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अचिंतित
अच्छाई अचितित वि० (सं० ) जिसका चिंतन न अचाखा-वि० (हि० ) अचेखिी (स्त्री०) किया गया हो, बिना सोचा-विचारा, जो खरा या पक्का न हो, अनुत्तम । आकस्मिक, जिस पर ध्यान न दिया गया | अचाना-संज्ञा पु० (सं० आचमन) प्रचौना हो "शास्त्र अचिंतित पुनि पुनि देखिय"। (दे० ) आचमन करने या पीने का पात्र, निश्चित, बे फ़िक्र ।
कटोरा, क्रि० अ-आचमन करना। अचिंत्य–वि० (सं० )-कल्पनातीत, जो | अचाप-वि० ( हि० अ-चोप )-क्रोध या चिंतन करने योग्य न हो, अज्ञेय, जिसका आवेश-हीन । अनुमान न किया जा सके, दैवात् ।
| अच्छ-संज्ञा पु० दे० (सं० अक्षि ) अाँख, अचित्-संज्ञा पु० ( सं० अ + चित् ) जड़, | वि० ( सं० ) स्वच्छ, निर्मल, अच्छा, जो चैतन्य न हो, प्रकृति ।
" मानहु विधि तनु अच्छ छबि, " वि० अचिर-क्रि० वि० (सं० अ : चिर ) अवि- संज्ञा पु० (सं० अक्ष) आँख, स्फटिक, लम्ब, शीघ्र, जल्दी, तुरन्त, वेग।
रावण पुत्र । अचिगत्-क्रि० वि० (सं० अ+चिरात् ) अच्छत-संज्ञा पु० दे० (देखो-अक्षत् ) बिना शीघ्र, तत्काल ।
टूटे चावल, अखंडित ।। प्रचीता-वि० दे० (सं० अ + चिन्ता हि० ) अच्छर - संज्ञा पु० दे० (सं० अक्षर ) जिसका विचार या अनुमान पहिले से न अक्षर, वर्ण, ब्रह्मा, ईश्वर “ बालरूप हो, असंभावित, आकस्मिक, अनुमान से अच्छर जब कीनौ" छत्र। अधिक, बहुत, ( स्त्री० अचीती ) ( वि० सं० - अच्छर*-( अच्छरी ) संज्ञा स्त्री० दे० अचिन्त ) निश्चित, बे फ़िक, चिन्ता-रहित । ( सं० अप्सरा )-अप्सरा, अपहरा (दे० अचूक-वि० दे० ( सं० अच्युत ) जो न ग्रा० ) देव-वधूटी। चूक सके, जो अवश्य फल दिखलावे, अच्छा-वि० (सं० अच्छ) उत्तम, बढ़िया, अमोघ, ठक, पक्का, भ्रम रहित, कि० वि० श्रेष्ठ, ठीक, भला, चोखा, निरोग, चंगा, सफाई से, चतुरता से, कौशल से, निश्चय, क्रि० वि० अच्छी तरह। अवश्य ज़रूर।
पु० अच्छे अाना-ठीक या उपयुक्त समय अचेत-वि० (सं० )-चेतना-रहित, बेसुध, पर पाना, अच्छे दिन--सुख-संपत्ति का बेहोश, मू छत, व्याकुल, विकल, संज्ञा- समय, अच्छा लगना--सुखद या मनोहर शून्य, अनजान, अज्ञान, मूर्ख, नासमझ, होना, सजना, सोहना, रुचिकर होना, मूद, जड़ । संज्ञा पु० (सं० अचित् ) जड़ पसंद आना, स्वीकार-सूचक अव्यय, अच्छा प्रकृति, माया, अज्ञान।
अच्छा- हाँ, हाँ, उमदा उमदा, अच्छे से, अचेतन-वि० (सं० ) सुख-दुःखानुभव
में, पर, को अच्छा, अच्छा करनाकी शक्ति से रहित, चेतना रहित, जड़,
स्वीकार करना, क्रि० वि० खूब, बहुत, संज्ञा हीन, मूर्छित।
अधिक, जैसे--हम अच्छा सोये । संज्ञा पु० श्रचेतन्य- संज्ञा पु० (सं० ) जो ज्ञान- बड़ा या श्रेष्ठ व्यक्ति, गुरुजन,-विस्मयादि बोधक स्वरूप न हो, अनात्मा, जड़।।
अव्यय-- जैसे “ बहुत अच्छे"-- शाबाश, अचैन-संज्ञा पु० ( अ-1 चैन )-बेचैन, खूब किया, बहुत ठीक, साधुवाद । व्याकुलता, विकलता, वि० - व्याकुल, | अच्छाई-संज्ञा भा० सी० अच्छापन, विकल, विह्वल ।
सुधराई।
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