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उत्तरङ्ग
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उत्ताल
उत्तरङ्ग (वि०) १. उछलती तरंगे, २. क्षुब्ध, व्याकुल. दु:खी।
३, जलप्लावित तरंग। उत्तरच्छदः (पुं०) दुपट्टा, उत्तरीय। उत्तरीयेण वस्त्रेण (जयो०
वृ० २४/६२) उत्तरकरणं (नपुं०) आलोचना करना, साधु की क्रिया में दोष
लगने पर किया जाने वाला प्रतिक्रमणात्मक भाव। उत्तरकुरुः (पुं०) क्षेत्रनाम। उत्तरगुणं (नपुं०) पिण्डशुद्धि/आहारशुद्धि का गुण। उत्तर-गुण-निर्वर्तना (स्त्री०) काष्ट, पुस्तक, या चित्रकर्म
आदि का चित्रण। उत्तरत्र (वि०) उत्तरकाल में। (सम्य० ११०) उत्तरप्रकृतिः (स्त्री०) पृथक्-पृथक् भेद रूप प्रकृति। उत्तरल (वि०) सुचपल, अधिक चपल, चञ्चलता युक्त। ।
'तत्राऽऽनमस्तु झरदुत्तरलाक्षिमत्वान्' (जयो० २६/६९) उत्तर-लक्षणं (नपुं०) वास्तविक लक्षण विशेष लक्षण। उत्तर-लोकहितङ्कर (वि०) धर्मपथगामी। (जयो० ५/४७) उत्तर-वस्त्रं (नपुं०) दुपट्टा, उत्तरीय। उत्तरवादः (पुं०) प्रतिपक्ष कथन। उत्तरवादिन् (वि०) प्रतिवादी, पक्ष का खण्डन करने वाला। उत्तर-वीर्य-संज्ञित (वि०) अनन्तवीर्यशाली, शक्तिशाली।
'संजातोऽनन्तात्पदादुत्तरं यद्वीर्यपदं तेन संज्ञितोऽनन्तवीर्यमा।'
(जयो० वृ० २६/२) उत्तरश्रेणिगत (वि०) उत्तर श्रेणी को प्राप्त। (वीरो० ११/२५) उत्तर-सुखात्मिका (वि०) परलौकिक कल्याणकत्री आत्रिक
स्थिति मतीरमारती मुक्ति-रुत्तर-सुखात्मिका धृतिः। (जयो० २/१०)
'उत्तरसुखमात्मा यस्या सा' (जयो० वृ० २/१०) उत्तरसत्त्व (वि०) उत्तराधिकार। 'भुक्तवान् स्वजनकोत्तरसत्वम्'
(समु० ५/२६) उत्तराधिकारी (वि०) मालिक स्वामी, नायक, अधिकारी।
(दयो० ७, जयो० २१/८०) उत्तरायणं (नपुं०) उत्तर की ओर। (जयो० ४२) उत्तरायणः (पुं०) सूर्य। (वीरो० २१/३) उत्तर की ओर सूर्य होना। उत्तरायी (वि०) पश्चात्वर्ती। (वीरो० २२/६) उत्तमार्थक (वि०) श्रेष्ठार्थक, उचित अर्थ वाला। (जयो०
२/२५) उत्तमोऽर्थो यस्य स तं श्रेष्ठार्थकं (जयो० वृ०
२/२५) उत्तराषाढः (पुं०) नक्षत्र विशेष। उत्तराहि (अव्य०) [उत्तर+आहि] उत्तर दिशा की ओर।
उत्तरीतुम् (हेत्वर्थ कृ०) उल्लंघितम, उल्लंघन करने के लिए।
(जयो० ३/९०) उत्तरीयं (नपुं०) दुपट्टा, चादर (सुद० ३/३८) ऊपर डाला
जाने वाला वस्त्र। उत्तरेण (अव्य०) [उत्तर-एनप्] उत्तर की ओर, उत्तर दिशा
की ओर। उत्तरेयुः (अव्य०) आगामी दिन, कल, अगला दिन। उत्तरार्जनं (नपुं०) उलाहना, झिड़कना। उत्तरोत्तर (वि०) अधिकाधिक, यथोत्तर। (जयो० वृ० ९१/८२) उत्तरोत्तरगुणधिप (वि०) अधिकाधिक गण सम्पन्न। 'उत्तरोत्तर
मग्रेऽग्रे गुणाधिकस्य सहिष्णुतादीनामाधिक्यम्या' (जया०
वृ० ५/३०) उत्तल (वि०) १. प्रत्युद, भूततल, आनन्दयुवत। २. तलसहित!
रसातलं तृत्तलसातकम्। (जयो० ५/९०) उत्तस्थ (वि०) विस्तार युक्त। (सुद० ३/४४) उत्तान (वि०) [उद् गतस्तानो विस्तारो यस्मात] १. फैलाया
गया, विस्तारजन्य, प्रसृत किया गया। २. स्पष्ट, निष्कपट,
खरा। 'तटी स्मरोत्तानगिरेरियं वा' (सुद० २/५) उत्तानता (वि.) उन्नति युक्त। (वीरो० ४/१०) उत्तानपादः (पुं०) एक नृप, ध्रुव का पिता। उत्तानशय (वि०) उर्ध्वमुख युक्त शयन, छोटे बच्चे सहित।
(जयो० २०/४) उत्तापः (पुं०) [उद्+तप्। घञ्] १. संताप, पीड़ा, कष्ट,
अत्यधिक गर्म, उष्णता जन्य! २. उत्तेजना, विशेष आवेश,
शक्ति स्फूरणा। उत्तापक (वि०) ०तपन, गर्मी देने वाला संतापकर संताप
देने वाला। 'रविः कुतो नावपतेदिदानीमुत्तापकोऽसौ
जगतोऽभिरामो' (जयो० १५/१५) उत्तारः (पुं०) [उद्+तृ+घञ्] १. वाहन, यान, परिवहन। २.
उतारना, किनारे करना। ३. छुटकारा दिलाना, मुक्त
करना। ४. वमन करना। उत्तारक (वि०) [उद्+तृ+णिच्+ण्वुल्] उद्धारक, पारक, तारक,
बचाने वाला। उत्तारणं (नपुं०) [उद्+तृ+ णिच्+ ल्युट्] उतारना, पार करना,
बचाना। उत्तारित (वि०) उतारा गया, उपरिष्ठादधः। (जयो० १२/१०८) उत्ताल (वि०) दृढ़, शक्तिशाली, ठोस, प्रबल, बलिष्ट, भीषण,
तेज, गतिमान, उन्नत।
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