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आर्यिका
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आलानिक
आलम्बः (पुं०) [आ+लम्ब्+घञ्] आधार, आश्रय, सहारा।
(वीरो० २२/३६) आलम्बनं (नपुं०) [आ+लम्ब्ल्यु ट्] आलम्बन बाह्यो विषयः।
१. आश्रय, आधार, सहारा, आशय, आवास, स्थान, वास, निवास। (जयो० वृ० ३/७१) २. कारण, हेतु,
निमित्त। आलम्बनभूत (वि०) आधारभूत, आश्रयजन्य। 'शाखाचरणा--
लम्बनभूतैः।' (जयो० १२/१३७) आलम्बनसम्पदा (वि०) आधारभूत। (समु० १/३) भवान्धुगर्ते
पतते जनायाऽनुकीर्तिताऽऽलम्बनसम्प्रदा सा। आलम्बनशुद्धिः (स्त्री०) शास्त्रशुद्धि। आलम्बिन् (वि०) [आ+लम्ब+णिनि] आधारित, आश्रित,
पकड़े हुए, गृहीत जन्य, थामने वाला, पहने हुए, लटकते
आर्यिका (स्त्री०) आर्यिका (समु० ४/१६) महाव्रतधारी पूज्या
नारी। आर्यिका उपचरित महाव्रतधराः स्त्रियः। (सा०ध०
२/७३) आर्यिकाचर्या (स्त्री०) आर्यिका व्रत चर्या। साध्वीनामपि एतदेव
चरणं नाग्न्यं बिना जायते यासां क्वापि नहि त्रपाभरजुषामेकाकिता ख्यायते दिवाणामशनं च गेहिसदने चैकत्र गत्वा भवेत्तच्च स्यादुपविश्य मौनत इति दृग्दृश्यते संस्तवे। (मुनि० श्लोक
६२) आर्यिकासङ्घ (वि०) आर्यिका समूह। (सुद० ४/२९) आर्यितत्त्व (वि०) पाण्डित्य। (सुद० १०८) आर्ष (वि०) [ऋपेरिदम् अण। ऋषि सम्बन्धी, ऋषिवाक्य।
मा हिंस्यात्सर्वभूतानीत्या धर्मे प्रमाणयन्। (सुद० ४/४१)
आर्ष का पवित्र, पूत, पावन, योग्य, आदि भी अर्थ है। आर्षप्रणीतिः (स्त्री०) आर्ष नीति, आर्ष नियम। (जयो०
२/६) 'लोकरीतिरिति नीतिरङ्किताऽऽर्षप्रणीतिरथ निर्णयाञ्चिता।' (जयो० २/६) आर्षरीति (स्त्री०) वैदिक नियम, आगमिक नियम, आर्षनियम।
'आर्षा चासौ रीतिर्वैदिकनियमः। (जयो० वृ० २/४) आर्षवाक् (पुं०) आर्षवचन, आर्षसृक्ति, आगामिक वचन,
ऋषिवचन। आर्पवाच्यपि दुःश्रुतीरिमाः किन्न पश्यतु गृहे नियुक्तिमान्। (जयो० २/६३) आहेत् (वि०) योग्य, पूज्य। (सुद० ९६) आहेत (वि०) अर्हत् मत से सम्बन्धित, जिन प्रणीत वचन से
युक्त। आर्हत (वि०) योग्यता, पूज्यता। (सुद० ९६) आर्हतमतानुयायिन् (वि०) अर्हतमत वाले जैन (वीरो० २२/१६) आर्हन्त्य क्रिया (स्त्री०) अरहन्त सम्बन्धी क्रिया, अर्हन्तपद
सम्बन्धी, कल्याणकारी क्रिया। (सम्य० १८/३) आर्हन्त्यमहतो भावो कर्म वेति परा क्रिया। (महापुराण
३९/३०९) आहती (वि०) आर्हतमतानुयायी। (वीरो० १५/३३) आलः (आ+अक्त्+अच्) संखिया। आलगर्दः (पुं०) कथन, बातचीत, विचार। आलपद् (वि०) अपशब्द करना, बुरा कथन। किलाऽऽलपद
भिर्बहुशः समैतैः। (सुद० १०५) आलपित (वि०) कथित, प्रतिपादित, निरूपित। (जयो० ९/२०)
तदालपितेन जयद्विपः। आलभनं (नपुं०) [आलिभल्युट्] ग्रहण करना, पकड़ना,
लेना।
आलम्भः (पुं०) [आ+लभ+घञ्] १. ग्रहण करना, लेना,
उठाना, पकड़ना। २. डालना, पटकना, रखना। आलयः (पुं०) [आ+ली+अच्] देखो आलयां आलयं (नपुं०) स्थान, वास, आश्रय, निवास, घर, गेह,
आसन, जगह। 'सुरालयं तावदतीत्य दूरात्।' (सुद० १/२७) आलवण्यं (नपुं०) [अलवणस्य भावः] १. लवणशून्य,
स्वादहीन, नीरस। २. लावण्य रहित, सौन्दर्यविहीन, कुरूपता। आलवालं (नपुं०) [आसतन्तात् लवं जललवं आलाति
आ+ला+क] ०क्यारी, ०खाई, ०पोखर, ०पानी भरने का
स्थान।
आलस (वि०) [आलसति ईषत् व्याप्रियक्ते-अच्] उदासीनता,
प्रमाद, सुस्त, शिथिलता। 'विद्याऽनवद्याऽऽप न वालसत्वं'। (जयो० १/६) 'समाजन इवाऽऽरामः सालसङ्गममादधत्।"
(सुद०८३) आलसता-व्याज (वि०) क्लममिष, आलस्य के बहाने, प्रमाद
के कारण। (जयो० १४/३२) आलस्य (वि०) [अलसस्य भावः] प्रमाद, उदासीनता, सुस्ती।
(जयो०१/६) आलस्य-कला (स्त्री०) प्रमाद जन्यता। आलस्यचिह्न (नपुं०) विजृम्भण। (जयो० ६/३९) आलातं (नपुं०) जलती हुई लकड़ी। आलानं (नपुं०) [आ+ली+ल्युट] हस्ति बांधने का खम्भा,
रस्सा ।
आलानिक (वि०) [आलान+ठज] हस्ति बांधने का साधन।
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