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धरहरा
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धर्मचारी घरहरा-संज्ञा, पु० दे० (हि० धर = ऊपर+ धर्ता-संज्ञा, पु. ( सं० धर्तृ ) धरता (दे०) घर ) मीनार धौरहरा (ग्रा०)।
धारण करने वाला । यौ०-कर्ताधर्ताघरहरिया -संज्ञा, पु० दे० (हि. धरहरि )। पूर्ण अधिकारी। बीच-बिचाव या रक्षा करने वाला। धर्म-संज्ञा, पु. (सं०) धरम (द०) स्वभाव, धरा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भूमि पृथ्वी, संसार, प्रकृति, गुण, कर्त्तव्य, सुकृत, सुकर्म, सदाएक छंद । “धरा को स्वभाव यहीतुलसी जो, चार, लक्षण, दान-पुण्य, सत्कर्म, लोकफरा सो झरा श्री जरा सो बुताना"। परलोक बनाने वाले कर्म । “यतोऽभ्युदय धराऊ-वि० दे० (हि. धरना-पाऊ-- निश्रेयस सिद्धिः स धर्मः"--वैशेषि० । यौ० प्रत्य० ) जो विशेष अवसरों या उत्सवों को धर्मकर्म । मुहा०-धर्म कमाना-धर्म छोड़ कभी न निकाला जावे, बहुमूल्य, का फल जोड़ना। धर्म बिगाड़ना-धर्म बदिया, पुराना।
भ्रष्ट करना । धर्म छोड़ना-ईमान छोड़ देना। धराक -संज्ञा, पु० दे० (हि० धड़ाक )
धर्म लगती कहना-सत्य, ठीक या धड़ाक।
उचित बात कहना। धर्म-कर्म का पक्काघरातल-संज्ञा, पु. या० (सं०) ज़मीन का
कर्तव्य-कर्म या सत्कर्म करने में दृढ़ । ऊपरी भाग, भूमि, पृथ्वी, क्षेत्रफल, रकबा ।
धर्म से कहना (बोलना)-सच सच कहना, धरती-संज्ञा, स्त्री० (दे०) पृथ्वी। धराधर-धराधरन-संज्ञा, पु. यो० (सं०)
मत, सम्प्रदाय, पंथ, ईमान, कानून, नीति। पहाड़, शेष, विष्णु।
धर्म-कर्म--- संज्ञा,पुख्यौ०(सं०) धर्म ग्रन्थानुसार, घराधार-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शेष जी।
आवश्यक कर्म, दान, दया, परोपकारादि ।
| धर्मकाय -- संज्ञा, पु. यो० (सं०) बुद्ध जी। धराधिप, धराधिपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भुपाल, राजा।
धर्मकृत्य-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) धर्म-कर्म, धराधीश-धराधीश्वर-संज्ञा, पु. यौ०
धर्म-कार्य।
धर्मकोष --- 'संज्ञा, पु० यो० (सं०) धर्म-संचय । ( सं० ) राजा, भूप, धरेश, धरापति ।।
धर्मक्षेत्र- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कुरुक्षेत्र, घराना-स० कि० दे० (हिं० धरना का प्रे०
पुण्य क्षेत्र, तीर्थ, धरम-छेत्र । " धर्मक्षेत्रे कुरु. रूप ) पकड़ाना, 9भाना, टेकाना, रखाना,
__ क्षेत्रे समवेता युयुत्सवः"- गीता। मुकर्रर करना। पू० का० (दे०) धरि, धराय।
| धर्मगति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) धर्म का धरापुत्र-धरासुत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०)
मार्ग, धर्म-तत्व । मंगल ग्रह, भौम । धरा-पुत्री-धरासुता--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
धर्मग्रन्थ--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धर्म-शिक्षक सीता, जानकी।
पुस्तकें, श्रुति, स्मृति, पुराण आदिक। धरासुरी-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्राह्मण । धर्मघड़ी-संज्ञा, स्त्री० या. (सं० धर्म + हि० धराहर-संज्ञा, पु० दे० (हि. धरहरा ) धर
घड़ी) बड़ी घड़ी जिसे सब कोई देख सके। हरा, मीनार ।
धर्मचक्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धर्म-समूह, धरित्री-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भूमि, पृथ्वी, बुद्ध जी की धर्म-शिक्षा। भूमि, धरतो (दे०)।
धर्मचा -संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) धर्माचरण, धरैया -संज्ञा, पु० दे० (हि. धरना ) धर्म-कर्म करना। धरने वाला।
धर्मचारी- संज्ञा, पु० यो० (सं० धर्मचारिन् ) धरोहर-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. धरना) प्रमा- धर्म-कर्म या धर्माचरण करने वाला। वि० नत, थाती, न्यास (सं०)। । (सं०) धर्मपरायण । मो० धर्मचारिणी।
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