________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
ਬਾ
धूर्त - वि० (सं०) छली, ठग, चालबाज़ । संज्ञा, पु० (सं०) काव्य में शठनायक का एक भेद, विट् लवण, लोहे का मैल, धतूरा। धूर्तता - संज्ञा, स्रो० (सं०) ठगी, चालाकी, धूर्तताई (दे० ) ।
धूल - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० धूलि ) मिट्टी, रेत यादि का बारीक चूर्ण, गर्द, रज, धूलि । मुहा० - कहीं धूल उड़ना - बर्बादी होना, तबाही थाना, सन्नाटा या उजाड़ होना । किसी की धूल उड़ना ( उड़ाना) - भूलों और बुराइयों का सविस्तर वर्णन होना ( करना) निंदा या उपहास होना ( करना ) | धूल की रस्सी बटना - अनहोनी बात के पीछे पड़ना, धूर्तता से कार्य सिद्ध करना । धूल चाटना - अति विनम्र विनती करना । (आँखों में ) धून डालना ( भोंकना ) देखते देखते धोखा देना, चुग लेना, अंधेर करना । किसी बात पर धूल डालना - दबा देना, फैलने न देना, ध्यान न देना । दर दर की धूल फाँकना ( छानना ) -मारा मारा फिरना । धूल में मिलना (मिलाना) - नष्ट या चौपट होना ( करना ) । पैर ( जूतों ) की धूल - थति तुच्छ वस्तु, नाचीज़ | सिर पर धूल डालना - सिर धुनना, पछिताना, धूल सी तुच्छ बस्तु । मुहा० - धूल समझना - अति तुच्छ जानना, किसी गिनती में न लाना । धूला - संज्ञा, पु० (दे० ) भाग, टुकड़ा । धूलि - संज्ञा, खो० (सं०) गर्द, धूली, धूल । यौ० धूली-लव | "धुली - लवः शैलताम्" । धूवाँ - संज्ञा, पु० दे० (सं० धूम ) धुनाँ । धूसना - स० क्रि० (दे० ) अनादर करना, कोसना, गाली देना ।
६६२
धूसर, धूसरा, धूसला - वि० दे० (सं० धूसर ) मटमैला, खाकी, मटियारा, कुछ कुछ पांडु वर्ण । " धूसर धूरि भरे तन श्राये" - रामा० । धूल भरा ( लगा ) | यौ० - धूल धूसर - धूल से भरा । " धूल धूसर भी करी पाता
धेनु
सदा सम्मान है" - रा० च० उ० । वैश्यों एक जाति, दूसर, भार्गव । यौ० धम-धूसर --मोटा-ताजा । लो०- ऋण की फिकिर न धन की चोट, ई धमधूसर काहे मोट" । धूसरित - वि० (सं०) धूल से भरा । धूहा - संज्ञा, पु० (दे०) धोखा, एक खेल
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का मध्य स्थान |
धृक-धृगां- - अव्य० दे० ( सं० धिक् धिग् ) अनादर या अपमान सूचक शब्द, धिक । धृत - वि० सं०) धरा या धारण किया हुआ, स्थिर किया हुआ । "धृत सायक- चाप निषंग वरम्" - रामा० । धृतराष्ट्र - संज्ञा, पु० (सं०) एक जन्मांध राजा जो दुर्योधन के पिता और युधिष्ठिर के बड़े चाचा थे । अच्छे राजा से शासित देश, हद राज्य का राजा । वि० - अंधा ( व्यंग० ) । धृति - संज्ञा, स्त्री० (सं०) धारण, ठहराव, धैर्य, धर्म की स्त्री, एक छंद (पिं० ) । धृतिः क्षमा दयास्तेय शौचमिन्द्रियनिग्रहः " मनु० । धृतिमान- संज्ञा, पु० (सं०) स्थिर चित्त, taraja, धीर-गंभीर । त्रो० धृतिमती । धृष्ट - वि० (सं० ) निर्लज्ज, ढीठ, उद्धत, एक नायक विशेष | "करे ऐब निरसंक जो, st a far के मान | लाज धेरै मन में नहीं, नायक धृष्ट निदान " -- रस० । स्रो० धृश । धृष्टकेतु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिशु पाल का पुत्र जो पांडवों की ओर से महाभारत में लड़ा था ।
न
धृष्णु - वि० (सं०) प्रगल्भ, निर्लज्ज | धृष्टता - संज्ञा, स्रो० (सं०) ढिठाई । धृष्टद्युम्न - संज्ञा, पु० (सं०) पंजाब देश के राजा द्रुपद का पुत्र ।
धृष्य - वि० (सं०) घिसने योग्य, घर्षणीय । धंगामुटि, धींगामस्ती -- पंज्ञा, स्त्री० (दे० ) मुक्कामुक्की, घुस्साघुस्सी, घुस्समघुस्सा । क्रि० वि० - जबरदस्ती |
धेन- संज्ञा, त्रो० दे० ( सं० धेनु ) गाय | धेनु – संज्ञा, त्रो० (सं०) हाल की न्यायी
For Private and Personal Use Only