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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनियारा १७ अनिवार्य अनियारा--वि० (सं० अणि + प्रार- जा सके, जो चुनाव के योग्य न हो, न प्रत्य. हि. ) नुकीला, पैना, नोकदार, निर्वाचनीय । धारवाला, तीचण, तीखा, “ये अनियारे अनिल-संज्ञा, पु. (सं० ) वायु, हवा, अरैं 'बलदेवजू'-" " अनियारे दीरघ- पवन, वसुविशेष बतास (दे०) एक देवता, दृगनि" वि० " बेधक अनियारे नयन, कश्यप और अदिति के पुत्र तथा इंद्र के बेधत करि न निषेध , .. वि० " जाहि लगै | भाई हैं, भीम और हनुमान इनके पुत्र थे । सोई पै जाने, प्रेमवान अनियारो "--- सू० । वायु ४६ हैं, इनका रथ कभी तो १०० बाँका, बहादुर, " चंपत राय बड़े अनियारे" | और कभी १००० घोड़ों से खींचा जाता वि० दे० (सं० अन्यारा ) जो न्यारा या है, यज्ञ में अन्यान्य देवताओं के समान पृथक न हो, स्त्री. अनियारी, वि० दे० इन्हें भी भाग दिया जाता है, दमयन्ती के बदमाश, बुरा, कुचाली-" कैसहु पूत होय सतीत्व का साक्ष्य इन्होंने दिया था, त्वष्टा अनियारी'' रामा० । के ये जामाता हैं । देह में ५ प्रकार की अनिरीति-वि० ( सं० ) अनिर्धारित, वायु होती है, प्राण, अपान, समान, अनिश्चित, अरी त अनरीति ( दे० )। उदान, और व्यान, “ सोइ जल अनल अनिरुद्ध-वि० ( सं० ) जो रोका न गया अनिल संघाता-" रामा० । हो, अवाध, बे रोक, जो रुका हुआ न हो, अनिलकुमार-संज्ञा, पु. (सं० यौ० ) संज्ञा पु० श्रीकृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के हनुमान, भीम । पुत्र जिन्हें ऊषा व्याही थी। अनिलघ्नक-संज्ञा, पु० (सं०) विभीतक, बहेड़े का वृक्ष । अनिर्णय-संज्ञा, पु. ( सं० ) द्विविधा, अनिलसखा-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) संदेह, संशय, अनिश्चय, अनवधारण, दो बातों में से किसी का भी निश्चय न मरुत्सखा, अग्नि, अनल, आग । होना। अनिलात्मज--संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) निर्दिष्ट-वि० ( सं० ) अनिश्चित, । वायु-पुत्र, हनुमान, भीमसेन, मारुती। अनुद्देशित, जो बताया न गया हो, अनिलामय--संज्ञा, पु. (सं० यौ० ) बात अनिर्धारित, असीम, अपार । रोग, अजीणं । अनिलाशी-संज्ञा, पु० यौ (सं० ) वायुअनिर्देश्य-वि० (सं० ) जिपके सम्बन्ध भक्षण से जीवन धारण करने वाला, में ठीक न कहा जा सके, अनिर्वचनीय, तपस्वी, सर्प, व्रत विशेष, बातभक्षी, अकथनीय । पवनसेवी। अनिचि -तवि० पु. ( सं० ) अपरिपक्क बुद्धि, अनालोचित, अविवेचित, अविचारित, अनिवारित--वि० (सं० ) अप्रतिबंधित, अवारित, वारण न किया हुआ, निवारण ऊहापोह, ज्ञान-शून्य । न करने योग्य। अनिर्वचनीय-वि० (सं० ) जिसका वर्णन अनिवार्य - वि० (सं० ) जिसका निवारण न हो सके, जिसके विषय में कुछ कहा न न हो सके, जो न हटे, जो अवश्य हो, जा सके, अकथनीय, अवाच्य, अवर्णनीय, जिसके बिना काम न चल सके, अवश्यवचनातीत । म्भावी, अवाध्य, कठिन, दुर्जय, अजेय, निर्वाच्य ..वि. (सं० ) जो बताया न | न टलने वाला, अवारणीय, दुरत्यय । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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