SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रनभो अनरस प्रनमा --संज्ञा, पु० दे० (सं० अन+भव | अनमिलता- वि. (हि. अन + मिलना) -होना) अचंभा, अचरज, अनहोनी बात, अप्राप्य, अलभ्य, अदृश्य, अनमेल का भाव, असम्भव, आश्चर्य, अचरज, वि. अपूर्व, न मिलना, असंयुक्तता, असंबद्धता। अलौकिक, अद्भुत । अनमीलना-सं० कि० (सं० उन्मीलन ) अनभारी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. भोरा आँख खोलना। =भुलावा ) भुलावा, धोखा, चमा, वि० अनमूल-वि० दे० ( सं० अमूल्य ) ~~( अन + भारी-भोला ) जो भोली-भाली! अमूल्य, वेश क्रीमती, (हि. अन 7 मूल ) न हो, चतुर, चालाक। बेजड़, मूल रहित, बेबुनियाद।। अनभ्यस्त -वि० (सं०) जिसका अभ्यास अनमेल- वि० दे० (हि. अन + मेल) न किया गया हो, जिसने अभ्यास न किया बेनोड़, जिनका मेल न मिले, असंवद्ध, हो, अपरिपक्व, अनधीत । बिना मिलावट का, विशुद्ध, मित्रता के अनभ्यास-संज्ञा, पु० (सं० ) अभ्यास का । बिना। अभाव, मश्क न होना, अव्यवहार, बेमहा- अनमोल-वि० दे० (हि० अन + मोलवरा,-"अनभ्यासे विषं विद्या" मूल्य ) अमूल्य, मूल्यवान, बहुमूल्य, अनभ्र-वि० (सं० ) बादल-रहित । अमोल (दे० ) कीमती, सुन्दर, बढ़िया, मनमन--(अनमना ) वि० (सं० अन्य- उत्तम । मनस्क ) जिसका जी न लगता हो, उदास, अन्य-- संज्ञा, पु० (सं० ) व्यसन, विपद, खिन्न, सुस्त, बीमार, अस्वस्थ, उन्मन- अशुभ, अभाग्य, कुनीति, पाप, अनीति, स्त्री० अ.मनी। अन्याय, अमंगल । प्रनम्र--वि० (सं० ) अविनयी, उइंड, प्रनयन- वि० (सं०) नेत्र-रहित, अंधा, शोख, ढीठ, पृष्ट, अविनीत । अनैन (दे० ) “गिरा अनयन नयन बिनु घनमापा -वि. (हि. अन+मापना) बानी"-रामा० । न नापा जाने के योग्य । अनयस (अनइस )-वि० (दे० ) बुरा, श्रनमारग-संज्ञा, पु. ( हि० अन अस (दे० ) अनैसो स्त्रो० अनैसी। बुरा-+मारग-मार्ग) कुमार्ग, कुपथ वि०'अनमारगी-कुमार्गी। अनयास --कि० वि० (दे०) सं०अनिमिख-वि० दे० ( सं० अनिमेष ) अनायास, अकस्मात्, सहसा, बेश्रम । निमेष-रहित, कि० वि० एकटक, टकटकी अनरश - संज्ञा पु० दे० (सं० अनर्थ )लगाकर, संज्ञा, पु० देवता, मछली, सर्प ।। अनर्थ, अनिष्ट, बिगाड़, उपद्रव, अनरस्थ अनमिल-वि० (हि० अन -+ मिलना) (दे० प्रा० ) “मैं सठ सब अनरथ कर बेमेल, न मिलने के योग्य, बेजोड़, अस- | हेतू "- रामा० । म्बद्ध, बेतुका, अलग, निर्लिप्त अप्राप्य, अनग्ना - सं० कि. ( सं० अनादर ) "अनमिल पाखर अरथ न जापू" अनादर करना, अपमान करना, क्यों तू रामा० । कोकनद बनहि सरै औ औरै सबै "अनरै" "प्रकृति मिले मन मिलत है, अनमिल ते न मिलाय-वृन्द ऊपर दरसै सुमिल सं', अंतर अनरस संज्ञा पु० दे० (हि. अन + रस) अनमिल प्रॉक ।" वि०--अर्नालित, रस-हीनता, शुष्कता, रुखाई, कोप, मान, अनमिलत-दे०, न मिलने वाले । | मनोमालिन्य, मनमोटाव, अनबन, दुःख, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy