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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आशयः १६९ आशीविष १७) आशयः (पुं०) [आ+शी+अच्] १. स्थान, आश्रय, शयनशाला, आशासित (वि.) आश्चर्यचकित, आशाजन्य। (जयो० आसन। (सम्य० ११५, जयो०) 'बभौ समुद्रोऽत्त्यजडाश्यश्च' १६/७५) 'आशासितेति वदनोदलवैश्च शस्यैः' (जयोः (सुद० २/३०) २. अभिप्राय, हृदयगतभाव, इच्छा, मन, १६/७५) प्रयोजन, भाव। आशास्य (सम्बन्धः कृ०) [ आ+शास्+ण्यत्] आशा करके आशयज्ञ (वि०) ज्ञाना, जानकार। (वीरो० १४/३) सनाभयस्ते वाञ्छनीय, अभिलषणीय चाह/इच्छा करके। त्रय एव यज्ञानुष्ठायिनो वेद पदाऽऽशयज्ञाः। आशिञ्जित (वि०) मनोरम ध्वनि, झंकार, आभूषणों की आशरः (पुं०) [आ+श+अच्] १. अग्नि, बह्नि। २. असुर, रुन-झुन। राक्षस। ३. पवन, वायु। आशिका (स्त्री०) आशा, ०अभिलाषा, ०इच्छा, ०वाञ्छा आशवं (नपुं०) [आशोर्भाव:--अण] १. गति, आवेग, तीव्रता, ०चाह। शुभाशंसा, आर्शीवाद। (वीरो०८/३४) (मुनि० स्फूर्ति। २. शराब, अरिष्ट। आशा (स्त्री०) १. इच्छा, वाञ्छा, अभिलाषा। 'सम्भेदमापादर- आशिकाधारः (पुं०) आर्शीवाद दायक, आशीष जन्य। मुद्रणाशा' (जयो० ५/१०) 'आशाऽभिलाषा यस्याः सा' 'आशिकाधारभूतेभ्यः शालिवृत्तेभ्य उत्तमम्' (जयो० २८/३४) (जयो० वृ०५/१०१) २. दिशा, प्रदेश, दिग्भाग, 'बहुविभ्रम आशिकाधारभूतेभ्य:-आशीर्वाददायकेभ्यः, आशामात्रस्यापूरिताश्या' (जयो० १०/१४) आशा दिशतया। (जयो० धारेभ्यः। (जयो० वृ० २८/९४) वृ० १०/१४) २. सफलता, प्रत्याशा। नैराग्यमाशा मम आशित (वि०) [आ+अश्+क्त] भुंजित, खाया हुआ, भुक्त। सम्मुदे सः' (सुद० ११७) 'सुचिरक्षुधितजनाशा' (सुद० 'तिक्तायते यन्मरिचाशिनस्तु' (सुद० १११) ७४) १, लोभ, तृष्णा, लालच। 'आश्यति तनूकरोत्यात्मान- आशितङ्गवीन (वि०) चर्वित, चबाया हुआ। मित्याशा लोभ इति। 'अविद्यमानस्यार्थ- स्याशासनमाशेत्य- आशितंभव (वि०) [ आशित+भू-खच्] संतोष युक्त, तृप्त, परलोभपर्याय:' (जय०ध०) संतृप्त। आशाढः (पुं०) आशाढ। आशिर (वि०) [आ+अश्+इरच] भोजनाभिलाषी, आहारार्थी। आशातीत (वि०) पराकाष्ठा गत। (जयो० २२/६५) आशिरः (पुं०) १. तेज। अग्नि। २. सूर्य, दिवाकर, आदित्य। आशाधिकर्तृ (वि०) बेलाधिकारिणी, प्रतीक्षा करने वाली। ३. राक्षस। 'आशाधिकर्त-आशाधिको वेलाया अधिकारिण्यः' (जयो० आशिस् (स्त्री०) [आ+शास्+क्विप्-इत्वम्] आशीर्वाद, वृ० ३/६३) मंगलकामना, शुभ-भावना। शिवमाशिषि वर्तते च येषां आशाधुत (वि०) आशाओं से रहित, इच्छाओं से मुक्त, गुरवः श्रीपुरवर्तिनोऽपि शेषाः। (जयो० १२/८) विषयाभिलाषा से रहित। 'आत्मोपासितयै हिकेगु | आशी (स्त्री०) [आ+7+क्विप्] (आशीर्यते अनया) १. विषयेष्वाशाधुता साधुता' (मुनि० श्लोक २) शुभाशंसन, शुभाशीष, आर्शीवाद, शुभ-कामना, प्रार्थना, आशापाशः (नपुं०) तृष्णा का बंधन, लोभासक्ति, विषयाभिलाष चाह। २. दाढ ‘सा च कस्यात्मन आशी: शुभाशंसन का जाल। 'आशापाशविलासतो द्रुतमधिकर्तृ धनधाम। वर्तते।' (जयो० वृ० ३/३०) 'साशीर्वा व्यक्तमङ्गला' (जयो० २१/६१) 'आशा तृष्णैव पाशो बन्धन-रज्जुस्तस्य।' (जयो० ३/८४) 'याऽऽशी: शुभाशंसा' (जयो० वृ० ३/१०७) (जयो० वृ० २३/६१) आशीतिका (स्त्री०) प्रायश्चित्त निरूपिका, प्रायश्चित्त निरूपक। आशाम्बरः (पुं०) दिगम्बर, इच्छा एवं संग रहित साधु। यो आशीर्वादः (पुं०) आशीर्वचन, मंगलवचन, कल्याणकारी हताशः प्रशान्ताशस्तमाशाम्बरमूचिरे (उपासकाध्ययन ८६) भाव। (जयो० वृ० २७/२१) आशालकः (पुं०) आसन, स्थान। आशीर्वादसूचिनी (वि०) सम्वादकरी, 'सम्वादकरीराशीर्वादआशावती (वि०) आशिका, मङ्गलवाहिनी आशा करने वाली। सूचिनी:' (जयो० वृ० १२/९७) । (जयो० वृ० ३/८९) आशीविष (पुं०) एक ऋद्धि विशेष, जो दुश्चरण तप से आशासमन्वित (वि०) तृष्णा जन्य, इच्छा युक्त। (जयो० प्राप्त होती है, जो ऋद्धिधारकमुनि इसे प्राप्त करके 'मर जा' ऐसा कहने पर जीव सहसा मरण को प्राप्त हो जाता For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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