________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जंभारि
७०४
जगजीवन जंभारि-संज्ञा पु० यौ० (सं०) इन्द्र, अग्नि, ज़कात-संज्ञा, स्त्रो० (अ०) दान, खैरात, बज्र, विष्णु।
कर, महसूल । ज-संज्ञा पु० (सं० ) मृत्युंजय, जन्म, पिता, | जकिता*-वि० दे० (हि० चकित) चकित, विष्णु, श्रादि-अंत में लघु और मध्य में गुरु | विस्मृत, स्तम्भित । जके, जकी (दे०) । वर्ण वाला एक गण (पि० ।।) । वि०-वेग
जकी-- संज्ञा, स्त्री० (दे० ) बुलबुल की वान, तेज, जीतने वाला । प्रत्य० - उत्पन्न, |
एक जाति । वि० बक्की, झक्की । जात, जैसे-जलज।
जक्त- संज्ञा, पु० दे० (हि. जगत ) जगत, जई-संज्ञा स्त्री० दे० (हि. जौ ) जौ की
संसार, दुनिया। जाति का एक अन्न, जौ का छोटा अंकुर जो
जक्ष-संज्ञा, पु० दे० (सं० यक्ष) यक्ष । मंगल द्रव्य के रूप में ब्राह्मण या पुरोहित भेंट
जमा- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० यक्ष्मा ) करते हैं, अंकुर, फलों की फूल-युक्त बतियाँ,
यचमा, तपेदिक (रोग), जच्छमा। जैसे कुम्हड़े की जई । वि० (दे०) जयी । जईफ़-वि. (अ.) बुड्ढा, वृद्ध, बूदा।
जखम -- संज्ञा, पु० दे० (फा० जख़म ) संज्ञा स्त्री० ( फ़ा ) ज़ईफ़ी-बुढ़ापा । ।
क्षत, घाव, मानसिक दुःख का आघात ।
जखन (ग्रा.)। मुहा०-जखम ताज़ा जकंद-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा. जगंद )
या हरा हो जाना-बीते हुये कष्ट का छलाँग, चौकड़ी, उछाल ।
फिर लौट या याद श्राना। जकंदना -प्र० कि० (हि. जकंद )
जखमी-वि० ( फ़ा० जखमी ) जिसे ज़ख़म कूदना, उछलना, टूट पड़ना।
लगा हो, घायल । जक-संज्ञा, पु० दे० (सं० यक्ष ) धनरक्षक भूत प्रेत, यक्ष, कंजूस, सूम । संज्ञा स्त्री०
जखीरा-संज्ञा, पु० ( अ० ) एक ही सी (हि० झक ) जिद्द, हठ, धुनि, रट । “छोड़ि
चीजों का संग्रह-स्थान, कोश, खजाना, ढेर, सबै जग तोहिं लगी जक"- नरो० । अ०
समूह. विविध पौधों और बीजों के बिकने कि० (दे०) जकना-रटना, बड़बड़ाना
का स्थान, बाटिका । "जोग जोग कबहूँ... न जानै कहा जोइ जग-संज्ञा, पु० ( सं० जगत् ) संसार, संसार जको"---ऊ० श० । ( वि० जको ) के लोग । *संज्ञा, पु० (दे०) यज्ञ, जग्य । जक-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) हार, पराजय,
जगजगा-वि० दे० (हि. जगजगाना ) हानि, पराभव, लजा। " सिवा तैं औरंग- चमकीला, प्रकाशित, जगमगाने वाला । जेब पाई ज़क भारी है।
जगजगाना-अ० क्रि० (अनु०) चमकना, जकड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० जकड़ना) जकड़ने
जगमगाना। का भाव, कसकर बाँधना । मुहा०--जकड़ जगजगाहट-संज्ञा, स्त्री० (हि. जगजगाना) बंद करना-खूब कसकर बाँधना, पूरी चमक, प्रकाश । तरह स्ववश करना।
जग-जगी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० जग+ जकड़ना-स० क्रि० दे० (सं० युक्त+करण) । जागी ) प्रसिद्ध, विख्यात, संसार में विदित। कसकर या सुदृढ़ बाँधना। अ० कि० "जगाजगी प्रभु कीर्ति तिहारी'--स्फु० । तनाव आदि से अंगों का न हिल सकना। | जगजीवन-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) संसार जकना*-अ० कि० ( हिजक या चक) का प्राण, दुनिया की जिंदगी, ईश्वर, वायु, भौचक्का होना, चकपकाना, झक में बोलना। जल । “जगजीवन जीवन की गति देखी" |
For Private and Personal Use Only