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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलापः १६६ आलोचना आलापः (नपुं०) [आ+ लप्+घञ्] वार्तालाप, अभिभाषण, संलाप, परस्पर बातचीत। 'यदद्य वाऽऽलापि जिनार्चनायाम्।' (सुद० ३/३७) आलापनं (नपुं०) [आ+लप्+णिच्+ल्युट] बातचीत, संलाप, अभिभाषण, परस्पर संवाद। आलापन-बन्धं (नपुं०) दूसरे द्रव्यों का सम्बन्ध, दर्भादि से परस्पर बन्धन करना, बांधना। आलाबुः (स्त्री०) आल, लौकी, घीया, पेठा, कद्दू, कुम्हड़ा। आलावर्त (नपुं०) [आलं पर्याप्तमावर्त्यते इति-आल+आ+ वृत्+णिच्+अच्] बिजना, कपड़े का पंखा। आलि (वि०) [आ+अल्+इन्] १. प्रमादी, आलसी, सुस्त। २. वचनबद्ध, सत्य युक्त। आलि: (स्त्री०) १. बिच्छु, मधुमक्खी। २. सखी। (वीरो० ४/२९) संतति, तति, ३. पंक्ति-'शालिकालिभिरुपाद्रियते वा। आलिभिः पङिक्तभिः। (जयो० वृ० ४/५७) आलि-कलापः (पुं०) सखि कौतुक। (जयो० ६/६५) आलिकुलं (नपुं०) सखी समूह। (वीरो० ४/२९) आलिका (स्त्री०) सखि, मित्र, सहेली। 'चितमूहे ऽमुकमालिके सितम्।' (जयो० १८/७२) 'पथभ्रष्टा इवालिकाः' (जयो० २३/८१) आलिका-वयस्या (जयो० वृ० २८.८१) आलिङ्गनं (नपुं०) [आ+लिङ्ग ल्युट्] समालिंगन, कण्ठालिंगन, वक्षाधार, गले लगाना। (जयो० वृ० ११/३८) 'आलिङ्गन् प्रयों सप्तिसमूहोऽनुनयन्निवा' (जयो० ३/११०) 'तथाऽऽलिङ्गचुम्बनादिक।' (सुद० पृ० ९९) आलिङ्य (सक०) आलिंगन करना, गले लगाना। 'आलिङ्गयोर्वी विशश्राम।' (समु० ९/१६) आलिजन (वि०) सखी समूह। (जयो० २२/७६) 'सालिजने किमु मुद्रणमगात्।' (जयो० २२/७६) आलिञ्जरः (पुं०) मिट्टी का घर। आलिन्दः (पुं०) चबूतरा, ऊँचा स्थान, मचान। आलिम्पनं (नपुं०) [आ+लिप्+ल्युट्] लीपना, सफेदी करना, सफाई करना। आलिविधान (वि०) सखि-संगति, मित्रों का साथ। पार्श्वतः परिमितालिविधाना देवतेव हि विमानसुयाना। (जयो० ९/५८) आली (स्त्री०) सहचरी, सखी, वयस्या, सहेली, सहयारी। (जयो० ५/७३) आलीढं (नपुं०) [आ+लिह+क्त] बैठना, आसीन. निशान बनाने के लिए स्थित होना, प्रत्यञ्चा खींचना, दाहिने पैर को आगे करके और बाएं पैर को पांच पादों के अन्तर से पीछे फैलाकर बाएं हाथ में धनुष लेकर दाहिने हाथ से खींचकर खड़ा होना। (वीरो० २/१०) आलीढस्थानं (नपुं०) शस्त्रादि को चलाने के लिए किया गया हाथ पैरादि का प्रयास स्थान। आलीयकं (नपुं०) ताड़ी, शराब, तालवृक्ष रस। 'नालीयकं सौधमिवास्तु।' (जयो० १६/२६) आलीयकं तालवृक्षरसः सुधाविकारः (जयो० १६/२६) आलुः (पुं०) [आ+लु+डु] उल्लू। आलुकः (०) आलु, रतालु, ०एक अभक्ष्य जमीकंद। (वीरो० २२/२३) आलुञ्चनं (नपुं०) [आ+लुञ्च+ ल्युट्] केशलुंचन, उखाड़ना, फेंकना, निकालना। आलुञ्छनं (नपुं०) समभाव परिणाम। साहीणो समभावो __ आलुंछणमिदि समुद्दिट्ठ। (निय० सा० ११) आलुब्धक (वि०) शिकारी, लोभी, लालची, आसक्तिजन्य। जह्मालुब्धक, खट्टिकादि-रविणां दुष्कर्माणो वेश्म यद्येन। (मुनि० १०) आलेखनं (नपुं०) [आ+लिख्+ल्युट्] लिखना, चित्रण करना। आलेख्य (वि०) [आ+लिख+ ण्यत्] चित्रण, प्रस्तुतिकरण, चित्रांकन। आलेपः (पुं०) [आ+लिए+घञ्] उबटन, मर्दन, तेल लगाना। आलेपनं (नपुं०) [आ+लिप्+ ल्युट्] उबटन, लेपन, मर्दन, तेल लगाना। आलोकः (पुं०) १. प्रकाश, प्रभा, कान्ति, आभा। २. दृष्टि, दर्शन, देखना, अवलोकन। (वीरो० २०/२०) तमेनं विधुमालोक्य स उत्तस्थौ समुद्रवत्। (सुद० ३/४४) आलोकनं (नपुं०) १. अवलोकन, दर्शन, देखना। २. दृष्टि, __ पहलू, विविध विचार दृष्टि। आलोचक (वि०) [आ+लोच्+ण्वुल्] आलोचना करने वाला, समीक्षक, विचारक। आलोचनं (नपुं०) समीक्षक, सर्वेक्षा दर्शन, विचार-विमर्श विवरण, प्रकाशन, आख्यान, निवेदन। 'आलोचनं विवरणं प्रकाशनमारख्यानं विवर्जितमालोचनम्। (त०भा०९/२२) 'गुरवे प्रमादनिवेदनमालोचनम्।' (मूला०११/१६) आलोचना (स्त्री०) अपराध गहन, त्यजन, वस्तु सामान्य का मर्यादित बोध, 'स्वापराध निवेदनं गुरुणामालोचन। (भ०अ० ६९) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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