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उत्सेकिन
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उदन्वत्
(जैन० ल० २५५) २. अहंकार, अभिमान, घमण्ड। उदक-भारः (पुं०) जल वाहक। अहंकारतोत्सेकः ( स० सि० ५/२६)
उदकल: (पुं०) जलाशय, तालाब। उत्सेकिन (वि०) [उत्सेक्+इनि] १. अत्यधिक, बहुत, पर्याप्त। उदक-शाक (नपुं०) जलीय वनस्पति शैवाल। २. अहंकारी, अभिमानी। ३. उमड़ने वाला।
उदकस्पर्शः (नपुं०) जल स्पर्श। उत्सेचन (नपुं०) [उद्+सिच् ल्युट] सिंचन, अभिसिञ्चन, उदकेचरः (पुं०) जलचर जीव, जलीय प्राणी। फुहार अभिषेक।
उदक्त (वि०) [उद्+ अञ्ज+क्त] उठाया हुआ, ऊपर उठा उत्सेधः (पुं०) [उद्+सिध् घन] उन्नत, ऊँचाई, मोटाई।
हुआ। उत्सेधागुलं (नपुं०) आठ यवमय विशेष, यवैरष्टभिरङ् । उदक्य (वि०) [उदकमर्हति] रजस्वला स्त्री। गुलम्-उत्सेधाङ्गु लमेतत्' (हरि०पु०७/४०)
उदग्र (वि०) [उद्गतमग्रं यस्य] उठा हुआ, उन्नत शिखर उत्स्मयः (पुं०) [उद्+स्मि+अच्] मुस्कराहट, हास, मंद मंद ___ वाला, लम्बा, अत्युच्चैर्गत, ऊँचाई। (जयो० १४/२७) हसन।
उदग्र-शुम्बस्थ (वि०) अग्रकाण्ड। (जयो० १४/३७) उत्स्वन (वि०) ०उच्च स्वर युक्त ०उच्च स्वर करने वाला उदग्रशाखा (स्त्री०) नवपल्लव, कोमलाग्र भाग। 'उदग्रशाखा ऊँची ध्वनि, उच्च-रव।
नवपल्लवानि' (जयो० १३/१११) 'उच्चैर्गतायां शाखायां' उत्स्वेदः (पुं०) उर्ध्व से निःसृत/ऊँचाई से निकली। वाष्प युक्त (जयो० १४/३८)
स्वेद। 'उत् उर्ध्वं निर्गच्छता वाष्पेण यः स्वेदः स उत्स्वेदः। उदङ्कः (पुं०) [उद्+अञ्च्+घञ्] चर्मपात्र। (जैन०ल० २५५)
उदच्/उदञ्च् (वि०) [उद्+ अञ्च्+क्विप्] ऊपर की ओर मुड़ा उत्स्वेदिमः (पुं०) उर्ध्व से निकले हुए पसीने का वाष्प।
हुआ, ऊपर जाता हुआ। उद् (उपसर्ग) [उ+क्विप्, तुक] इस 'उद्' उपसर्ग को संज्ञा उदञ्च (अक०) फैलना, बढ़ना, प्रसारयुक्त होना। 'अञ्चति
शब्दों एवं क्रियाओं के पूर्व में लगाया जाता है। इसके रजनिरुदञ्चति' (जयो० १६/६४) उदश्चनि-प्रसरति- (जयो० प्रयुक्त होने पर शब्द की विशेषता प्रकट हो जाती है। यह १६/६४) विविध अर्थ को प्रतिपादित करने वाला उपसर्ग है। स्थान, उदञ्चनं (नपुं०) (उद्+अञ्च्+ ल्युट्] पद, शक्ति, उच्चता, श्रेष्ठता वियोजन, पार्थक्य, अभिग्रहण उदञ्चत् (वि०) रोमाञ्चित। (सुद० २/४१, सम्य० ६५) प्रकाशन आदि।
उदञ्जलि (वि०) संपुट वाला। उद् (सक०) कहना, बोलना, प्रतिपादित करना। उदेति (जयो० उदण्डपालः (पुं०) १. मत्स्य, मछली, मीन। २. सर्प विशेष।
४/२१) (सम्य० ७८) 'पुमांस्तत्र किमुच्चताम्' (सु०१२७) उदतुलं (नपुं०) तोलना, उबारना। (जयो० ६/३२) 'का प्रसक्तिरुदिता निरर्गले' (जयो० २/५)
उदधिः (पुं०) समुद्र, सागर। (जयो० ४/४३) उदक् (अव्य०) [उद्+अञ्च्+क्विन्] ऊपर की ओर, उर्ध्वमुखी, उदिधकुमारः (पुं०) देव नाम। उत्तर की तरफ। (समु० २/२)
उदन् (नपुं०) [उन्द्+कनिन्] जल, वारि, नीर। उदकं (नपुं०) वारि, जल, नीर, पानी। 'यन्मोदकञ्जभुवि उदन्तः (पुं०) [उद्गतोऽन्तो यस्य] वृत्तान्त। (जयो० ६/१२८,
सोदमुग्रकल्पम्' (सुद० ८६) 'मोदकं सगरोदकं सखि' जयो० २/१४१) वार्तामात्र, समाचार, विवरण, निरूपण, (सुद० ९०)
प्ररूपणा, कथन, इतिवृत। तदुदन्त्वेनाहं नेदं तत्त्वेन' (जयो० उदक-कणं (नपुं०) जलकण, जल राशि।
१६/७२) 'उदन्तत्वेन वार्तारूपेणैव' (जयो० वृ० १६/७२) उदककुम्भः (पुं०) जल का घट, जल भरने का घड़ा। 'परपुष्टा विप्रवराः सन्तः सन्ति सपदि सूक्तमुदन्तः।' (सुद० उदक-ग्रहण (नपुं०) जल ग्रहण, नीर-पान।
पृ० ८१) उदक-दातृ (वि०) जल प्रदाता।
उदन्तकः (पुं०) [उदन्न कन्] समाचार, गुप्तवार्ता। उदक-दायिन् (वि०) जल प्रदाता, जल देने वाला। उदन्तिका (स्त्री०) [उद्णिच्+ण्वुल्। टाप्] संतोष, तृप्ति। उदकधरः (पुं०) मेघ, बादल।
उदन्य (वि०) [उदक क्यच्] प्यास, पिपासा। पीने की इच्छा। उदक-धारा (स्त्री०) जलधारा, जल प्रवाह, झरना।
उदन्वत् (पुं०) [उदन्+मतुप्] समुद्र, उदधि, सागर।
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