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धारि
धान।
ঘনায়
१५४ धानाचूर्ण-संज्ञा, पु. (सं०) सत्तू, मुंजे जव धाय -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धात्री ) धात्री, और चने का प्राटा।
दाई, धायी, दूध पिलाने वाली स्त्री। संज्ञा, धानी-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) जगह, स्थान, ठौर, । पु० दे० ( सं० धातकी ) धध का वृक्ष । अ० संज्ञा, स्त्री० (हि. धान + ई-प्रत्य० ) धानों । क्रि० पू० का (दे० धाना ) धाइ, दौड़ कर । की पत्ती सा हलका हरा रंग । वि० हलके घायना, धावना*---अ० कि० दे० (हि. हरे रंग वाला। संज्ञा, स्त्री० (दे०) भूना गेहूँ, । धाना) दौड़ना, भागना । जव । संज्ञा, स्त्री०४ दे० (सं० धान्य ) धार-संज्ञा, पु. ( सं०) अखंड प्रवाह, वेग़
से पानी बरसना वर्षा का जल, क़ज़, प्रदेश, धानुक-संज्ञा, पु० दे० (स. धानुष्क) हथियार की पैनी बग़ल, बाढ़ । “बोरौं सबै धनुषधारी, धुनिया, एक पहाड़ी जाति ।। रघुवंश कुठार की धार में "-राम । धान्य-संज्ञा, पु० (सं०) चार तिल भर की मुहा०-धार चढ़ाना-किसी देवता पर तौल, धनियाँ (औष०) धान, अन्न, अनाज, दूध चढ़ाना । धार देना-दूध देना । धार एक पुराना हथियार।
निकालना-दूध दुहना, अस्त्र को पैना धाप-संज्ञा, पु० (हि० टप्पा ) कोश भर या बनाना । धार मारना - पेशाब करना। श्राधे कोश की नाप । संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. धार उलटना--अस्त्र की धार का कुंठित धापना ) संतोष, तृप्ति ।
होना । धार बाँधना-किसी हथियार धापना-अ० क्रि० दे० (सं० तर्पण, संतुष्ट की धार को किसी प्रकार निकम्मा कर
या तृप्त होना, अघाना, जी भर जाना । स० देना। सेना, दिशा। संज्ञा, स्त्री. (दे०) क्रि० (दे०) संतुष्ट या तृप्त करना । अ० कि. मालवे की प्राचीन राजधानी, धारानगरी।
दे० (सं० धावन ) भागना, दौड़ना। धारक-- वि० (सं०) धारण करने या रोकने धाबा-संज्ञा, पु० (दे०) अटारी, बाला खाना, वाला, ऋणी, कर्जदार। रसोई घर, ढाबा (प्रान्ती०)।
धारणा संज्ञा, पु० (सं०) थामना, अपने ऊपर धाभाई-संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० धा = धरना, पहनना, सेवन करना, मान लेना, धाय+भाई ) दूध-भाई।
अंगीकार करना, खाना, पीना। धाम--संज्ञा, पु० दे० (सं० धामन् ) स्थान, धारणा-संज्ञा, स्त्री०(सं०) बुद्धि, ज्ञान, विचार मंदिर, घर, शरीर, लगाम, शोभा, प्रभाव, अक्ल, समझ, स्मृति, योग का एक अग । तीर्थ, जन्म, विष्णु, ज्योति, ब्रह्म, स्वर्ग। धारणीय-वि० (सं०) धारण करने योग्य । "पतत्यधोधाम विसारि सर्वतः"- माघ । धारना --स० कि० दे० (सं० धारण ) धारण बिनु धनस्याम धाम धाम व्रज मंडल मैं " करना, उधार लेना । स० कि० (दे०)ढारना । ---ऊ. श० ।
धारा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) घोड़े की चाल, घामक-धूमक~संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० धूम पानी का बहाव, प्रवाह,झरना, सोता, हथिधाम ) धूमधाम ।
यार की बाढ़ या धार, अधिक वर्षा, समूह, धामिन--संज्ञा, पु० दे० (हि. धाना = ! मुंड, एक प्राचीन नगर (दक्षिण ) या शहर, दौड़ना ) एक बहुत तेज दौड़ने वाला। रेखा, मालवा की पुरानी राजधानी, कानून । साँप ।
धाराधर--संज्ञा, पु. (सं०) बादल, मेघ । धाय-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अनु० ) तोप या धारावाही-वि० (सं०) धारा सा स्वच्छंद, बंदूक के छूटने या आग के जलने का बिना रोक-टोक के चलने वाला। शब्दाभास।
| धारि*-संज्ञा, स्त्री० (सं० धारा) अखंड
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