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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईदृक्ता १८३ ईशा ईदृक्ता (वि०) ऐसा गुण। ईर्यापथक्रिया (स्त्री०) ईर्यापथ का कारण रूप क्रिया, ईदृश (वि०) ऐसा, इस तरह का। ईपिथनिमित्त' (स० सि० ६/५)। ईर्यापथनिमित्ता या सा ईदृश (वि० ) ऐसा, इस तरह का। 'ईदृशेऽभिनके प्रतियाति' प्रोक्तेर्यापथक्रिया' (हरिवंश प्र०५८/६५) (जयो० ४/१३) 'ईदृशामि महीमहितानाम्' (जयो० ५/५३) ईर्यापथशुद्धिः (स्त्री०) केवली की शुद्धि। ईदृशमेव (अव्य०) ऐसा भी। (वीरो० २०/१४) ईर्यासमितिः (स्त्री०) शुद्धि पूर्वक गमन। सम्यगवलोकन सहित ईदृशी (वि०) ऐसी। (समु० २/१०) गति। 'चर्यायां जीवबाधापरिहार: ईर्यासमितिः' (त०श्लोक ईनकेतुः (पुं०) कामदेव। 'नमामि तं निर्जितमीनकेतुम्' (समु० ९/५) संलापादिविवर्जितेन शमिनामीशेन संपश्यता, भूयाग्रं १/२) खलु कंटकादिकमितः प्राप्तं व्यपाकुर्वता। हस्त्यश्वादिईप्सा (स्त्री०) ०कामना, वाञ्छा, चाह, ०इच्छा, ०अभिलाषा। विगाहितेन च पथा नातिद्रुतं धीमता वृत्त्यर्थं गमनीयमप्यनुदिनं ईप्सित (वि०) [आप+सन्+क्त] यथोचित। ०इच्छित, रात्रौ तु नेतिव्रतात्। (मुनि० ६) पंच समितियों में इस मनोवाञ्छित, अभिलषित। 'भूपतेरीप्सितं सर्वं प्रक्रमते'। समिति का उल्लेख है। प्रथम महाव्रती साधक गमनागमनादि (जयो० ९/७०) 'शृणु मन्त्रिन्ममेप्सितम्' (समु० ३/४०) में इसी समिति का पालन करना है। (मुनि० २) ईप्सु (वि०) [आप+सन्+उ] १. इच्छावान्, चाहयुक्त, | ईष्य् (अक०) डाह करना, असहिष्णु होना। (जयो० ५/९६) वाञ्छाशील, प्राप्त करने की भावना वाला। २. कहना, ईष्य (वि०) [ईष्य्+अच्] ०ईर्ष्यालु, द्वेष करने वाला, बुरा उच्चारण करना, दुहराना, बोलना। ३. प्रेरित करना, चाहने वाला। चलाना, उकसाना। ईष्यरीति (स्त्री०) ईर्ष्याविधि। (जयो० ५/९६) ईर (सक०) १. कहना, बोलना, उच्चारण करना, भरना। ईर्ष्या (स्त्री०) जलन, डाह। (जयो० ५/२६) अनुकूल होना। (जयो० २७/९) २. ईर्ष्याकरणं (वि०) स्पर्धन। (जयो० वृ० १४/१३) स्पर्धा, डाह, प्रकाशित करना, प्रेरित करना। 'इतीरितोऽभ्येत्य स जन्मदात्री' जलन। (समु० ३/१२) 'पीयूषमीयुर्विबुधा बुधा वा' (वीरो० १/२२) इर्ष्यालु (वि०) जलने वाला। (समु० ९/५) 'पीयूषं नामामृतमीयुर्गच्छेयुः' (वीरो० वृ० १/२२) ईर्ष्याविधिः (स्त्री०) ईर्ष्यारीति, डाह पद्धति। 'हर्षमीरयति प्रेरयतीति' (जयो० वृ० २७/९) ईलिः (स्त्री०) [ईड्। किं डस्य ल:] १. छोटी असि, लघु खंग, ईरणः (पुं०) [ई ल्युट्] वायु, पवन, हवा। 'सर्वतोऽपि पवमान __ छोटी तलवार। २. डण्डा। ३. एक अस्त्र विशेष। ईरणः' (जयो० २।८३) 'ईरणो वायु सर्वतो वाति-वहति' ईश् (अक०) राज्य करना, स्वामित्व होना, अधिकार होना, (जयो० वृ० २/८३) आदेश देना, आज्ञा करना, शासन करना। 'ईशिता तु ईरयंस्ताम्-अतिशयेन मुहुर्मुहुः कथयन जगाम। (जयो० वृ० जगतां पुरुदेवः' (जयो० ४/४९) २/१३९) बारंबार कथन। ईश (वि०) [ईश्+क] १. स्वामी, नायक, (जयो० १/२) ईरिण (वि०) [ई+इनन्] मरुस्थल, बंजर, उत्पत्ति रहित चरित्रनायक। (जयो० ४/४३, वीरो० १/२०) 'कस्त्वदीशदुभूमि, ऊसर। हितुर्भुवि योग्यः' (जयो०४/४३) २. पति, ३. शक्तिशाली, ईरित (वि०) जनित-'तमुदीक्ष्यमुदीरिते जने' प्रमोदेनेरिते प्रेर्यमाणे सर्वोपरि, नरेश (जयो० वृ० १/२) ऐश्वर्यशाली। ४. ईश्वर, सति' (जयो० १२/६६) कथित, प्रतिपादितइतीरितोऽभ्येत्य अर्हत, भगवन् (जयो० ८४८६) (४/६८) ईशे भगवति स' (समु० ३/१२) स्वमिति। ईर्मम् (नपुं०) [ईर् मक्] घाव, व्याधि। ईशतुजः (पुं०) स्वामी का पुत्र, भगवान् का पुत्र। 'आदिपुरुषस्य ईर्या (स्त्री०) [ईर् + ण्यत्+टाप्] १. योग, योगगति, परिभ्रमण तुम् भरतः' (जयो० ९/५०) 'ईरणमीर्या योगगतिरिति यावत्' (ल०वा०६/४) ईर्या योग: | ईशदिक् (स्त्री.) शुभसूचक दिशा, 'भवतीशदिक- सदिष्ट(धव० १३/४७) शकुनैश्च गुणीशः।' ईर्यापथं (नपुं०) योग पथा 'ईरणमीर्या योगो गतिरित्यर्थः तद्वारकं ईशदुहित (स्त्री०) राजपुत्री। (जयो० ४/४३) कर्म ईयापथम्' (स० सि० ६/४) ईशा (स्त्री०) समर्थ स्त्री, ऐश्वर्य शालिनी। (जयो० २२/३०) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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