________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तुङ्ग
१९३
उत्पातः
उत्तुङ्ग (वि०) उन्नत, उच्च, ऊँचा, उभरे हुए, उठे हुए, निकले उत्थित (वि०) [उद्+स्था+क्त] उदित, निस्सृत, निकला
हए। (जयो० १३/९६) 'बलात्क्षतोत्तुङ्ग-नितम्बबिम्ब:' | हुआ, उत्पन्न, उद्गत। (जयो० ३/९६)
उत्थितिः (स्त्री०) [उद्+स्था+क्तिन्] उन्नति, प्रगति, जागति, उद्गति। उत्तुङ्गनितम्बं (नपुं०) उभरे हुए नितम्ब। (जयो० १३/९६) । उत्थितोत्थित (वि०) उत्थान का प्रकर्ष, धर्म एवं शुक्लध्यान उत्तुषः (पु०) [उद्गता तुषोऽस्मात्] भूषी से पृथक् किया कायोत्सर्ग जन्य का उत्कर्ष। गया, निकाला गया।
उत्पक्ष्मन् (वि०) उलटी पलकों वाला। उत्तेजक (वि०) [उद्+तिज+णिच्+ण्वल] उद्दीपक, तेज सहित, | उत्पत् (अक०) [उद्+पत्] उत्पन्न होना, निकलना, पैदा भड़काने वाला।
__ होना। 'को नु नागमणिमाप्तुमुत्पतेत्' (जयो० २/१६) उत्तेजनं (नपुं०) [उद्+तिज्+णिच्] १. तैक्ष्णकर, तीव्रता, 'कः पुरुषः उत्पतेत् उद्यतो भवेत्' (जयो० वृ०२/१६)
युक्त, अधिक, व्याकुल, उकसाना, भड़काना। २. भेजना, उत्पतः (पुं०) [उद्+पत्+अच्] पक्षी, खग। प्रेषित करना, तेन करना। ३. चमकना, प्रकाशमान होना। उत्पतनं (नपु०) उड़ना, ऊपर जाना। (दयो० ८) उछालना।
'प्रशस्तामुत्तेजनां तैयकरणवृत्ति' (जयो० १५/५२) उत्पथ: (पुं०) अपथ, उन्मार्ग, उल्लंघन, कुमार्ग। (भक्तिः उत्तेजना (स्त्री०) तैष्णकरणवृत्ति, तीव्रता, अधिक निपुणता। ११) (जयो० २०/३४) 'धियोऽसिपुत्र्या दुरितच्छिदर्थमुत्तेजनायातितरां समर्थः। (समु० उत्पथगामी (वि०) अपथगामी, उन्मार्गगामी। (जयो० २/१३२)
उत्पत्तिः (स्त्री०) [उद्+पद्+क्तिन्] १. जन्म, नि:सरण, पैदा उत्तोरणं (नपुं०) उन्नत तोरण, विभूषण, सज्ज क्रिया युक्त। होना। २. अपूर्वाकारसम्प्राप्ति, वस्तु स्वरूप का लाभ। उत्तोलनं (नपुं०) [उद्+तुल+णिच् ल्युट्] तोलना, ऊपर उठाना. 'आत्मलाभलक्षणा उत्पत्तिः' (सिद्धि०वि०टी०पृ० २५०) उभारना।
सम्प्राप्ति, प्रादुर्भाव 'कलशोत्पति तादात्म्य' (जयो० १/१०३) उत्तोष (वि०) संघर्षशाली (जयो०८/६१)
उत्पन्न (भू० क० कृ०) [उद्+पद्+क्त] जात, निःसृत, सम्प्राप्त उत्त्यागः (पुं०) [उद्। त्यज्+घञ्] १. छोड़ना, फेंकना, हटाना। प्रादुर्भात, संजात, उदित, उठा हुआ। 'महामन्त्रप्रभावेणोत्पन्नोऽसि' २. तिलांजली देना।
(सुद० २१/२७) उत्त्यासः (पुं०) [ उद्+त्रस्+घञ्] आतंक, भय, पीड़ा। उत्पल (वि०) [उद्+पल्+अच्] 'उत्क्रान्तः पलं मांसम्' उत्थ (वि०) [उद्। स्था+क] जनित, १. घटित, उदभूत, उत्पन्न क्षीणकाय, दुर्बल, शक्तिहीन, मांसहीन।
हुआ। (सम्य० ९४) २. ऊपर उठा हुआ। 'न । उत्पलं (नपुं०) कुमुद, नीलकमल, कुवलय। (जयो० १६/ ज्ञातमाज्ञातरणोत्थशर्म' (जयो० ८/१३)
उत्पलकद्वयी (वि०) कुवलय युग्म, कुवलय युगल, उभय उत्थशर्मन् (नपुं०) जनित सुख, प्रसन्नता जनक सुख। (जयो० कुमुद। 'व्रजत: स्मोत्पलद्वयीं सतीम्' (जयो० १०/३८) ८/१३)
उत्पलमलाणं (नपुं०) कमल नाल, कमल दण्ड। उत्पलस्य उत्थानं (नपुं०) [उद्+स्थाल्युट्] प्रयत्न, (जयो० १/७९) कमलस्य मृणालवत् पेशलो मृदुर्भवति। (जयो० ७७५)
जागृति, उठना, सचेत होना। (जयो० वृ० ५/७०) उत्पलिन् (वि०) [उत्पल इनि] कुमुदों से परिपूर्ण। जागृतिमुत्थानं सावधानता वा। (जयो० १९/१
उत्पवनं (नपुं०) [उद्। पू+ल्युट] प्रमार्जन, स्वच्छीकरण। उत्थापनं (नपुं०) [उद्। स्था+णिच्+ल्युट्] जागृत करना, उठाना, उत्पाटः (नपु०) [उद्+पट् णिच्+घञ्] उन्मूलन, मूलोच्छेदन, सचेत करना, सावधान करना।
जड़ से उखाड़ना। उत्थापय् (सक०) ऊँचा चढ़ाना, ऊपर उठाना। (दयो०६०) उत्पाटनं (नपुं०) मूलोच्छेदन, उन्मूलन, उखाड़ना। उत्थाय (सं०कृ०) उठकर, 'आसानादुद्भूय' (जयो० १/७९) उत्पाटिन् देखें उत्पाटी। उत्थित (भू० क० कृ०) [उद्+स्था+क्त] खड़ी हुई, (जयो० उत्पाटी (वि०) [उद्+पट् णिच्+णिनि] मूलोच्छेदक, उन्मूलक।
१/५) उदित, जात, विस्तृत, विस्तारजन्य। 'स्यादुत्थिताऽ-- (दयो० २/१३) तिविकटैव समस्या' (जयो० ४/३१) 'वामस्कन्धोत्थतेजसा' | उत्पात: (पुं०) [उद्+पत्+घञ्] उछाल, उड़ान, ऊपर जाना, (समु० २/३२) विधृताङ्गनि उत्थितः' (सुद० ३/२४)
कूदना।
For Private and Personal Use Only