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ईदृक्ता
१८३
ईशा
ईदृक्ता (वि०) ऐसा गुण।
ईर्यापथक्रिया (स्त्री०) ईर्यापथ का कारण रूप क्रिया, ईदृश (वि०) ऐसा, इस तरह का।
ईपिथनिमित्त' (स० सि० ६/५)। ईर्यापथनिमित्ता या सा ईदृश (वि० ) ऐसा, इस तरह का। 'ईदृशेऽभिनके प्रतियाति' प्रोक्तेर्यापथक्रिया' (हरिवंश प्र०५८/६५)
(जयो० ४/१३) 'ईदृशामि महीमहितानाम्' (जयो० ५/५३) ईर्यापथशुद्धिः (स्त्री०) केवली की शुद्धि। ईदृशमेव (अव्य०) ऐसा भी। (वीरो० २०/१४)
ईर्यासमितिः (स्त्री०) शुद्धि पूर्वक गमन। सम्यगवलोकन सहित ईदृशी (वि०) ऐसी। (समु० २/१०)
गति। 'चर्यायां जीवबाधापरिहार: ईर्यासमितिः' (त०श्लोक ईनकेतुः (पुं०) कामदेव। 'नमामि तं निर्जितमीनकेतुम्' (समु० ९/५) संलापादिविवर्जितेन शमिनामीशेन संपश्यता, भूयाग्रं १/२)
खलु कंटकादिकमितः प्राप्तं व्यपाकुर्वता। हस्त्यश्वादिईप्सा (स्त्री०) ०कामना, वाञ्छा, चाह, ०इच्छा, ०अभिलाषा। विगाहितेन च पथा नातिद्रुतं धीमता वृत्त्यर्थं गमनीयमप्यनुदिनं ईप्सित (वि०) [आप+सन्+क्त] यथोचित। ०इच्छित, रात्रौ तु नेतिव्रतात्। (मुनि० ६) पंच समितियों में इस
मनोवाञ्छित, अभिलषित। 'भूपतेरीप्सितं सर्वं प्रक्रमते'। समिति का उल्लेख है। प्रथम महाव्रती साधक गमनागमनादि
(जयो० ९/७०) 'शृणु मन्त्रिन्ममेप्सितम्' (समु० ३/४०) में इसी समिति का पालन करना है। (मुनि० २) ईप्सु (वि०) [आप+सन्+उ] १. इच्छावान्, चाहयुक्त, | ईष्य् (अक०) डाह करना, असहिष्णु होना। (जयो० ५/९६)
वाञ्छाशील, प्राप्त करने की भावना वाला। २. कहना, ईष्य (वि०) [ईष्य्+अच्] ०ईर्ष्यालु, द्वेष करने वाला, बुरा उच्चारण करना, दुहराना, बोलना। ३. प्रेरित करना, चाहने वाला। चलाना, उकसाना।
ईष्यरीति (स्त्री०) ईर्ष्याविधि। (जयो० ५/९६) ईर (सक०) १. कहना, बोलना, उच्चारण करना, भरना। ईर्ष्या (स्त्री०) जलन, डाह।
(जयो० ५/२६) अनुकूल होना। (जयो० २७/९) २. ईर्ष्याकरणं (वि०) स्पर्धन। (जयो० वृ० १४/१३) स्पर्धा, डाह, प्रकाशित करना, प्रेरित करना। 'इतीरितोऽभ्येत्य स जन्मदात्री'
जलन। (समु० ३/१२) 'पीयूषमीयुर्विबुधा बुधा वा' (वीरो० १/२२) इर्ष्यालु (वि०) जलने वाला। (समु० ९/५) 'पीयूषं नामामृतमीयुर्गच्छेयुः' (वीरो० वृ० १/२२) ईर्ष्याविधिः (स्त्री०) ईर्ष्यारीति, डाह पद्धति। 'हर्षमीरयति प्रेरयतीति' (जयो० वृ० २७/९)
ईलिः (स्त्री०) [ईड्। किं डस्य ल:] १. छोटी असि, लघु खंग, ईरणः (पुं०) [ई ल्युट्] वायु, पवन, हवा। 'सर्वतोऽपि पवमान __ छोटी तलवार। २. डण्डा। ३. एक अस्त्र विशेष।
ईरणः' (जयो० २।८३) 'ईरणो वायु सर्वतो वाति-वहति' ईश् (अक०) राज्य करना, स्वामित्व होना, अधिकार होना, (जयो० वृ० २/८३)
आदेश देना, आज्ञा करना, शासन करना। 'ईशिता तु ईरयंस्ताम्-अतिशयेन मुहुर्मुहुः कथयन जगाम। (जयो० वृ० जगतां पुरुदेवः' (जयो० ४/४९) २/१३९) बारंबार कथन।
ईश (वि०) [ईश्+क] १. स्वामी, नायक, (जयो० १/२) ईरिण (वि०) [ई+इनन्] मरुस्थल, बंजर, उत्पत्ति रहित चरित्रनायक। (जयो० ४/४३, वीरो० १/२०) 'कस्त्वदीशदुभूमि, ऊसर।
हितुर्भुवि योग्यः' (जयो०४/४३) २. पति, ३. शक्तिशाली, ईरित (वि०) जनित-'तमुदीक्ष्यमुदीरिते जने' प्रमोदेनेरिते प्रेर्यमाणे सर्वोपरि, नरेश (जयो० वृ० १/२) ऐश्वर्यशाली। ४. ईश्वर,
सति' (जयो० १२/६६) कथित, प्रतिपादितइतीरितोऽभ्येत्य अर्हत, भगवन् (जयो० ८४८६) (४/६८) ईशे भगवति स' (समु० ३/१२)
स्वमिति। ईर्मम् (नपुं०) [ईर् मक्] घाव, व्याधि।
ईशतुजः (पुं०) स्वामी का पुत्र, भगवान् का पुत्र। 'आदिपुरुषस्य ईर्या (स्त्री०) [ईर् + ण्यत्+टाप्] १. योग, योगगति, परिभ्रमण तुम् भरतः' (जयो० ९/५०)
'ईरणमीर्या योगगतिरिति यावत्' (ल०वा०६/४) ईर्या योग: | ईशदिक् (स्त्री.) शुभसूचक दिशा, 'भवतीशदिक- सदिष्ट(धव० १३/४७)
शकुनैश्च गुणीशः।' ईर्यापथं (नपुं०) योग पथा 'ईरणमीर्या योगो गतिरित्यर्थः तद्वारकं ईशदुहित (स्त्री०) राजपुत्री। (जयो० ४/४३) कर्म ईयापथम्' (स० सि० ६/४)
ईशा (स्त्री०) समर्थ स्त्री, ऐश्वर्य शालिनी। (जयो० २२/३०)
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