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क्षेत्रविद्
क्ष्वेड क्षेत्रविद-संज्ञा, पु० (सं०) जीवात्मा, कृषि- क्षितिग । संज्ञा, पु० (सं० ) मंगल ग्रह । शास्त्र-विशारद।
यौ० क्षोणि-देव-(सं० ) ब्राह्मण । क्षेत्राजीव-संज्ञा, पु० (सं० ) कृषक । क्षोणिप-संज्ञा, पु. ( सं० ) राजा । क्षेत्राधिपति-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) छोनिप-(दे० )।
खेत का देवता, मेघ, बारह राशियों के | क्षोणी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) छोनी (दे०) स्वामी, ज़मीदार।
पृथ्वी । यो० क्षोणीपति--(सं० ) राजा क्षेत्री-संज्ञा, पु० (सं० ) खेत का मालिक, ... छोनी में के छोनीपसि." कवि० । नियुक्ता स्त्री का विवाहित पति, स्वामी। क्षोद-संज्ञा, पु०( सं० ) बुकनी, चूर्ण । क्षेप-संज्ञा, पु. ( सं०) फेंकना, ठोकर, क्षोभ-संज्ञा, पु० (सं० ) विचलता, घबत्याग, घात, अक्षांश, शर, निंदा, दूरी,
राहट, भय, रज, शोक, क्रोध वि० तुब्ध, बिताना-जैसे---काल-क्षेप।
क्षुभित- छोभ (दे०)। " तजिय छोभ क्षेपक-वि० (सं० ) फेंकने वाला,
। जनि छॉड़िय छोहू" . रामा० ।। मिलाया हुआ, निंदनीय, मिश्रित, अशुद्ध
क्षोभण-वि० (सं०) क्षोभित करने वाला। भाग। संज्ञा, पु० (सं० ) ऊपर या पीछे से |
| संज्ञा, पु० (सं०) काम के ५ बाणों में
से एक। मिलाया हुआ अंश । क्षेपण-संज्ञा, पु० (सं०) फेंकना, गिराना,
क्षोभित-वि० दे० (सं० क्षोभ ) छोभित बिताना, निंदा।
(दे०) व्याकुल, चलायमान, भयभीत, क्षेपणी-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) नाव का डंडा
, गुस्सा।
क्षोभी-वि० (सं० क्षोभिन्) व्याकुल, चञ्चल या बल्ली। क्षेमकरी--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सफ़ेद गले
क्षौणि-क्षौणी-संज्ञा स्त्री० (सं० ) क्षोणी,
| पृथ्वी, एक की संख्या। की एक चील, एक देवी, कुशल करने वाली, क्षेमकरी, छेमकरी (दे०)। 'छेमकरी
क्षौद्र-संज्ञा, पु० (सं० ) तुद्र का भाव, कह छेम बिसेषी"-रामा० ।
क्षुद्रता, छोटी मक्खी का मधु, जल, धूल,
चम्पावृक्ष, वर्णसङ्कर ".....'मदासारिवोद्रजा क्षेम-संज्ञा, पु. ( सं० ) सुरक्षा, प्राप्तवस्तु
बौद्युक्ता "-वै० जी० । वि० क्षौद्रग की रक्षा । यौ० संज्ञा, पु० (सं० ) योग
मधु से उत्पन्न पदार्थ । क्षेम-कुशल-मंगल, अभ्युदय, सुख, मुक्ति,
क्षौम-संज्ञा पु० (सं०) सन आदि से बना धर्मशासन से उत्पन्न पुत्र । यौ० वि० (सं.)।
वस्त्र, अंडी, कपड़ा, अटारी के ऊपर का क्षेमकृत-मंगलकर्ता । क्षेमकर-संज्ञा,
कोठा। पु० (सं.) मंगलकर । या० संज्ञा, पु०
पु° | सौर-संज्ञा, पु. ( सं० ) हजामत, मुंडन, ( सं०) क्षेम-कुशल--आनंद-मंगल । ।
बाल बनवाना। क्षेमेंद्र-संज्ञा, पु० ( सं० ) काश्मीर निवासी तौरक-ौरिक-संज्ञा, पु० (सं० ) नाई, ( ११ वीं शताब्दी) संस्कृत के एक विद्वान् नापित, हज्जाम । कवि, इनके २६ या ३० ग्रंथ हैं। क्ष्मा--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पृथ्वी, एक की क्षण्य --संज्ञा, पु० (सं०) क्षीण का भाव, | संख्या । यौ० माभुक-राजा, माक्षीणता।
| भृत-राजा, पर्वत । क्षोणि-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पृथ्वी, एक क्ष्वेड-संज्ञा पु० (सं०) अव्यक्त शब्द, की संख्या। वि० क्षणिग-( सं० ) | विष, ध्वनि । वि० (सं०) छिछोरा, कपटी।
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