ्] १. जलाशय स्मासाद्य
तत्पावनमिङ्गितञ्च तयोरुदर्क सुरभि समञ्चत्।' (सुद० २/२८) २. फल, परिणाम। ३. भविष्यकाल, उत्तरकाल, भाविफल। 'अर्कश्चक्रवर्तिसुतस्तु जयश्च' (जयो० ८४८३) 'अर्कश्चक्रवर्तिसुतस्तु उदकं भाविफलं किं स्यात्' (जयो० वृ० ८८८३) ४. प्रचण्ड सूर्य-संतापकर सूर्य 'उदर्कमुद्धतं
सन्तापकरं सूर्यं भाविवृत्तान्तश्च अनुयाति' (जयो० ४/५८) उदर्कवश (वि०) परिणाम वश, निमित्त से। मृत्वा ततः
कुक्कुरतामुपेतः किञ्चिच्छुभोदर्कवशात्तथेतः।' (सुद० ४/१८) उदाङ्कः (पुं०) गोद। (दयो० ४८) उदर्चिस् (वि०) [ऊर्ध्वमर्चिः शिखाऽस्य] चमकने वाला, ___ दीप्तिमान, प्रभायुक्त। उदर्चिस् (पुं०) १. अग्नि, आग, वह्नि। २. कामदेव, शिव। उदर्थित (वि०) व्यर्थीकृत। (जयो० ४/२०) उदलवः (पुं०) जलांश, जलकण, जलराशि। 'आशासितेति
वदनोदलवैश्च शस्यैः।' (जयो० १६/७५) उदवमत्सा (वि०) उगल दिए, निकाल दिए। 'कुटुमत्वेत्युदवमत्सा
रुग्णा' (सुद० ८९) उदवसितं (नपुं०) [उद्+अव+सो+क्त] आवास, गृह, स्थान। उदश्रु (वि०) [उद्ग तान्यश्रूणि यस्य] फूट फूटकर रोने वाला,
__ अश्रु गिराने वाला। उदसनं (नपुं०) [उद्+अस्+ल्युट्] फेंकना, निकालना, उगलना,
गिराना, छोड़ना। उदात्त (वि०) [उद्+आ+दा+क्त] १. गम्भीर, उच्च, उन्नत,
तीव्र। (जयो० १०/१८) २. प्रतिष्ठित, भद्र। ३. उदार
प्रसिद्ध, विख्यात, महान्। उदात्त-निनादः (पुं०) गम्भीर ध्वनि, उच्चस्वर, प्रचण्डध्वनि।
'तदुदात्तनिनादतो भयादपि' (जयो० १०/१८) 'आनक
प्रचण्डध्वानत' (जयो० वृ० १०/१८) उदात्तवृत्तं (नपुं०) विख्यात चरित्र, श्रेष्ठ चरित्र। (समु०
१/२९) 'श्रीपद्मखण्डे नगरे सुदत्त-नामा विशामीश
उदात्तवृत्तः।' (समु० १/९) उदानः (पुं०) [उद्+अन+घञ्] १. श्वांस लेना, ऊपर की
ओर श्वांस लेना। २. पंच प्राणों में से एक प्राण। उदानवायु (पुं०) ऊपर की ओर जाने वाली वायु। उदायुध (वि०) आयुध युक्त, शास्त्रधारक। उदार (वि०) [उद्+आ+रा+क] १. विशाल, उन्नत, श्रेष्ठ,
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