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अव्यधिषः
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अशङ्किताकारित
अखाडता
अव्यधिषः (पुं०) १. सूर्य, २. समुद्र। अव्यभिचार: (पुं०) वियोग का अभाव, व्यभिचार का अभाव। अव्यभिचारिन् (वि०) ०अविरोधी, ०अप्रतिकूल, ०अपवाद
०रहित, ०कलंकमुक्त, सदाचारी, सद्गुणी, ०ब्रह्मनिष्ट। अव्यय (वि०) ०व्यय रहित, विनाश रहित, ० ध्रुव. ०ध्रौव्य,
शाश्वत, नित्य, अविनश्वर, अखंडित। अव्ययः (पुं०) १. अनन्त चतुष्टय को प्राप्त, अच्युत। २.
शिव, विष्णु। अव्ययशील (पुं०) व्यय रहित। (जयो० १/९५) अव्ययीभावः (पुं०) अनव्ययमव्यं भवत्यनेन, अव्ययच्चि भू+
घञ्। १. समास विशेष, जिसमें अव्यय को प्रधानता होती
है। २. व्ययरहित भाव, अविनश्वर भाव। अव्यलीक (वि.) ०सत्य, प्रिय, यथार्थ झूठ से रहित,
असत्यहीन, ०सत्यार्थ, उचित। अव्यवधान (वि०) व्यधानरहित, बाधा रहित, खुला हुआ,
अन्तर रहित, मिला हुआ। अव्यवस्थ (वि०) ०अस्थिर, ०अदृढ़, चलमान, ०अनियमित,
० अनिश्चित। अव्यवस्था (वि०) अनियमितता, अनिश्चितता। अव्यवस्थित (वि०) ०अनियमित, अनिश्चित, विनिमय
रहित, अयोग्यता युक्त। अव्यवहारः (पुं०) अनिवार्य, आवश्यक। 'व्यवहारोऽव्यवहार
एव भोः!' (जयो० १३/५) अव्यवहार्य (वि०) व्यवहार के अयोग्य। अव्यवहित (वि०) व्यधान रहित, बाधा रहित, सुयोग,
सुव्यवस्थित। अव्याकृत (वि०) अविकसित, अस्पष्ट, अप्रफुल्लित, हर्ष
रहित, अप्रकट। अव्याजः (पुं०) मायाचार रहित, छलरहित, निश्छल, शुचि। अव्याघात (वि०) घात रहित, बाधा रहित। अव्यापक (वि०) विशेष, व्यापकता का अभाव, विस्तार
रहित। अव्यापार (वि०) १. क्रियाशीलता रहित, अव्यवहारिक। २.
व्यापार का अभाव। अव्याप्त (वि०) जो लक्षण एक देश रहे। अव्याप्तिः (स्त्री०) लक्षण घटित न होना, एक दोष विशेष।
अध्ययनादि-सर्वञ्चाव्याप्त्यति व्याप्तिदोषतः। (हित०पृ० १७)
अव्याप्य (वि०) सीमित, समस्त क्षेत्र के विस्तार से रहित।
आंशिक विद्यमानता। अव्याबाध (वि०) काम-विकारादि बाधा रहित, लौकान्तिक
देव 'अव्याबाध' कह जाते हैं। 'न विद्यते विविधा
कामादिजनिता आ समन्ताद् बाधा दुःखं येषां ते अव्याबाधाः।' अव्याहत (वि०) विरोध से रहित, निर्वाध। अव्युच्छेद (वि०) विवक्षित अर्थ को सिद्धि करने वाले वचन। अव्युच्छेदित्व देखें अव्युच्छेद। अव्युत्पन्न (वि०) यथार्थ स्वरूप का अभाव, अनिर्णीत,
अकुशल, अनुभव रहित। अवणी (वि०) व्रण रहित, घावविहीन, दोपरहित। "अव्रणी
व्रणेन दूषणेन रहितः" (जयो० वृ० ७/८९) अव्रत (वि०) व्रत का अभाव, नियम का पालन नहीं करने वाला। अश् (सक०) भोजन करना, आहार करना, उपभोग करना।
"यावन्नाग्निपक्वतां याति तावन्नहि संयमि अश्नाति।" (सुद० पृ० १३१) खर-रुचिरिन्दु-बिन्दुमश्नाति। (सुद०
पृ० १०४) 'सकृत्समश्नातु यथा न दातुः।' (जयो० २७/४६) अश् (सक०) १. व्याप्त करना, ग्रहण करना, आनन्द लेना,
जाना, पहुंचना। २. उपस्थित होना, रस लेना। अशकुनः (पुं०) अशुभ शकुन, अशुभ सूचना। अशक्तः (पुं०) अक्षम। (सम्य० ९४) अशक्तिः (स्त्री०) १. अक्षमता, बलहीनता। २. अयोग्यता। अशक्य (वि०) असंभव, असमर्थ। निखिलेऽप्याकाशे
मातुशक्यमासीत्। (जयो० वृ० १/२३) 'नागशक्यमपि
शक्यते' (जयो० २/५९) अशक्यता (वि०) असमर्थता, असंभवता। (जयो० वृ०५/१५) अशमनं (नपुं०) जिसके शमन नहीं, रोप, कोध "न शमनमशमनं
रोषः' (जयो० वृ० १०/९६) "तुभ्यं नमोऽशमन--
संशमनोदमाय" (जयो० १०/९६) अशक्नुवंत (वि०) असमर्थता युक्त, असहनीय, असंभवता
वाला। असोढम् (जयो० वृ० १४/२७) अशक्नुवंतो
युगपत्पतङ्गा (जयो० ८/५२) अशक्नुवान् देखें ऊपर अशक्नुवंत। अशङ्क (वि०) निडर, निर्भय, आशंका रहित. निश्शंक। अशङ्कित (वि०) आशङ्का नहीं करने वाला। (जयां० २/१२६) अशङ्किताकारित (वि०) आशंका नहीं करने वाला (विद्वान्),
निरर्गलप्रवृत्तिकारिणी। कुत्सिताचरणेवशङ्किताकारिता स्फुटमवादि नास्तिता। (जयो वृ० २/१२६)
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