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अच्छापन
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अछेद अच्छापन-संज्ञा पु० भा० ( अच्छा - पन ) प्रछना*-अ० क्रि० दे० (सं० अस् ) उत्तमता, अच्छा होने का भाव, सुधरता।। विद्यमान रहना, उपस्थित रहना। अच्छा विच्छा - वि० ( हि० अच्छा+ अप*-वि० ( अ-छप-छिपनाा ) न बीछना, चुनना ) चुना हुआ, भला चंगा, |
| छिपने योग्य, प्रकट ।। निरोग।
अछय*.-वि० (सं० अक्षय ) नाश-रहित, अच्छोत*-वि० दे० ( सं० अक्षत) अधिक,
_अखंड।
अकरा --संज्ञा स्त्री० दे० ( गं० अप्सरा ), अच्छोहिनी-संज्ञा स्त्री० दे० (सं० अक्षौ- मग, स्त्री० आकरी करन (बहुवचन) हिंगणी ) अक्षौहिणी सेना ।
स्वर्ग की वेश्या, देवांगना, “ मोहहिं सब अच्युत-वि० (सं० ) जो गिरा न हो, । अछरन के रूपा” “ जनु अछरीन्ह भरा अटल, स्थिर, नित्य, अविनाशी, अमर, कैलासू" - पद्मा० अचल, संज्ञा पु० ( ० ) विगु का एक । संज्ञा पु० (सं० अक्षर, दे० अच्छर आचर, नाम।
अकरा आखर ) अतर, वर्ण । अच्युतानंद-संज्ञा पु० (सं० यो. अच्युत + | अकरी* - संज्ञा स्त्री० देखो अछरा । अानंद ), ईश्वर, ब्रह्म, वि० जिसका श्रानंद अछरौटी-संज्ञा स्त्री० (सं० अक्षर + औटी ) नित्य हो।
वर्णमाला। अबक-वि० दे० (सं० अ। चक) अछवाई-संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० ) सफ़ाई, अतृप्त, भूखा, जो छका न हो, जिपकी शुद्धता, “ भोजन बहुत बहुत रुचिचाऊ तृप्ति न हुई हो।
अछवाइ नहि थोर बनाऊ" प० । "तेग या तिहारी मतवारी है अछक तौलौं, | अछवाना*-स० क्रि० दे० (सं० अच्छाजौलौं गजराजन की गजक करै नहीं"भू० साफ़ ) साफ़ करना, सँवारना, सजाना, अछकना-० क्रि०-तृप्ति न होना, न अच्छा बनाना।
प्राधाना, कि० वि० अतृप्त, असंतुष्ट । अछवानी-संज्ञा स्त्री० दे० ( हिं० अजवाइन) प्रकृत-क्रि० वि० दे० (कृदंत पालना से ) अजावाइन, सोंठ तथा मेवों के चूण को धी रहते हुए, विद्यमानता में, सामने, सम्मुख, | में पकाया हुआ, प्रसूता स्त्री के खाने योग्य सिवाय, अतिरिक्त, " तुमहि अछत को मसाला, बत्ती, वानी। बरनै पारा" तोर अछत दसकधर मोर | | अछाम* -वि. ( सं० अक्षाम ) मोटा, कि अस गति होय" रामा० । 'गनती भारी, बड़ा, हृष्टपुष्ट, बलवान । गनिबे तैं रहे छत हू अलत समान' वि० | अछूत-वि० दे० (सं० अ+ क्षुप्त) जो छुआ ( सं० अनहीं+ अस्ति-है ) न रहता न गया हो, अस्पृष्ट, जो काम में न आया हुआ, अविद्यमान, अनुपस्थित, वि० (अ+ हो, नवीन, ताज़ा अपवित्र माना जाकर तत) घाव रहित ।
न छुना गया, अस्पृश्य, कोरा, पवित्र, अछताना-पछताना-अ. क्रि० (हि. संज्ञा पु० -- अन्त्यज ( आधुनिक)। पछताना ) पश्चात्ताप करना, बार बार खेद प्रता-वि० दे० ( स्त्री० प्रानी ) जो प्रगट करना।
छुवा न गया हो, अस्पृष्ट, नया, कोरा, अछन*-संज्ञा पु० दे० (सं० अ-न-क्षण) ताज़ा, जो जूठा न हो। बहुत दिन, दीर्घ-काल चिरकाल, क्रि० वि०- | अछेद-वि० दे० (सं० अछेद्य) जिसे छेद धीरे-धीरे, ठहर ठहर कर।
। न सकें, अभेद्य, अखंड्य, संज्ञा पु० अभेद,
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