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अर्कसारः
अक्षर
अर्कसारः (पुं०) सूर्य हर्ष, सूर्यप्रसरण। अर्कस्य सूर्यस्य सारः अक्षणिक (वि०) स्थिर, दृढ़, निश्चल।
प्रसरणम्। (जयो० वृ० १८/७१) पुण्याहवाचन परा | अक्षत (वि.) [नञ्+क्षण+ क्त] अखण्ड, पूर्ण, ०अविभक्त, समुदर्कसारा। सूर्य का प्रसरण यह कहने में तत्पर है कि सम्पूर्ण। (जयो० ३/८४) २४/१५) ०पूजा द्रव्य। 'आज पवित्र दिन है।'
विशदाक्षयातान्ता सुभाषेव सुलोचना। (जयो० ३/८४) अर्कसंस्कृत-कुड्यम् (नपुं०) भास्करभासितभित्ति, सूर्य 'की' विशदं चाक्षतमखण्डम्। (जयो० व० ३/८४)
किरणों से देदीप्यमान दीवारें। अर्केण संस्कृतानि यानि शिरसि स्फुटमक्षतान ददौ। (जयो० १३/२)
कुड्यानि तेषु भास्करभाषित भित्तिषु। (जयो० वृ० १०/८९) शिर पर मङ्गलसूचक अक्षत अर्पण किए। अर्काङ्कित (वि०) सूर्यप्रभाभासित। (जयो० १०३) विधु-बन्धुरं । अक्षत (वि०) आचार पालक। (जयो० १८/१६) अक्षतस्य
मुखमात्मनस्वमृतैः समुक्ष्यार्काङ्कितम्। (जयो० १०३) अक्षस्याचारस्य परिपालनकर्ता यस्तस्याचारव्यवहारतः। शोभनाङ्गी ने प्रातर्वेला में सूर्य की प्रभा से चिह्नित अपने (जयो० वृ० १८/१६) पूर्ण निष्ठावान् सुयोग्य ० श्रेष्ठ।
चन्द्रमा के समान मुख को अमृत/दूध/जल से धोया। अक्षततिः (स्त्री०) अक्षमाला, सुलोचना की छोटी बहिन, राजा अक्षु [ भ्वा०स्वा०पर०अक०] अक्षति अक्ष्णोति। पहुंचना, व्याप्त अकम्पन की पुत्री तथा राजकुमार अर्ककीर्ति की भार्या। होना, संचित होना।
अक्षततिं अक्षमालां नाम सुताम् (जयो० वृ० ९/३) अक्षः [अक्ष्+अच्+अश्+सः वा] धुरी, धुरा, गाड़ी के बीच की अक्षतरुः (पुं०) अखरोट। (वीरो०७/२५)
छड़, लोहे की लम्बी-मोटी छड़, जिसमें दाएं-बाएं पहिए अक्ष-बुद्धित (वि०) इन्द्रिय ज्ञात। (जयो० २३/३२) श्रुतं च लगाए जाते हैं। ०तराजू, ०चौसर, ०पांशा, रुद्राक्ष, दृष्टं क्व कटाक्ष-बुद्धितः। (जयो० २३/३२) ० चक्र, पहिया। (जयो० वृ० १/१०८) गाड़ी, शकट जो इन्द्रिय ज्ञान से कभी कहीं नहीं सुना गया या देखा (जयो० वृ० १/१०८) अक्षः शकट एव। (जयो० वृ० गया। १/१०८) अक्षस्तु पाशके चक्रे शकट च विभीतके। इति अक्षभोग्य (वि०) इन्द्रिय भोग्या (भक्ति सं० पृ० ४८) रुचिं विश्वलोचनः।
मनोज्ञे विषये विषयेऽक्षभोग्ये। (भक्ति सं० वृ०४८) अक्षः (पुं०) बहेडे का पौधा। (जयो० १/१०८) विभीतक, अक्षमाक्षम् (वि०) जितेन्द्रिय। अक्षमाणि असमर्थानि, अक्षाणि बहेड़ा,
इन्द्रियाणि यस्य जितेन्द्रियत्यर्थः। (जयो० वृ० १/१०८) अक्षः (पुं०) ०दृष्टि, आंख, नेत्र, स्कंध, कंधा। (सुद० अक्षमाला (स्त्री०) रुद्राक्षमाला। १/४० जयो० १४/३६)
अक्षमाला (स्त्री०) सुलोचना की छोटी बहिन, अकम्पन राजा अक्षः (पुं) ०ज्ञान, आत्मा ०आचार। अक्षस्याचारस्य (जयो० की पुत्री। (जयो० १/५७) राजकुमार अर्ककीर्ति की १८/१६)
पत्नी। (जयो० ९/५७) अक्षम् (नपुं०) इन्द्रियाँ, इन्द्रिय विषय। अक्षाणि इंद्रियाणि यस्य। अक्षमतिः (स्त्री०) इन्द्रियज्ञान। (वीरो० २०/७) परोक्षज्ञान।
ते अर्हता वपुषि चात्मधियं श्रयन्ति। (सुद० पृ० १२७) अक्षय (वि०) ०अनश्वर, ०अटूट, अविनाशी। दापयामि भवते इन्द्रिय-विषयों से आहत होकर शरीर में ही आत्म-बुद्धि परितोषं, सज्जनाक्षयमितः कुरु कोषम्। (जयो० ४/४६) करते हैं।
अक्षयतृतीया (स्त्री०) अक्षय तृतीया व्रत, वैशाखमास के अक्षेषु सर्वेष्वपि दर्पकारी। (सुद० पृ० १३१)
___ शुक्लपक्ष की तीज। ऋषभदेव के आहार का दिन। प्रतिरेवाजित्वाऽक्षाणि समाबसेदिह जगज्जेता स आत्मप्रियः। (वीरो० क्षयतृतीयादिनं यत्किललग्नविधौ सर्वसम्मतम्। (दयो० पृ०६९) १६/२७)
अक्षय्य (वि०) अविनाशी, अनश्वर, अनित्य। . अक्षकः (पुं०) आत्मा। सत्यधर्ममयाऽवाममक्षमाक्ष क्षमाक्षकः। अक्षर (वि०) अविनाशी, अनश्वर, अटूट। क्षरदक्षरसौध-सत्तरा। (जयो० १/१०८)
(जयो० २६/४) झरते हुए अविनाशी अमृत समूह। अक्षजय (वि०) इन्द्रिय जय (वीरो० १४/३६) इन्द्रियजयी। अक्षरं-बहुकालस्थायि। (जयो० वृ० २६/४) । (वीरो० १८/२३)
अक्षर (वि०) अपराधकारी शब्द। (जयो० १/३९) अक्षराणि अक्षजयी देखो अक्षजय।
इन्द्रियाणि। इन्डिय जन्य अक्षर।
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