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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनरसना ८० प्रमलेख खेद, रंज, रसहीन काव्य, फूट, बिगाड़, | अनर्थक - वि० (सं० ) निरर्थक, अर्थ-रहित, उदासी, विरसता, वि०-अनरसी-दुष्ट, !, व्यर्थ, बेमतलब, बेकायदा, निष्प्रयोजन, बुराई करने वाला। निष्फल । अनरसना-अ० क्रि० (दे०) उदास होना, अनर्थकारी-वि० (सं० अनर्थकारिन् ) खिन्न होना, " हँसे हँसत अनरसे अनरसत उलटा मतलब निकालने वाला, अनिष्टकारी, प्रतिबिंबित ज्यों ज्यों झाँई " गीता । हानिकारी, उपद्रवी, उत्पाती, अनर्थ करने अनरसा -वि० (हि. अन+रस) अन- वाला, स्त्री० अनर्थकारिणी।। मना, उदास, अस्वस्थ, शिथिल, माँदा, अनह- वि० (सं०) अनुपयुक्त, अयोग्य, सुस्त, बीमार, संज्ञा पु० (दे०) एक प्रकार कुपात्र। का पक्वान्न, अंदरसा (प्रान्ती० )। | अनल - संज्ञा, पु० (सं० ) अग्नि, श्राग, अनराता-वि० (हि. अन+ राता ) चीता, भिलावां, भेला, पित्त, बसुभेद, तीन बिना रँगा हुआ, सादा, प्रेम में न पड़ा | की संख्या। हुआ, विरक्त, स्त्री० अनराती। अनलपक्ष-संज्ञा, पु० (सं० यौ०) एक अनति -संज्ञा स्त्री० दे० (हि. अन+ चिड़िया, जो सदा अाकाशही में उड़ती रीति ) कुरीति, कुचाल, बुरा रस्म, अनुचित रहती है पृथ्वी पर नहीं पाती, और अपने व्यवहार। अंडे आकाश से गिरा देती है वह पृथ्वी पर प्रनरीती-वि० दे० ( हि० अन+रीती ) आने से पूर्व ही फूट जाता है और बच्चा (सं० प्ररिक्त ) जो रिक्त या खाली न उसी समय से उड़ने लगता है। हो, संज्ञा स्त्री० बुरी रीति । " अनलपच्छ को चेटुना, गिर्यो धरनि अनवि-वि० स्त्री० दे० ( सं० अरुचि ) अरराय । बहु अलीन यह लीन है, मिल्यौ अनिच्छा, मंदाग्नि, अरुचि । तासु को धाय ॥ वि० मा०।" अनरूप-वि० (हि अन+रूप ) कुरूप, अनलप्रभा-संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ० ) ज्योभद्दा, बदसूरत, असमान, असदृश ।। तिष्मती नामक एक लता विशेष, अग्नि शिखा, दीप्ति । प्रनगल - वि० (सं० ) बे रोक, बेधड़क, व्यर्थ, अंडबंड, अबाव, अप्रतिहत, प्रतिबंध अनलप्रिया- संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ० ) अग्निरहित, लगातार। भार्या, स्वाहा। अनत्तमुख-वि० (सं० ) जो अग्नि के द्वारा अनर्घ - वि० (सं०) बहु मूल्य, कीमती, पदार्थों को ले, संज्ञा, पु०-देवता, ब्राह्मण । कम मू य का, सस्ता । " अग्निमुखाः वै देवाः -श्रुति । अनध्य-- वि० (सं०) अपूज्य, बहु मूल्य, अनल्प-वि० (सं०) बहुत, अल्प नहीं, अमूल्य, अप्रशस्त । अधिक। अनर्जित-नि० (सं० ) अनुपार्जित, बिना अनलस--वि० (सं० ) घालस्य रहित, श्रम के प्रात, बिना कमाया हुश्रा। फुर्तीला, चैतन्य, परिश्रमी, उद्योगी। अनथ-संज्ञा, पु० (सं०) विरुद्ध अर्थ, उलटा अनलायक -वि० दे० (हि. अन+लायक मतलब, कार्य-हानि, अनिष्ट, ह.नि, विपद्, अ.) नालायक, अयोग्य, मूर्ख । अधर्म से प्राप्त धन, व्यर्थ, निःफल, | प्रनलेख-वि० (दे०-अन+लेख ) गोअनुचित, अकाज, बुराई, बिगाड़, दुष्प- चर, अदृश्य, अलख, " श्रादि पुरुष अनरिणाम । लेख है"- दादू। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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