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अथकचा
अथाह संशय, अकल्प, समुच्चय, पश्चात, तदनन्तर, अथर्वशिर-संज्ञा पु० (सं० ) अथर्ववेद का अब, तदुपरि, अनन्तर ।
७ वाँ उपनिषद् । प्रथकचा-संज्ञा पु० (दे०) बेठन, वेष्ठन, | अथर्वशिरा--संज्ञा पु० (सं० ) ब्रह्मा का लपेटने का वस्त्र।
जेष्ठ पुत्र, जिन्हें ब्रह्मा जी ने ब्रह्म विद्या प्रथव-अव्य (सं० ) और, संयोजक | सिखलाई थी. और जिन्होंने सर्व प्रथम अव्यय, और भी।
'अग्नि उत्पन्न कर आर्य जाति में यज्ञ का प्रथइ-कि० अ० (हि. अथवना ) " अथइ प्रचार किया था। गयो" --अस्त होना।
अथल--संज्ञा पु० (दे० ) जगान लेकर अथऊ ---संज्ञा पु० (हि. अथवना) जैनों का । दूसरे को जोतने बोने को दी गई भूमि । सूर्यास्त के पूर्व भोजन।
(सं०-स्थल, अस्थल ) स्थान, बुरा स्थान । अथक-वि० (सं० अ+ थक =थकना
अथवना-अ० क्रि० दे० (सं. अस्तमन ) हि० ) जो न थके, अश्रान्त, घोर,
सूर्यचन्द्रादि का अस्त होना, डूबना लुप्त अक्लान्त।
होना । चला जाना, तिरोहित होना। प्रथना --अ० क्रि० (७० दे०, सं० अस्त) | "उदित सदा अथइहि कबहूँना" ... रामा० । अस्त होना, डूबना. अस्तमित होना अथवा--अव्य० (सं०) एक वियोजक बूड़ना, नष्ट होना मरना।
अव्यय. पक्षांतर या प्रकरण में, किम्बा, प्रथमना-~-संज्ञा पु. (सं० अस्तमन) जहाँ कई शब्दों या पदों में से जहाँ किसी पश्चिम दिशा, उगमना का उलटा ।
एक का ग्रहण करना अभीष्ट होता है वहाँ अथरा-संज्ञा पु० (सं० स्थाल ) मिट्टी का इसका प्रयोग करते हैं वा या कै ( ब )।
खुले मुंह वाला चौड़ा बरतन नाँद। | अथाई--संज्ञा स्त्री० दे० (सं० स्थायी, ) स्त्री० अथरी।
बैठने की जगह बैठक, चौबारा, पंचायत अथर्व-संज्ञा पु० (सं०) एक वेद का नाम, करने का स्थान, घर के सामने का चबूतरा, चौथा वेद इसके मन्त्र द्रष्टा या ऋषि भृगु मंडली, सभा, जमाव — हाट-बाट, घर गली तथा अंगिरा गोत्र वाले थे। यह वेद ब्रह्मा | लथाई ., ... रामा० । " जनु उड़गण मंडल के उत्तर वाले मुख से निकला है इसमें | वारिदबर नव ग्रह रची अथाई" विना० वि० १ शाखा ५ कल्प और २० कांड हैं, इसका (अ+ स्थायी, स्थायी ) स्थायी जो प्रधान ब्राह्मण गोपथ है, इसके सम्बन्धी | । स्थायी न हो। उपनिषद ३१ या २८ हैं, इसमें प्रायः | अथान ---संज्ञा पु. (सं० स्थाणु ) अचार, अभिचार-प्रयोगों का वर्णन है।
(हि० अ-+थान - स्थान ) बुरी जगह स्थान, अथर्षण-अथर्धन-संज्ञा पु० (सं० ) अथर्व अस्त होना (अ० कि०)। वेद शिव, महादेव ।
अथाना-अ० क्रि० (हि० दे०) अथवना, अथर्वणी-( दे० अथवनी ) संज्ञा पु० । हबना, थाह लेना, ढूँढ़ना, क्रि० स०-थाह (सं० ) कर्मकांडी, यज्ञ कराने वाला पुरो- लेना । संज्ञा पु० (दे० ) अचार, खटाई, हित, अथर्व वेदज्ञ ब्राह्मण ।
वि० बिना स्थान, बेठिकाना ।। अथर्व शिख-संज्ञा पु. (सं० ) एक | अथावत-अथवन-वि० (हि-अथवना) डूबा उपनिषद् ।
हुया, दूबते हुए । प्रे० क्रि० --- अथवाना । अथर्व शिखामणि-संज्ञा पु. (सं० ) एक अथाह --वि० दे० (हि अ--थाह ) जिसकी उपनिषद् ।
| थाह न हो, बहुत गहरा, गंभीर, अपरिमित,
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