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इलापतिः
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इष्टिमान्
वक्तृता। 'इला क्षालयितुं रेजेऽवतरन्तीव स्वर्णदी' 'इला इषुधिः (पुं०) [इषु धा+कि] तरकस. बाण रखने का साधन। भुवं क्षालयितुम' (जयो० वृ० ३/११२)
इषूक्तशैलः (पु०) इष्वाकार पर्वत। (भक्ति ३६) इलापतिः (पुं०) भूपति, राजा। 'उचितं चक्रुरिलापतिमितरं' इषूर्वीधरः (पुं०) इष्वाकार पर्वत। (जयो० २४/१४) (जया० ६/३९)
इष्टः (भू० क० कृ०) [इष्+ क्त] १. इच्छित, वाञ्छित, इलालङ्कारः (पुं०) पृथ्वी का अलंकार, भू शोभा। (सुद० पृ० अभिलषित, चाहा गया, माना गया, स्वीकृत किया गया।
१. प्रतिष्ठित, सम्मानित, 'शालेन बद्धं च विशालमिष्ट' इलिका (स्त्री०) [इला कन्, इत्वम्] पृथ्वी, धरती, भूमि। (सुद० १/२५) २. योग्य, उचित। 'फलतीष्टं सतां रुचिः।' इव (अव्य०) [इ. क्वन् ] तरह, जैसा कि. समान। (मुनि०८,
(सुद० ३/४३) ४. चाह, इच्छा। ५. वक्ता का अभीष्ट सुद० २/९) 'इव शब्द: पादपूर्ता एव शब्दचापि शब्दार्थकः'
भाव। (जयो० पृ० १९/५९) 'श्रीश्रेष्ठिनो मानसराजहंसीव' (सुद०
इष्ट-खलक्षणं (नपुं०) उचित आकाश स्वरूप। (सुद० १/२५) २/९) 'लक्ष्मीरिवासौ तु निशावसाने' (सुद० २/११)
इष्टखेलः (पुं०) भोग। (सम्य० ५१) इव किल (अव्य०) जिस प्रकार की, जैसा कि। 'जरगवो
इट-गन्धः (पुं०) सुगन्धित पदार्थ, सुगन्ध, उत्तम गन्ध, वृद्धवलीवर्द इव किल' (जयो० २३/६७)
उचित/समुचित सुगन्ध। इवाथ (अव्य०) इस तरह का। 'साधुः सरोषः स इवाथ दीन:'
इष्टदेवः (पुं०) अनुकुल देव, कुलदेवता। (समु० १/३४)
इष्टदेशार्चनं (नपुं०) कुलदेवार्चन, कुलपूजा। इवाधुना (अव्य०) अब इस, प्रकार, ऐसा मानो कि-'भवान्तरं,
इष्टदेश: (पुं०) वाञ्छित स्थान। 'पथाप्ययादीयंते इष्टदेशः। प्राप्त इवाधुना नवम्' (समु० २३/३३)
(जयो० ५/१०३) इष् (अक०) निकलना, कामना करना, चाहना। 'किमिष्यते
इष्टपरिपूरणं (नपुं०) समुचित रूप से प्राप्त। (जयो० २/२) कुड्मल बन्धलोपी' (जयो० १/७१) 'ईय एषोऽद्भुत इप्यते न कैः' (समु० २/२३) उक्त पंक्ति में 'इष्' धातु
इष्टभावः (पुं०) इष्टभाव, इष्टभावना, सम्यक् चिंतन, श्रेष्ठ का अर्थ मानना है। 'त्वमीप्यते सत्प्रतिपद्धरातरे' (जयो०
विचार।।
इष्टवियोगः (पुं०) इष्ट पदार्थों का वियोग। 'इष्टवियोगनिष्ट - ५/१०६)
संयोगतया' (जयो० वृ० १/१०९) इषः (पुं०) [इप्+अच] १. शक्ति सम्पन्न, २. आश्विनमास। इषि (स्त्री०) अस्त्र विशेष।
इष्टसंयोग-जनित (वि०) उचित योग से युक्त। (जयो० इषिका देखो ऊपर।
१/२२) इपिरः (पुं०) अग्नि, आग।
इष्टसत्ता (स्त्री०) अच्छा भाव। इषुः (पुं०) [इप्-उ] १. बाण, शर। २. सीधी, सरल।
इष्टसत्त्व (वि०) अच्छाई युक्त भाव। इषुकार: (वि०) बाण बनाने वाला।
इष्टसिद्धि (वि०) मनोरथ साधक ०मनोरथ साकल्य इषुकृत् (वि०) बाण बनाने वाला।
सिद्धिजनक। (जयो० २/३६) 'इष्टसिद्धिमभिवाञ्छितोऽइषुगति (स्त्री०) सीधी गति, मोडा रहित गति।
हतां' (जयो० २/३७) इषुधरः (वि०) धनुर्धर।
इष्ट-हतिः (स्त्री०) निर्विघ्नता, सफलता। 'आत्रिकेष्ट इषुपथः (पुं०) बाणमार्ग, तीर आने का रास्ता या स्थान। हतिहापनोद्यतः' (जयो० २/३९) इषुप्रकार (वि०) बाण के आकार। 'चरन्ति चाचारमिषुप्रकारम्' | इष्टानिष्टविकल्पः (पुं०) इष्ट-अनिष्ट भाव, शुभ-अशुभ भाव।
(भक्ति० सं०१०), दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चरित्र। चार, (मुनि०४) तपाचार और वीर्याचार ये पांच इषु प्रकार हैं जिन्हें साधु इष्टिः (स्त्री०) प्रार्थना, कामना, वाञ्छा, इच्छा, चाह, अभिलाषा. पालन करते हैं।
पूजा। 'सर्वत: प्रथममिष्टिरहतो' (जयो० २/२७) इषुप्रयोगः (०) बाण प्रयोग।
इष्टिमान् (वि०) यज्ञकर्ता, इष्ट समागम कर्ता, अभिलाषाजन्य। इषुभृत् (वि०) धनुर्धर।
'इष्टिमान् सुकृतवत्पुरोहितः' (जयो० ३/१४)
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