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प्रदम
प्रदाग
प्रदम-वि० (सं० ) दमन-रहित, इंद्रिय- अदर्शनीय-वि० (सं० ) जो दर्शन या निग्रह न करना। अदमनीय-वि० देखने के योग्य न हो, बुरा, कुरूप, भद्दा । (सं० ) दमन न करने योग्य ।
| अदल-संज्ञा, पु. ( अ० ) न्याय, इंसाफ । प्रदमपैरवी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) किसी आदिल--वि० ( अ०) न्यायी, अदालत मुकदमे के आवश्यक कार्यवाही न करना।। -संज्ञा, पु. ( अ ) न्याय की कचहरी। अदमसबूत-संज्ञा, पु० ( फा० ) प्रमाणा- ( हि० अ-+ दल ) सेना-रहित, पन्नभाव, सबूत न होना।
| विहीन । प्रदमहाजिरी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) गैर | अदल-बदल-क्रि० वि० ( अनु०) उलटहाज़िरी, अनुपस्थिति।
पुलट, हेरफेर, परिवर्तन, बदलना, संज्ञा, पु० अदम्य---वि० (सं० ) जिसका दमन न हो | अदला-बदला---परिवर्तन । सके, प्रचंड, प्रबल । अदमनीय-वि०.(सं० अदलं *~संज्ञा, पु० (अ.) न्यायी, हि० भ+दमनीय) दमन न करने योग्य ।। वि० ( अ-दल+ ई ) बिना पत्ते का, दलप्रदय-वि० ( स० ) दया-रहित, निर्दय, विहीन । निष्ठुर।
अदवान-अदवायन-संज्ञा, स्त्री० (सं० अधः प्रदयनीय-वि० (सं० ) जो दयनीय न -नीचे-+-हि-वान-रस्सी) खाट या चारहो, दया के योग्य जो न हो।
पाई की बिनावट को खींचे रख कर कड़ा अदरक-संज्ञा, पु. ( सं० आईक, फा० रखने के लिये पैताने पर छेदों में पड़ी हुई प्रदरक ) एक प्रकार का पौधा, जिसकी | रस्सी, भोरचाइन (दे०) अदवाइनतीषण और चरफरी जड़ मसाले और दवा , प्रा.) प्रोनचन ( प्रा० ) के काम में आती है।
अदहन-संज्ञा, पु० (सं० आ+ दहन) दाल अदरकी- संज्ञा, स्त्री. ( सं० आर्द्रक ) सौठ चावल पकाने के लिये आग पर चढ़ा कर
और गुड़ की टिकिया। वि० (हि. + गरम किया हुआ पानी । (सं० अ+दहन ) दरकना) जो दरकी या चिटकी या फटी न जलाना। न हो।
अदक्ष-वि० (सं० ) अचतुर, अपटु । प्रदरना-प्र. क्रि० (दे० ) उठ जाना, अदांत--वि० ( सं० अदंत ) जिसके दाँत न व्यवहार से परे हो जाना, जैसे “ यह रीति हों, (पशुओं के लिये ) जिसके दाँत न प्रदरिंग" अप्रचलित हो जाना, खूब पक्का । । आये हों। गाड़ना।
अदांत-वि० (सं० ) जो इंद्रियों का दमन अदरसा-संज्ञा, पु० (दे०) अनरसा, न कर सके, विषयासक्त, उदंड, अक्खड़ । एक प्रकार का पकवान या पक्वान्न, मिठाई । अदा-वि० ( अ०) चुकता, बेबाक, संज्ञा, विशेष ।
स्त्री० (अ.) हाव-भाव, नखरा, ढंग, तर्ज, प्रदरा-संज्ञा, पु० (सं० पार्दा ) एक नक्षत्र। मु० अदाकरना-पालना, पूरा करना, अद्दरा (दे०) या अद्रा ।
व्यक्त करना, चुकता करना । प्रदराना-अ० कि० ( स० आदर ) आदर | अदाई-वि० (अ० अदा) ढंगी, चालपाकर शेखी में चढ़ना, इतराना, सं० कि. बाजी, चालाक, " सो तजि कहत और की श्रादर देकर घमंडी बनाना।
औरै अलि तुम बड़े श्रदाई" -सूबे० प्रदर्शन-संज्ञा, पु० (सं० ) अविद्यमानता, अदाग-वि. ( हि० अ+दाग अ.) असाक्षात, लोप, विनाश, दर्शन न होना।। बेदाग़, सान, निर्दोष, पवित्र ।
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