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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तमोमय तमामय - वि० (सं० ) तमोगुणी, अज्ञानी, मूर्ख, क्रोधी, पाप प्रकृति, अंधकार युक्त । तमोर, तमोल - संज्ञा, पु० दे० (सं० ताम्बूल ) पान | ८१६ तमोरी- तमोली - संज्ञा, पु० दे० ( सं० ताम्बोली ) तम्बोली, पान बेचने वाला, बरई । तमोरिन-तमोलिन - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० ताम्बूलिनी ) तम्बोलिन, पान बेचने वाले की स्त्री, पान बेचने वाली । तमोहर - संज्ञा, पु० (सं० ) अंधकार - नाशक, श्रग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, ज्ञान, दीपक, गुरु, ब्रह्मा, शिव, विष्णु । तय - वि० ( ० ) पूरा या ठीक या समाप्त किया हुआ, निर्णित, निश्चित । तयारte - वि० दे० ( ० तैयार ) प्रस्तुत, तत्पर, ठीक, दुरुस्त, आमादा, तैयार (दे० ) | तरंग-तरंगा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पानी की लहर, मौज, स्वरों का उतार-चढ़ाव, चित्त की उमंग या मौज़ । वि० तरगी । तरंगवती - संज्ञा, स्त्रो० (सं०) नदी, सरिता । तरंगिणी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) नदी, सरिता । तरंगित – वि० (सं०) लहराता हुआ, हिलोरें भरता या मौजें मारता हुआ । तरकश तरकस - संज्ञा, पु० ( फा० ) तूणीर, भाथा, बारा रखने का चोंगा | तयना - ० क्रि० दे० ( हि० तपना ) तरकशी - तरकसी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० *†तपना, गर्म या दुखी होना । तर्कश ) छोटा तूरणीर या भाथा । तरंगी - वि० दे० (सं० तरंगिन ) लहर या तरंग-युक्त, हिलोर या मौज वाला, दिलचला, मन का मौजी, उमंगी । स्त्री० तरंगिणी | *6 परम तरंगी भूत सब 33 -रामा० । तर – वि० (फ़ा०) आर्द्र, गीला, भीगा, ठंढा, हरा, धनी । क्रि० वि० दे० (सं० तल ) तले, नीचे । प्रत्य० (सं० ) दो में से एक का आधिक्य बाचक, जैसे लघुतर । तरई तरैया) - संज्ञा स्त्री० दे० (सं० तारा ) तरइया (ग्रा० ) तारा, छोटा तारा । अ० क्रि० (दे० तरना ) पार हो, तर जावे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरखान "" 66 मोक्ष पावे । " राम कहते भवसागर तरई - स्फुट | वि० (दे०) तरैया - तरनेवाला । तरक - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० तड़कना ) तड़क | संज्ञा, पु० दे० (सं० तर्क ) अज्ञात विषय के ज्ञानार्थ किया हुआ प्रश्न, प्रतिपादन, योग्य प्रश्न, सोच-विचार । तत्व ज्ञानार्थमूहस्तर्कः " न्या० द० । तरकऊ - श्रव्य० (दे०) तर्क, विचार, रोष । तरकना +8 - अ० क्रि० दे० ( हि० तड़कना ) तड़कना, उछलना, कूदना, फाँदना । अ० क्रि० (सं० तर्क ) प्रश्न करना, पूछना, सोचविचार करना, तर्क - शक्ति । तरका - संज्ञा, पु० ( ० ) बरासत, मृतक व्यक्ति का छोड़ा हुआ माल जो उसके वारिस को मिले। तरकारी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० तरः = सज़ी + कारी) शाक, भाजी, एक वनौषधि । " तरकारी- सिगु-पंचोपण - घुणदयिता " वै० जी० । तरकि-तरकी - वि० दे० (सं० तर्किन् ) तर्क करने वाला, तर्क-शास्त्री | संज्ञा, स्त्री० (सं० ताडकी ) करनफूल, तरौनी, तड़की, तरकी ( प्रान्ती ० ) । तरकीब - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) बनावट, युक्ति, ढङ्ग, उपाय । तरकुल - संज्ञा, पु० दे० (सं० तड़ ) ताड़ का पेड़ । तरकुली - संज्ञा, खो० (सं० ताडंकी ) करनफूल, तरकी, तरौनी । " नील निचोल तरकुली कानन " - हरि० । तरक्की - संज्ञा स्त्री० ( ० ) उन्नति, बढ़ती । तरखा -संज्ञा, पु० दे० ( सं० तरंग ) नदी आदि की तीच्ण, बेगवान धारा । तरखान - संज्ञा, पु० ( सं० तक्षण) बढ़ई । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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