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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रदे ६४ पु० ( हि० अ + देश ) विदेश, जो अपना देश न हो, परदेश | प्रदेह - वि० (सं० ) बिना देह का, शरीररहित, संज्ञा, पु० कामदेव, अनंग, अनु विदेह | प्रदोख - वि० (दे० ) श्रदोष दोष-हीन | दोखी - वि० (दे० ) ( सं० प्रदोषी ) निर्दोषी | CC आय | प्रदोखिल* - वि० दे० (सं० प्रदोष) निर्दोष 'सुतै चि पिय श्राप त्यौं, करी अदोखिल "वि० । प्रदोष - वि० सं० ) निर्दोष, निष्कलंक बेब, निरपराध, निर्विकार दे० प्रदोस । अदौरी – संज्ञा, स्त्री० (सं०) ऋद्ध + हि० - बरी) उर्द की दाल से सुखाकर बनाई हुई बरी, कुँहडौरी मिथौरी | I श्रद्ध - वि० (सं० अर्ध ) श्राधा, अर्ध अद्धरज – संज्ञा, पु० (सं० अध्वर्यु ) एक प्रकार का यज्ञ कराने वाला पुरोहित, होम कर्ता । - अद्धा – संज्ञा, पु० ( सं० अद्ध ) किसी वस्तु का श्राधामान, पूरी बोतल की आधी नापवाली बोतल । श्रद्धी - संज्ञा, स्त्री० (सं०द्ध ) दमड़ी का श्राधा, एक पैसे का सोलहवाँ भाग, एक बारीक और चिकना कपड़ा, तनज़ेब । अदभुत - वि० (सं० ) आश्चर्यजनक, विलक्षण, विचित्र, अनोखा, अनूठा । संज्ञा पु० काव्य के नव रसों में से एक जिसमें विस्मय की पुष्टता प्रगटित की जाती है । अद्भुतालय - संज्ञा, पु० यौ० (सं० अद्भुत + श्रालय ) श्राश्चर्यजनक वस्तुयों का घर, अजायब घर । प्रद्भुतापमा -- संज्ञा, स्त्री० ( सं० यौ० अद्भुत + उपमा ) उपमालंकार का एक भेद, जिसमें उपमेय के उन गुणों को दिखलाया जाता है जिनका होना उपमान में सम्भव नहीं होता । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रदिष्टा अद्भर - वि० (सं०) पेटार्थी, लोभी, लालची पेटू । द्य - क्रि० वि० (सं० ) अब, श्राज, अभी । अद्यतन - वि० (सं० ) अद्यजात, श्राज का उत्पन्न, एक काल विशेष ( इसका विलोम अद्यतन ) अद्यापि - कि० वि० (सं० यौ० अद्य + अपि ) आज भी, अभीतक आजतक । अद्यावधि - क्रि० वि० ( सं० यौ० अध + अवधि ) अब तक आज से लेकर, अद्यारम्भ ( समय परिच्छेदार्थक व्यय ) । अद्रक - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) श्रार्द्रक, यादी, कच्ची सोंठ, अदरख । अद्रव्य -- संज्ञा, पु० ( सं० ) सत्ताहीन. श्रवस्तु असत् शून्य, अभाव वि० द्रव्य या धन-रहित, दरिद्र । श्रद्धा* - संज्ञा, स्त्री० (सं० श्रार्द्रा ) एक नक्षत्र विशेष | यद्रि - संज्ञा, पु० (सं० ) पर्वत, पहाड़, अचल, वृक्ष, शैल, सूर्य, परिणाम विशेष । अद्विकोला - संज्ञा स्त्री० ( सं० ) भूमि, पृथिवी । अद्रिज -संज्ञा, पु० (सं० ) शिलाजीत, गेरू, पर्वतजात वस्तु | द्विजा – संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अद्रितनया, पार्वती, वृक्ष, पहाड़ पर उत्पन्न होने वाली लता, गंगा । " अद्रितनया - संज्ञा स्त्री० (सं० यौ० ) पार्वती जी. गंगाजी, निंदिनी, अद्रिसुता, शैलजा, २३ वर्णों का एक वृत्त । प्रदिपति - संज्ञा, पु० (सं० ) श्रद्विराज, पर्वतराज हिमालय, नगराज । अद्रिवन्हि - संज्ञा, खी० (सं० यौ० अद्रि + वन्हि ) पर्वतोत्पन्न अग्नि, ज्वालामुखी की आग । अद्रिशृङ्ग - संज्ञा, पु० ( सं० यौ० ) पर्वत के ऊपर का भाग, चोटी । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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