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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविलम्बित १२३ अव्यथ अविलम्बित (वि०) शीघ्रकारिता, तात्कालिकता, क्षिप्र, आशुकारी। | अवृथा (अव्य०) निरर्थकता रहित, व्यर्थ न, सफलता पूर्वक। अविला (स्त्री०) भेड़। (सुद० ११८) अविवक्षित (वि०) अनभिप्राय युक्त, अनभिप्रेत, अनुद्दिष्ट। । अवृष्टि (वि०) वर्षाभाव, बारिश का न होना। अविवाद (वि० ) १. विसंवाद रहित, एक दूसरे के विवाद से | अवेक्षक (नपुं०) [अव ईक्ष् ल्युट] परिदर्शन, अन्य दर्शन। रहित, परस्पर सहयोगिता। (जयो० २६/५८) २. मेषादि- अवेक्षणीय (वि०) [अव+ईक्ष+अनीयर] अदर्शनीय, राशियुक्त। अविर्मेषस्तस्य वादं धरन्ति। (जयो० वृ० २६/५८) अवलोकनीय, देखने में अयोग्य, ध्यान योग्य। अविवादधर (वि०) विसंवाद रहित भाव के धारक। (जयो० अवेक्षा (स्त्री०) [अव ईक्ष् अङ्-टाप्] ०आंख से देखना, ०दृष्टि २६/५८) डालना, ०ध्यान देना, विचारना। अवेक्षा जन्तवः सन्ति न सन्तीति अविविक्त (वि०) १. विस्मित, आश्चर्यजनक। २. अविचारित, वा चक्षुषा अवलोकनम्।' जैन लक्षावली (१४.५) अचिन्तनीय। अवेद्य (वि०) ०अनभिज्ञ, नहीं जानने योग्य, गुप्त, रहस्यपूर्ण। अविवेक (वि०) अज्ञान, मूढ, ज्ञानाभाव, विचारशून्य। अवेद्यः (पुं०) वत्स, बछड़ा। "कुतोऽविवेकः स च मोहशापात् मोहक्षतिः किं जगतां अवेल (वि०) १. असीम, अनन्त, असामयिक। दुरापा। (वीरो० ५/२८) अवेला (स्त्री०) विकाल, समय की प्रतिकूलता। अविशङ्क (वि०) शङ्कारहित, संदेहरहित, निडर, साहसी। अवैद्य (वि०) अवैधानिक, संविधान के विरुद्ध, नियम विरुद्ध। अवैशद्य (वि.) विशदता रहित, विशेष रहित, स्पष्टता का अविशङ्कित (वि०) ०शङ्कारहित, नि:शंकित, निडरता युक्त, अभाव। साहसताधारी। अवोक्षणं (नपुं०) [अव+उ+ ल्युट्] झुककर सिंचन। अविशेष (वि०) १. सामान्य, भेद रहित। २. समानता, एकरूपता, अवोदः (पुं०) [अव+उंद्+घञ्] जल सिंचन्, गीला करना, सादृश्यता। आर्दकरण। अविश्रान्त (वि०) विश्राम रहित, निरन्तर, गमनशील। अव्यक्त (वि०) ०अस्पष्ट, अप्रकट, अदर्शनीय, अकथनीय, अन्यातिशायी ग्थ एकचक्रो, रवेरविश्रान्त इतीमशक्रः। __०अनुच्चरित। (जयो० वृ० ४/६०) (जयो० ११/२२) कदाचिदपि विश्रामं नैति। (जयो० ७० अव्यक्तकारणं (नपुं०) अस्पष्टकारण, अप्रकट हेतु। (जयो० ४/६०) ११/२२) अव्यक्तलेखाडित (वि०) अस्पष्ट लेखा से अङ्कित। (जयो० अविश्रान्तता (वि०) निरन्तरता, गमनशीलता, प्रगतित्व। ११/५८) ०धुंधली रेखा युक्त। (अविश्रान्तया निरन्तररूपेण भवित्री।' (जयो० १/११) अव्यक्तदोषः (पुं०) अनुमत दोष, अलोचनात्मक दोष। अविष (वि०) जहरशून्य, विषरहित।। ___ 'अव्यक्तः प्रायश्चित्ताद्यकुशलो। (मूल०११/१५) अविषः (पुं०) समुद्र, नदी, राजा, पर्वत, आकाश। अव्यक्तमनस् (नपुं०) संशय, विपर्यय युक्त मन। अविषय (वि०) १. अगोचर, अदर्शित, अदृश्य, अविद्यमान। अव्यक्तमिथ्यात्वः (पुं०) मोह स्वरूप मिथ्यात्व। २. न विद्यते विषयाणि इन्द्रियजन्य प्रवृत्तिः। जहां इन्द्रियों अव्यग्र (वि०) ०अक्षुब्ध, अनाकुल, स्थिर, प्रशान्त, सौम्य, का योग नहीं, आत्मजन्म। ०सरल, शान्त, ०सीधा, स्पष्ट। अविसंवादः (पुं०) १. परस्पर बाधा न पहुंचाना, पूर्वापर अव्यङ्क (वि०) दोष विवर्जित, निर्दोष। विरोध न करना। २. विच्छेद भाव। (जयो० २६/७४) अव्यञ्जन (वि०) •लक्षण विहीन, चिह्न रहित, ०अस्पष्ट, अविसंवादता (वि०) विच्छेद भावता। (जयो० २६/७४) लांछन युक्त। अवी (स्त्री०) [अवत्यात्मानं लज्जया इति अव्-ई] रजस्वला स्त्री। । अव्यत्यय (वि०) संज्ञा परिवर्तन, परस्पर बदलना। 'कुर्यात् अवीचि (वि०) तरंगशून्य, तरंग रहित। कौतुकतस्तन्नामव्यत्ययमथो शस्तम्।' (जयो० ६/६९) अवीर (वि.) कायर, बलहीन, शक्तिशून्य। अव्यथ (वि०) व्यथा रहित, पीड़ा मुक्त। 'वैरिषन् रसिति अवृत्ति (वि०) १. अविद्यानता, सत्ताविहीनता। २. वृत्ति/अजीविका वैरिसंग्रहमव्यथेकथि पथि स्थितोऽन्वहम्।' (जयो० ३/६) का अभाव, अपर्याप्त आश्रय। 'अव्यथे व्यथारहिते पथिमार्गे कष्टवर्जिते। (जयो० वृ० ३/६) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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