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अथिर गूढ, अगाध, बहुत अधिक, संज्ञा पु०- अदंग-वि० (सं० अदग्ध ) बेदाग़, शुद्ध, गहराई. जलाशय, समुद्र ।
निर्दोष, अछूता, अस्पृष्ट, साफ, निरपराध, प्रथिर - वि० ( दे० ) (सं० अस्थिर ) अदाग ( हि० प्र+दाग ) दे०, अदग्ग अस्थिर, चंचल, क्षणस्थायी।
(दे० ) अदागी-वि०। अथीर-वि० (दे० ) जो थिर, थीर ( सं० अदग्ध-वि० (सं० प्र+दग्ध ) न जला स्थिर) न हो, अशान्त ( क्रि० थिराना)। हुआ, जो दुखी न हो. सुखी। प्रथूल-वि० दे० (सं० स्थूल ) स्थूल, या अदत्त-वि० सं०) न दिया हुआ, जो स्थूल न हो।
असमर्पित, अप्रतिपादित, संज्ञा, पु. वह अथै-५० कि० (हि. अथना ) डूबा, वस्तु जिसके दिये जाने पर भी लेने वाले "अथै गयो ।
को लेने और रखने का अधिकार न हो अथोर-वि० ( हि अ+थोर-थोड़ा ) थोड़ा |
(स्मृति)। नहीं, अधिक, स्त्री० अथोरी, वि० ( दे० )
अदत्ता- संज्ञा स्त्री० (सं० ) अविवाहिता अथारा ।
कन्या, कुमारी, अनूदा।। अदंक ---संज्ञा पु० (सं० आतंक ) डर, भय,
अदद-संज्ञा स्त्री. (अ.) संख्या, गिनती,
संख्या का चिन्ह या सङ्केत, किता, जैसे ३ भातंक।
अदद। अदंड-वि० (सं० ) जो दंड के योग्य न
| अदन-संज्ञा, पु० (अ० ) अरब के किनारे हो, जिस पर कर या महसूल न लगे, !
पर एक बंदरगाह, नगर, जहाँ ईश्वर ने निर्भय, स्वेच्छाचारी, उइंड, बली, सज़ा से
आदम को रक्खा था, यह स्वर्ग का उपवन बरी, अडंड दे० संज्ञा पु० बिना मालगुजारी
भी माना जाता है (पैग़म्बरी मतानुयायियों की मुनाफ़ी भूमि, वि०-(अ+दंड-डंडा)
के अनुसार) संज्ञा पु० (सं० अद्-भक्षणे ) दंड या डंडे के बिना।
भक्षण, भोजन, जेवनार, आहार, खाना । अदंडनीय-वि० (सं० ) दंड पाने के योग्य
अदना-वि० (अ.) तुच्छ, छोटा, छुद्र, जो न हो।
मामूली, नीच । प्रदंडमान-वि० (सं० ) दंड के अयोग्य,
अदनीय-वि० ( सं० ) भक्षणीय, दंड से मुक्त, जो दंडित न हो, सदाचारी !
खाद्यवस्तु, भोजन । अदंड्य-वि० (सं० जिसे दंड न दिया
अदब-संज्ञा पु० (अ.) शिष्टाचार, जा सके।
कायदा, श्रादर-सम्मान, गुरु जनों का सत्कार अदंत-वि० (सं०) दंत-विहीन, जिसके
लिहाज़, वि०-बाअदब, बेअदब ।। दाँत न हों, बहुत थोड़े दिनों का, दूधमुख, " जिससे मिलती थी कभी दिल में बुजुर्गों दुधमुहा।
के जगह, वह अदब बच्चों के दिल से अदंद --वि० (सं० अद्वन्द) देखो, “ अद्वंद"
आज कल जाता रहा।" ----अकबर । इंद-रहित ।
अदबदाकर-क्रि० वि० (सं० अधि+ प्रदंभ---वि० (सं० ) दंभ-रहित, पाखंड
वद ) दे०, टेक बाँध कर, बलात्, हठात्, विहीन, सच्चा, निश्छल, स्वाभाविक,
अवश्य, ज़रूर, अदबदाय-दे० । प्राकृतिक, स्वच्छ, शुद्ध, निष्कपट । संज्ञा पु०
अदभ्र-वि० (सं०) बहुत, अधिक, अपार, शिव, महादेव।
अनंत। अदंश-वि (सं० ) जो दंशा न गया हो, अद्भुत- वि० (सं०) विलक्षण, विचित्र, बिना काटा हुआ, घाव-रहित, अद्वैष । अनोखा ।
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