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अद्वितीय
अधखाया
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अद्वितीय-वि० (सं०) अकेला, एकाकी, संज्ञाओं में ) प्राधा, जैसे-अधकचरा, अधजिसके समान दूसरा न हो, बेजोड़, अनुपम, खुला । धधधाधे-क्रि० वि० ( दे० ) प्रधान, मुख्य, विलक्षण, अतुल्य । । आधे श्राधे। अद्वैत--- वि० (सं० ) एकाकी, अकेला, अघकन-वि० (सं० ) नीचे किया हुश्रा, अनुपम, बेजोड़, एक, तरहित, भेद रहित । अधक्षेपण। अद्वितीय, शंकराचार्य का मत जो वेदान्त अधकचरा----वि० यौ० (दे० ) (सं० अर्ध के श्राशर पर है और जिसके अनुसार जीवन कब्चा हिं० ) अपरिपक्व, अधूरा, अपूर्ण,
और ब्रह्म में भेद नहीं दोनों एक हैं, संसार अकुशल, अदक्ष, स्त्री० अधकारी। मिथ्या है, ब्रह्म ही सत्य है.---संज्ञा पु०-ब्रह्म, अधकचरी--वि० (दे० ) अधूरी आदि । ईश्वर।
वि० (सं० अर्ध+कचरना-हि० ) श्राधा अद्वैतराद - संज्ञा, पु० सं० ) एक दार्श- कूटा पीपा, दरदरा, प्राधा कुचला हुआ। निक सिद्धान्त, जिपमें एक पैतन्य ब्रह्म की अधकच्चा--वि० यौ० ( दे० ) आधा सत्ता को छोड़ कर और किसी भी वस्तु या कच्चा अपरिपक्क । तत्व की सत्ता नहीं मानी जाती, और श्रात्मा अधककार --- संज्ञा, पु० यो० (दे० ) पहाड़ी
और परमात्मा में भी अभेद माना जाता है। हरी-भरी उपजाऊ भूमि । इसे ब्रह्मवाद या वेदाना भी कहते हैं। अधकपारी-अधकपाली- संज्ञा, स्त्री० यौ० अद्वैनवादी-संज्ञा, पु० (सं० ) अद्वैत मत (सं० अर्ध+ कपाल - सिर ) आधे सिर का का मानने वाला, वेदान्ती, एकेश्वरवादी,
दर्द--प्राधापीसी (दे०) (सं० अर्ध+ ब्रह्मवादी ।
शीश) सूर्यावर्त । अधः-अव्य० (सं०) नीचे, तले । संज्ञा
अधकरी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० यौ० श्राधा+ स्त्री०-पैर के नीचे की दिशा, संज्ञा पु० तल,
कर ) मालगुजारी, महसूल या किराये की पाताल।
आधी रकम जो एक नियत समय पर अदा अधःपतन-संज्ञा, पु० (सं० यौ० अधः
की जाये, किस्त । पतन ) नीचे गिरना अवनति, अधःपात,
अधकहा-वि० यौ० (हिं० प्राधा+कहना) दुर्दशा, दुर्गति, विनाश ।
अस्पष्ट रूप में कहा हुआ, अर्धस्फुटित, अधःपात---संज्ञा, पु० (सं० शौ० ) पतन,
प्राधा कहा हुआ।
अखिला-वि० (हि. यौ० आधा+ नीचे गिरना, दुर्दशा, अवनति ध्वंस, विनाश,
खिला ) आधा खिला हुया, अर्धविकसित, दुगति।
स्त्री० -अधखिली, "अरे अभी अधखिली श्रधः प्रस्तरण - - संज्ञा, पु. (सं० यो०)
कली है, परिमल नहीं पराग नहीं।" कुशासन, तृणशय्या ।
अधखुला-वि० ( हि० यौ० अाधाअधःशिरा----संज्ञा, पु० (सं० ) अधोमुख, खुलना ) श्राधा खुला हुअा, स्त्रीसूर्यवंशीय त्रिशंकु राजा।
अधखुली। अधात्तिा-संज्ञा, पु० (सं० यौ०) अधस्त्यक्त, अधखुले लोचन औ अधखुली पलकैं" निदित. ययाति राजा. त्रिशङ्क।
---पमाकर अध-अव्य० । दे० ) (सं० अधः नीचा, अधखाया-वि० यौ० (हि. आधा+ तले, श्राधा वि० ( सं० अर्द्ध प्राकृ० खाना ) आधा खाया हुश्रा, श्राधे पेट, अद्ध ) श्राधा शब्द का सूक्ष्म रूप, (यौगिक , जिसने पूरा नहीं खाया। भा० श० को०-१
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