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हुश्रा।
अनवकाश
अनसमझ अनवकाश-वि० (सं० ) अवकाश-रहित, अनस्थिति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) चंचलता, निरक्सर।
अधीरता, आधार-हीनता, अवस्थानाभाव, अनवच्छिन्न-वि० (सं० ) अखंडित, अटूट, बास-रहित, समाधि प्राप्त हो जाने पर भी जुड़ा हुआ, संयुक्त।
चित्त का स्थिर न होना (योग)। अनवट-संज्ञा, पु. (सं० अंगुष्ट ) पैर के अनवस्थितचित्त-वि० (सं०) उन्माद, अंगूठे में पहिनने का छल्ला .. " अनवट
पागलपन, चांचल्य, अनभिनिविष्ट । विछिया नखत, तराई "-५० संज्ञा, पु०
अनवास्थत-वि० (सं० ) अधीर, चंचल, (हि. अयन + प्रोट) कोल्हू के बैल की
निरवलंब, अशांत, निराधार । आँखों का ढक्कन, ढोका, अन उट ( दे०)।
अनवासना-क्रि० वि० दे० (सं० नव+
हि-बसन) नये बरतन को प्रथम काम में अनवध-वि० (सं० ) निर्दोष, बेऐब,
लाना, किसी वस्तु का प्रथम बार प्रयोग में अनिंद्य, सुन्दर, स्वच्छ, मान्य, संभ्रान्त ।।
लाना । वि० दे० ( अन+वासना ) अनवधांग-संज्ञा पु० (सं० यौ०) सुन्दर
बासना-विहीनता, वि० (सं० अ+नव+ अंग, सुडौल शरीर स्त्रो० अनवधांगी।
पासना ) पुराने श्रासन वाली। अनवधान-संज्ञा, पु० (सं० ) असावधानी,
अनवांसा-संज्ञा, पु. ( सं० अण्वंश ) कटी बेपरवाही, अमनोयोग, अप्रणिधान, चित्त
हुई फसल का एक बड़ा पूला, औंसा, का अनावेश, ध्यानाभाव, अनाविष्ट ।
मुठ्ठा, वि० दे०-प्रथम बार प्रयोग में लाया 'अनवधानता- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) मनोयोग शून्यता, प्रमाद, अनवहितता, असाव
अनवांसी-संज्ञा, स्त्री० (सं० अरावंश ) एक धानता।
विस्वे का भाग, विस्वांसी का बीसवाँ अनवधि-वि० (सं० ) असीम, बेहद,
हिस्सा । वि० स्त्री० दे० ( अनवासना ) प्रथम अवधि रहित । क्रि० वि०-सदैव, निरंतर,
बार प्रयुक्त की हुई। हमेशा।
अनवाद -संज्ञा, पु० दे० ( सं० अन्द+ अनवय-संज्ञा पु० (दे०) (सं० अन्वय ) | वाद ) बुरा वचन, कटु भाषण, संज्ञा पु. वंश, कुल, छंद के पदों का गद्य के रूप में | दे०-शरारत, बुराई, नटखटी। वि. अनव्यवस्थित करना।
वादा-शरारती, नटखट । अनवरत-क्रि० वि० (सं०) निरंतर, | अनशन -संज्ञा, पु० (सं०) उपवास, सतत, लगातार, हमेशा, अजस्र, अविरत, | निराहार व्रत, अन्न-त्याग । नित्य, सर्वदा।
अनश्वर-वि० (सं.) नष्ट न होने वाला, अनवसर-संज्ञा पु. (सं० ) अवसर न | अविनाशी, अटल, नित्य, सनातन, स्थिर, होना, कुसमय, बेमौका, निरवकाश। शाश्वत । अनवस्था--संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्थिति- | अनसखरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (अन+सखरी) हीनता, अव्यवस्था, आतुरता, अधीरता, पक्की रसोई, घी में पका हुआ भोजन, न्याय में एक प्रकार का दोष, दुर्दशा, निखरी रसोई। .. अवस्था रहित, दरिद्रता, अस्थिरता। अनसिखा-वि० ( दे० ) अशिक्षित, अपह, अनवस्थान-संज्ञा, पु. (सं०) वायु, मूर्ख, अजान।। अस्थायित्व, कुव्यवहार, अस्थिर, अवस्थिति- | अनसमझ-वि० दे० (हि० अन+समझ)
नासमझ, अज्ञान, बिना समझ का, मा० श. को०-११
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