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प्रतर
अतर - संज्ञा, पु० ( अ ० इत्र ) फूलों की सुगंधि का सार, निर्यास, पुष्पसार । इफ़रोश ( फा० ) संज्ञा, पु०, इत्र बेचने वाला, गंधी ।
प्रतरदान- संज्ञा, पु० ( फा० इत्रदान ) इत्र रखने का पात्र ।
तरसों - क्रि० वि० (सं० इतर + श्वः ) परसों के आगे का दिन, अग्रिम तृतीय दिवस, परसों से प्रथम का दिन । तर + सों ( ब्र० ) इत्र से |
तरिख - संज्ञा, पु० (सं० अंतरिक्ष ) अंतरिक्ष |
अतरंग - वि० (सं० अ + तरंग) तरंग - रहित, संज्ञा, पु० लंगर के उखाड़ कर रखने की क्रिया |
अतर्कित - वि० (सं० अ + तर्क + इत) जिसका प्रथम से अनुमान न हो, आकस्मिक, श्रविचारित, बेसोचे-समझे, एकाएक, तर्कयुक्त जो न हो ।
प्रतर्क्स - वि० (सं० ) जिस पर तर्क-वितर्क न हो सके, अनिर्वचनीय, अचिंत्य | तरणीय - वि० सं० + तरणीय ) जो तरा न जा सके, अतरनीय (दे० ) । अतरे - वि० दे० (सं० इतर ) दिवस, तीसरे दिन ।
तृतीय
अतल- - संज्ञा, पु० (सं०) सात पातालों में से दूसरा । वि० तल रहित, वर्तुल, पेंदी का तलस्पर्श - वि (सं०) अगाध, अति गंभीर, जिसके तल को कोई छू न सके । तलस्पर्शी - वि० (सं० ) अतल को छूने वाला, अथाह, अत्यन्त गहरा । तलस - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) एक प्रकार का रेशमी वस्त्र |
तवा - वि० (दे० ) अधिक | प्रतवार इतवार - संज्ञा, पु० (दे० ) रविवार ऐतवार, श्रत्तवार (दे०, ग्रा० ) प्रतवार - ( फा० ) ऐतबार ।
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प्रतिगत
अतसी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) लसी, पाट, सन, तीसी " श्रतसी-कु - कुसुम बरन मुरलीमुख, सूरजप्रभु किन लाये " - सूबे० । ताई - वि० ( ० ) दक्ष, कुशल, प्रवीण, धूर्त, चालाक, बिना सीखे हुए काम करने वाला, नक्काल, बहुरूपिया तमाशा करने वाला गवैया, " सो तजि कहत और की और तुम श्रति बड़े अताई' 99 भ्र० । अतार - संज्ञा, पु० ( ० ) दवाओं का बेचने वाला, पंसारी, अत्तार, गंधी, देखो
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अत्तार ।
प्रति - वि०
सं०) बहुत, अधिक, संज्ञा,
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स्त्री० अधिकता ज्यादती । अती, अत्ति (दे० ) रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि । अतिकाय - वि० (सं० प्रति + काया ) स्थूल शरीर का, मोटा । रावण का
एक पुत्र ।
प्रतिकाल - संज्ञा, पु० (सं० ) विलंब, देर, कुसमय, बेर ।
प्रतिकृच्छ्र - संज्ञा, पु० (सं० ) बहुत कष्ट, छः दिनों का एक व्रत, इसमें भोजन करने के दिनों में दाहिने हाथ में जितना श्रा सके, उतना ही भोजन किया जाता है, यह प्राजापत्य व्रत का एक भेद है, पापनाशक व्रत ।
प्रतिवृति - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पचीस वर्णो के वृत्तों की संज्ञा ।
प्रतिक्रम - संज्ञा, पु० (सं० ) नियम या मर्यादा का उल्लंघन, विपरीत व्यवहार, क्रम भंग करना, अन्यथाचरण, अपमान, बाँधना, पार होना, उल्लंघन । अतिक्रमण - संज्ञा, पु० (सं०) उल्लंघन, अन्यथाचार, सीमा से बाहर जाना,
बढ़जाना ।
प्रतिक्रांत - वि० सं०) सीमा से बाहर गया हुआ, बीता हुआ, व्यतीत । प्रतिगत- वि० (सं० ) बहुत अधिक ।
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