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धमोका
धरहरना धमोका-संज्ञा, पु. (दे०) एक तरह की धरधराना*-अ० क्रि० दे० (अनु०) धर खंजरी।
धर शब्द करना। धम्मिल्ल-संज्ञा, पु० (सं.) बनी हुई, बेनी धरन-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. धरन ) पाटन गुही चोटी।
का बोझा सँभालने वाली लकड़ी, टेक, थूनी, धयना-धैना-अ० कि० दे० (हि. धाना) गर्भाशय और उसके सँभालने वाली नस, दौड़ना, धावा मारना। संज्ञा, पु. (दे०) गर्भाशय का आधार, टेक, हठ । संज्ञा, पु. दुष्टता, शरारत । " नयना धयना करत हैं, (दे०) धरना, पकड़ना। सिंज्ञा, स्त्री० दे० उरज उमैठे जात"-वि०।
(सं० धरणि ) धरनि, पृथ्वी, भूमि । धरंता--*—वि० दे० (हि. धरना) ग्रहण, धरनहार* --- वि० दे० (हि. धरना- हार करने या पकड़ने वाला।
-प्रत्य०) धरने या धारण करने वाला । धर-वि० (सं०) धारण या ग्रहण करने | "मानहु शेष अशेष धर, धरनहार बरबंड"। वाला। संज्ञा, पु. (दे०) पर्वत, कच्छप, -राम० । स्त्री०-धरनहारी। विष्णु, धड़ । संज्ञा, स्त्री० (हि. धरना) धरने | धरना-स० क्रि० दे० (सं० धरण) पकड़ना, का भाव । यो०-धर-पकड़-गिरफ्तारी,
लेना, ग्रहण करना, रखना। संज्ञा, पु० (दे० बन्दी करना।
अ०) प्राग्रह, रोक, घड़जाना । मुहा०धरका -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. धड़क)धड़का धर-पकड़ कर-बलात्, ज़बरदस्ती। धरा धरकना-अ. क्रि० दे० (हि. धड़कना ) रह जाना-पड़ा रह जाना, काम न आना। धड़कना, कँपना, डरना।
संज्ञा, पु० (दे० श्राधु०) किसी के द्वार पर धरण-धरन--संज्ञा, पु० दे० (सं० धारण ) किसी बात के लिये हठ-पूर्वक बैठना, या धारण, धनी (दे०)।
अड़ जाना, और जब तक कार्य पूर्ण न धरणि-धरनि (दे०)-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भूमि हो न उठना. आग्रह । मुहा० आधु०)पृथ्वी । “ धरहु धरनि धरि धीर न डोला। धरना देना ।। -रामा।
धरम -संज्ञा, पु० दे० (सं० धर्म) स्वभाव, धरणिधर-संज्ञा, पु० (सं०) धनिधर, भूमि | दान-पुण्य, अच्छा काम, धर्म ।
का धारण करने वाला, पहाड़, शेष, विष्णु। धरवाना-स० क्रि० दे० (हि. धरना का प्रे० धरणी-धरनी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) भूमि। रूप) धरने का कार्य दूसरे से कराना, धराना। संज्ञा, पु० (दे०) धरनीधर ।
धरषन-धरसन* - स० कि० दे० (सं० धर्षण) धरणि-सुता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सीता मलना, दबाना, पराजित या दलित करना। जी।" विवश करावै सुधि, धरणि-सुता की धरसना-अ० क्रि० दे० (सं० धर्षण) दबना, जाते हिय हहरत है "-स्फु०।। | डरना । स० क्रि० (दे०) दबाना, अपमानित धरता-धर्ता-संज्ञा, पु० दे० (हि. धरना, करना। सं० धर्तृ ) धरोहर धरने वाला, देनदार, धरसनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धर्षणी ) कर्जदार, ऋणी, धरने वाला। यौ० कर्ता- दर्षणी, धर्षणी। धरता-सब कुछ करने वाला।
धरहरा-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. धरना+हर धरती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धरित्री) ज़मीन। | -प्रत्य०) धर-पकड़, बीच-बिचाव, रक्षा, धरधर -संज्ञा, पु० दे० (सं० धराधर ) धैर्य, सहाय, अवलंब । “रवि सुरपुर धर पहाड़ । संज्ञा, स्त्री० धड़ धड़।
हर करै, नर हरि नाम उदार"-नरों। धरधरा*-संज्ञा, पु० दे० (अनु०) धड़कम। धरहरना*--अ० क्रि० दे० (अनु०) धड़धड़ाना।
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