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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धर्मचिन्ता 66 धर्मचिन्ता - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सत्कर्म, धर्म-कर्म की चिन्ता या विचार । धर्मजीवन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धार्मिक या धर्ममय जीवन, धर्मात्मा या धर्मचारी ब्राह्मण । धर्मज्ञ - संज्ञा, पु० (सं०) धर्म का जानने वाला, धर्मज्ञाता, धर्मज्ञानी, धर्मात्मा | संज्ञा, स्त्री० (सं०) धर्मज्ञता । देहि वासांसि धर्मज्ञ नोचेत राजेन्रवीमहे " - भाग० । धर्मज्ञान - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धर्मबोध, परलोक विचार, कर्तव्य - ज्ञान । वि० धर्मज्ञानी । धर्मतः:- भव्य० (सं०) धर्म का विचार या ध्यान रखते हुये, सत्य सत्य, धर्म से । धर्मतत्व - संज्ञा, पु०या० (सं०) धर्म की यथार्थता, धर्म-रहस्य, धर्म का मूल या सारांश । धर्मद्रोही - वि० ० (सं०) धर्मघाती, पापी धर्मी, धर्म का विरोधी । 15 ६५० धर्मशाला-धरमसाला | धर्मपत्नी - संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) विवाहिता स्त्री, पत्तो । धर्मपुत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा युधि - ष्ठिर, नर-नारायण, दत्तकपुत्र । ( सह० धर्मपिता, धर्ममाता ) । धर्मबुद्धि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) धर्माधर्म का विवेक, विचार, ज्ञान, भले-बुरे का ज्ञान । धर्मभीरु - वि० (सं०) धर्मभयधारी, जो धर्माचरण से डरे, धर्मात्मा । धर्मभ्राता धर्मबंधु- संज्ञा, पु० ये ० (सं०) सहपाठी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म-परायण - वि० संज्ञा, पु० ये ० (सं०) धर्मात्मा | संज्ञा, स्त्री० धर्मपरायणता । धर्ममूर्ति – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धर्मावतार, धर्मस्वरूप | धर्मयुग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सत्युग । युद्ध, " धर्मधक्का - संज्ञा, पु० ० ( सं० धर्म + हि० धर्मयुद्ध - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नियमानुसार धक्का ) धर्म करने से जो हानि हो । निश्चित नीत के अनुसार युद्ध । धर्मधुरंधर - वि० यौ० (सं०) धार्मिक नेता, धर्मरक्षक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा, धर्मात्मा, धर्माचार्य, धर्म में अग्रगामी | श्राचार्य | संज्ञा, स्त्री० (सं०) धर्मरक्षा | "धर्मधुरंधर सुनि गुरु- बानी " - रामा० । धर्मरक्षित संज्ञा, पु० (सं०) योग, मत का धर्मधुरीण-धरमधुरीन - (दे०) संज्ञा, पु० एक उपदेशक, जो शोक के समय में यवन" धरमधुरीन धर्मदेशों को गया था । वि० धर्म से रक्षित | संज्ञा स्त्री० धर्मधर्मराइ धर्मराय - संज्ञा, पु० यौ० दे० (सं० धर्मराज) धर्मराज, युधिष्ठिर, धर्मात्मा राजा । धर्मराज - संज्ञा, पु० (सं०) राजा युधिष्ठिर, धर्मात्मा राजा, यम धर्मलुप्तोपमा- संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० धर्मलुप्त + उपमा ) उपमा अलंकार का एक भेद जिसमें उपमेयोपमान का धर्म प्रगट नहीं रहता ( श्र०पी० ) । या ० (सं०) धर्म- पालक | गति जानी - रामा० । धुरीता । धर्म्मध्वज - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लोगों को धोखा देने धौर छलने के लिये धर्म का आडंबर करने वाला, पाखंडी, छली, राजा जनक । धिक धर्मध्वज धकधारी " रामा० । वि० -धर्म ही की ध्वजा वाला । धर्मध्वजी – संज्ञा, पु० यौ० (स० धर्मध्वजिन्) पाखंडी, भाडंबरी । स्त्री० धर्मध्वजिनी । धर्मनिष्ठ - वि० यौ० (सं०) धर्मपरायण, धर्म-प्रेमी, धर्मारमा, धार्मिक । धर्मनिष्ठा - संज्ञा स्त्री० या० (सं०) धर्म में धर्मव्याध - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जनकपुरप्रेम, भक्ति, श्रद्धा और प्रवृत्ति । निवासी एक बहेलिया जिसने एक वेद पाठी ब्राह्मण को धर्म-तत्व समझाया था । धर्मशाला-धरमसाला (दे० ) - (संज्ञा, स्त्री० यौ० धर्मयाजक - संज्ञा, पु०या० (सं०) पुरोहित, पौराणिक | धर्मवीर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जो धर्म-कर्म करने में साहसी हो । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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