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घाउ १५३
धाना प्र० क्रि० (दे० ७०) दौड़ कर, झपट कर। धातु-माक्षिक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सोना"सुमिरत सारद आवति धाई"-रामा०। माखी, स्वर्णमाक्षिक। धाउ-संज्ञा, पु. ( सं० धाव ) एक तरह का | धातु-बर्द्धक-वि० यौ० ( सं० ) वीर्य को नाच । अ० क्रि० विधि (दे० धाना ) दौड़। बढ़ाने वाली वस्तु । धाऊ-संज्ञा, पु० दे० (सं० धावन ) धावन, धातुषाद-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) रसायन हरकारा, दूत, चर।
बनाने का कार्य, धातु के साफ करने का धाक-संज्ञा, स्त्री० ( अनु० ) आतंक, शान, कार्य, कीमियागरी। रोबदाब, दबदबा । मुहा०-धाक बंधना धातुवादी-संज्ञा, पु० यौ०(सं०) धातु-विद्या(बाँधना)-पातंक, या रोब छा जाना, | __ वेत्ता, धातु-द्रव्य-परीक्षक । (धाक जमाना या जमना)।
धातु-साधिन्---वि० यौ० (सं०) धातु-द्वारा धाकना-अ० कि० दे० (हि. धाक) आतंक
प्रस्तुत, धातु से बनी। छाना, धाक बाँधना।
धात्री-संज्ञा, स्रो० (सं०) माता, माँ, धाय, धाकर-संज्ञा, पु० (दे०) नीच जाति, वर्ण
दाई. आँबला, पृथ्वी, गंगा, गाय । “धात्रीसंकर, दोगला। धाखा-संज्ञा, पु० (दे०) पलाश, छिउल,
फलं सदा पथ्यम्'-वैषा। ढाख, ढाक।
| धात्री-विद्या--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) बालक धागा--संज्ञा, पु० दे० (हि. तागा) या बच्चा के जनाने और पालन-पोषण करने तागा, डोरा, सूत । " कच्चे धागे में बँधे । की विद्या, धात्री-विज्ञान, धात्री-कला। आएँगे सरकार यहाँ"।
धात्वर्थ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धातु का अर्थ, धाड़ा-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. डाढ़ ) डाढ़, “उपसर्गेण धात्वा वलादन्यत्र नीयते । दाद, दहाड़, ढाड़ । संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० धात्वितर-वि० यौ० (सं० धातु+इतर ) धार ) गरोह, जत्था, डाकुओं का मुण्ड या बिना धातु का, धातु-रहित । आक्रमण (धावा)।
धाधि-संज्ञा, स्त्री० दे०(हि० धधकना) लपट, धात-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० धातु ) धातु। घातकी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) धव का फूल।
ज्वाला। "चानन देह चौगुन हो धाधि" - धाता-संज्ञा, पु० दे० (सं० धातृ ) ब्रह्मा,
विद्या। विष्णु, शिव, एक वायु, शेष, सूर्य, विधि,
धान-संज्ञा, पु० दे० ( सं० धान्य ) शालि, विधाता । वि० (सं०) पालने या धारण करने
अन्न, व्रीहि, चावल का पिता। वाला, रक्षक, पालक ।
धानक-संज्ञा, पु० दे० (सं० धानुष्क) धनुधातु-संज्ञा, स्त्री. (सं०) किसी वस्तु का द्धारी, धनुष चलाने वाला, कमनैत, धुनिया, धारक पदार्थ, जैसे शरीर-धारक वात, पित्त, बेहना, एक पहाड़ी जाति । धानुक (दे०) । कफ आदि, गेरू, मैनसिल आदि, सोना, धानकी-संज्ञा, पु० दे० (हि० धानुक) धनुषचाँदी आदि, भू आदि मूल शब्द (व्या०)। धारी, कमनैत । धातु-क्षय - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) प्रमेहरोग, । धानपान-वि• यौ० दे० (हि० धान+पान)
क्षयी रोग, धातुक्षीणा, धातुक्षयता। पतला दुबला, दुर्वल, कोमल ।। धातुपुष्ट- वि० यौ० (सं.) वीर्य को गाढ़ा धानमाली--संज्ञा, पु. (सं०) बैरी के बाणों और अधिक करनेवाली औषधि ।
के रोकने की एक क्रिया। धातु-मर्म - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धातु का धाना -अ० कि० दे० (सं० धावन) दौड़ना, साफ करना।
भागना, प्रयत्न करना . धाधना (दे०)। भा० श० को०-१२०
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