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अवहस्तः
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अवहस्तः (पुं० ) [ अवरं हस्तस्य इति ] हथेली का उन्नत भाग । अवहानि: (पुं०) हानि, क्षीण, क्षय, अवचव। अवहारः (पुं० ) [ अव+हण] १. चोर, २. मछली, (शार्क मछली), ३. सन्धि, विराम, ४. आमन्त्रण, ५. त्याग । अवहारक (वि०) [ अव इण्यत्] ले जाने योग्य हटाने लायक, दण्ड देने योग्य।
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अवहार्य (स०कृ० ) [ अव ह ण्यत्] हटाकर, दण्ड देकर । अवहालिका (स्त्री० ) [ अव+हल् + ण्वुल्+टाप्] १. दीवा, ०भित्ति, २. अवरोध ०बाधा, ३. ओट, ०ऊंचाई युक्त अवरोध अवहास: (पुं० ) [ अव+हस् घञ्] हंसी, मुस्कान, मंद
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हंसी,
० उपहास |
अवहेल (अक० ) ० अनादर करना, ०उपेक्षा करना, ० तिरस्कार करना, अपमान करना । कस्यापि प्रार्थनां कश्चिदित्येवमहेलयेत् । (सुद० पृ० १३४)
अवहेल: (पुं०) तिरस्कार, अपमान। अवान्तसत्ता (स्त्री०) प्रतिवस्तु व्यापिनी सत्ता, अपने स्वरूप के अस्तित्व की सूचना देना (पञ्चास्तिकाय पृ० ८) अवहेलन (वि०) उपेक्षक, तिरस्कारकर्ता ।
अवहेला (स्त्री० ) ० तिरस्कार, अपमान, ०अनादर, ०असम्मान। शुचस्तु भवतादवला। (जयो० ५/५३) अवहोलय (अक० ) भूलना, सन्देह करना।
अवाक् (अव्य० ) [ अव+अच्+क्विन] 'नीचे की ओर दक्षिण की ओर'
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अवाक् (वि०) तूणी ० चुप रहने वाला बालग्रमितोदारकान्तिमवाक् (जयो० ६/७८) १. मूक, चुप। २. मौन । अवाक्ष (वि०) [ अवनतान्यक्षाणि इन्द्रियाणि यस्य ] अभिभावक, संरक्षक |
अवागम् (अक० ) आक्रमण करना, आक्रान्त करना। अवाग्गोचरकृत् (वि०) अवक्तव्य रूप। (वीरो० १९ / ६ ) अवाग्र (वि० ) [ अवनतमग्रयस्य] नम्रीभूत, झुका हुआ। अवाच् (वि०) मूक, तूष्णी, मौन (वीरो० पृ० ३८) चुप रहने
वाला, बाणी विहीन दृष्ट्वाऽवाचि महाशयासि । ( सुद० ९८ ) अवाची (स्त्री० ) [ अवाच+रव] दक्षिण दिशा दक्षिणी । राहोरनेनैव
रविस्तु साचि श्रयत्युदीचीमथवाऽप्यवाचीम् (वीरो० २ / २९) अवाचीन (वि०) १. अधोगत, निम्नभूत, नम्रीभूत। २. उतरा हुआ। अवाच्य (वि०) १. दुष्ट, निकृष्ट, अस्पष्ट बोले जाने वाला, ० अस्पष्ट कथन, ० ० अकनीय।
अवांचित (वि०) [ अव+अ+क्त] निम्न मात्र झुका हुआ।
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अविकल - कुशल
अवादि (वि०) अकथित (जयो० २ / १२६ ) अवान (पुं०) [ अव+अन्-अच्] श्वास लेना। अवान्तर (वि०) अतिरिक्त, असम्बद्ध अधीन, सम्मिलित, अन्तर्गत।
अवान्तसत्ता (स्त्री०) प्रतिवस्तुव्यापिनी सत्ता, अपने स्वरूप को सूचना देना (पञ्चा०] वृ० ८)
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अवाप (भू०) प्राप्त उपलब्ध गृहीत । पुत्तलं स्फुटित भावमचापातो (सुद० ९५ )
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अवाप्ति (स्त्री०) [ अव+आप् क्तिन्] प्राप्त ग्रहण स्वीकार अवाप्य (सं० कृ० ) [ अव + आप् + ण्यत् ] प्राप्त करके, ग्रहण करके यामवाप्य पुरुषोत्तमः स्म (सुद० ११२) उमामवाप्य महादेवोऽपि (सुद० ११२)
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अवाम: (पुं०) सरलस्वभाव (जयो० १/१०८) सरल चित मृदुस्वभाव सत्यधर्ममयाऽवाममक्षमाक्ष क्षमाक्षक (जयो० १ / १०८) अवामं सरलस्वभावं मां (जयो० ० १ / १०८) अवायः (पुं०) १. अपाय, निश्चय, दृढ़, भाषादि विशेष के ज्ञान से यथार्थ रूप में जानना 'तत्वप्रतिपत्तिरवायः' (सिद्धि वि०२/९)
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अवारः (पुं०) किनारा, तट
अवारीण (वि०) नदी पार करने वाला |
अवावट (पुं०) दूसरी स्त्री से उत्पन्न पुत्र अवावन् (पुं०) चोर ।
अवासस् (वि०) वस्त्र विहीन, वस्त्ररहित, नग्न । अवास्तव (वि०) अवास्तविक, विवेक रहित, निराधार, निराश्रय, निर्मूल ।
अवि: (पुं०) १. मेंढा, मेष । कस्येति यमस्याविलान्तीत्येतेषु
वरमिमं सारात् (जयो० ६/४७) अवि वाहनरूपं मेघ लान्तीति । (जयो० वृ० ६/४७ ) । २. सूर्य, ३. पर्वत, ४. वायु, हवा, पवन। (जयो० २२/५) ५. ऊनी कम्बल। अवि: (स्त्री०) रजस्वला स्त्री । अविक : (पुं०) भेड।
अविकत्व (वि०) अहंकार नहीं करने वाला। अविकत्थन (वि०) अभिमान पूर्वक नहीं कहने वाला । अविकल (वि०) अक्षत, पूर्ण, पूरा पद समयना
व्यञ्जनमदलमविकलमपि च सुधाया (सुद० ७२ ) । अविकल - कुशल (वि०) १. बुद्धिमती सम्पूर्ण कुशलक्षेम त्वं
चाविकल कुशला बुद्धिमती (जयो० वृ० १४/५५) २. पूर्ण जल वाली, निरन्तर जल प्रवाहित करने वाली ।