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प्रसन्नता ।
अतियोग
अतीन्द्रिय प्रतियोग-संज्ञा, पु० (सं० ) एक वस्तु का संज्ञा पु० (सं० ) एक प्रकार का अलंकार दूसरी के साथ निश्चित परिमाण से अधिक जिसमें किसी वस्तु की उत्तरोत्तर सम्भावना मिलाव।
प्रकट की जाय (प्राचीन )। अतिरंजन-संज्ञा, पु० (सं०) बढ़ा-चढ़ा अतिशयपान-संज्ञा, पु० (सं०) अत्यन्त कर कहने का ढंग, अत्युक्ति, अत्यंत । मद्यपान, मद्याहार।
अतिशयोक्ति-संज्ञा, स्त्री. (सं० अतिशय अतिरथी- सज्ञा, पु० (सं०) जो अकेले +उक्ति ) एक प्रकार का अलंकार जिसमें बहुतों से लड़े, महारथी, रण-कुशल ।
भेद में अभेद, असंबंध में सम्बन्ध दिखलाते अतिरिक्त क्रि० वि० (सं०) सिवाय,
हुए किसी वस्तु को बहुत बढ़ा कर प्रगट अलावा, छोड़ कर, वि० शेष, बचा हुआ,
करते हैं, अत्यन्त बढ़ा कर चतुराई के साथ अलग, भिन्न । ( अति + रिच---क्त ) यौ०
कहना, सम्मान के लिये असम्भव या ( अति + रिक्त ) अत्यंत खाली।
अत्यन्त प्रशंसा। अतिरिक्तपत्र-संज्ञा, पु० (सं० ) समाचार
अतिशयोपमा-संज्ञा, स्त्री० (सं० अतिशय
+उपमा ) देखो "अनन्वय " एक प्रकार पत्र के साथ बँटने वाला विज्ञापन, क्रोडपत्र । अतिरेक-संज्ञा, पु. ( सं० अति ---रिच्+ |
का अलंकार, किसी किसी ने इससे उपमा
का एक भेद माना है ( केशवदास)। घञ् ) आधिक्य, छयी, अतिशय ।
अतिसंघ-- सज्ञा, पु. ( सं० ) प्रतिज्ञा था अतिरोग-सज्ञा, पु० (सं० ) यक्ष्मा, क्षयी,
आज्ञा का भंग करना, अतिक्रमण, धोखा, महाव्याधि,।
विश्वासघात । अतिवाद-संज्ञा, पु० (सं०) खरी बात, अतिसंधान-संज्ञा, पु० (सं० ) अतिक्रमण, डोंग, शेखी, सच्ची बात, कटु बात ।
धोखा। अतिवादी- वि० (सं० ) सत्यवक्ता, कटु- | अतिसामान्य -संज्ञा, पु. (सं० ) सब बादी, डींग मारने वाला।
पर न घटने वाली अतिसामान्य बात, अतिवाहिक-संज्ञा, पु. ( सं०) पाताल- (न्याय० )। वासी, लिंग शरीर।
अतिसार-संज्ञा, पु० (सं० अति + +सू अतिविषा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) अतीस । घञ् ) संग्रहणी रोग, पेट की पीड़ा, जठरअतिवृष्टि-संज्ञा, स्त्रो० (सं.) यौ०, अत्यन्त व्याधि, पतलेदस्त आने की बीमारी, वर्षा, एक प्रकार की ईति।
जिसमें खाया हुआ सब पदार्थ निकल प्रतिवेल-वि० (सं० ) असीम, अत्यन्त, । जाता है। बेहद्द ।
अतिहासत-संज्ञा, पु० सं० अति+हसित) प्रतिव्याप्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) न्याय में हास के छः भेदों में से एक ; इसमें हँसने किसी लक्षण या परिभाषा के कथन वाला ताली बजाता है और उसकी आखों के अन्तर्गत लक्ष्यवस्तु के अतिरिक्त अन्य | से आँसू भी निकलने लगते हैं, शरीर थर्राने वस्तु के भी आजाने का दोष, एक प्रकार लगता है, बचन अस्फुट निकलते हैं। का तर्क-दोष ( तर्क शास्त्र)।
अतीन्द्रिय-वि० (सं० अति+ इन्द्रिय ) अतिशय-वि० (सं०) बहुत ज्यादा, जिसका अनुभव इंद्रियों के द्वारा न हो,
अतिसै (दे०) “ मूढ़ तेहि अतिसै अभि- । अगोचर, अव्यक्त, अप्रत्यक्ष " अतींद्रिय माना"-रामा०।
ज्ञान निधः --" कालि।
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