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क्षपा
५१२ वाला यती ( जैन ) दिगम्बर, नागा, बौद्ध क्षमितव्य-वि० (सं० ) क्षेतव्य, क्षमा संन्यासी, राजा विक्रमादित्य की सभा के । __ करने योग्य । ६ रत्नों में से दूसरे ( ६ वीं सदी ई.) क्षमिता--वि० (सं.) सहिष्णु, क्षमाशील । वि० (सं० ) निर्लज्ज, उन्मत्त ।
तमी-- वि० ( सं० क्षमा + ई---प्रत्य० ) क्षपा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) रात, निशा,
क्षमाशील। वि० (सं० क्षम) सशक्त, छपा ( दे०) हलदी। “क्षपानाथ लीन्हें समर्थ । छमी (दे०) । “सुर अति छमी रहे क्षत्र जाको" 'के० '... "दिनक्षपा मध्य
असुर अति कोही"-सूर० । गतेव संध्या"-रघु० ।।
क्षम्य ... वि. (सं० ) क्षमा करने के योग्य । क्षपाकर- संज्ञा, पु. ( स० ) चन्द्रमा,
क्षय--संज्ञा, पु० (सं०) धीरे धीरे घटना, कपूर, क्षपेश, पानाथ, क्षपापति ।
हास, अपचय, कल्पांत, नाश, प्रलय, घर, क्षपाचर -- संज्ञा, पु. (सं०) निशाचर,
यघमा रोग, क्षयी, अंत, समाप्ति, दो रानस । स्त्री० क्षपाचरी।
संक्रांतियों वाला एक मास जिपके तीन क्षपानाथ-संज्ञा, पु. यो० (सं०) चन्द्रमा।
मास पूर्व और पीछे एक एक अधिक मात्र क्षपान्त-संज्ञा, पु. यो० (सं० ) सबेरा
पड़ता है ( ज्यो०), ६० संवत्सरों में से प्रभात । "क्षपान्त का लीन रुपेश की प्रभा'
अंतिम । यौः क्षयकाल प्रलय । क्षय--सरस ।
कास-यमा रोग, क्षत्थु संज्ञा, पु. क्षम --- वि० सं० ) सशक्त, योग्य, समर्थ,
(सं०) खाँसी। जयपत--संज्ञा, यौ० पु० उपयुक्त । संज्ञा, पु० (सं०) शक्ति, बल।
(सं० ) कृष्ण पक्ष, क्षयपन--संज्ञा, पु. संज्ञा, स्त्री० क्षमता योग्यता, सामर्थ ।।
(यो०) मलमाल । क्षमणीय- वि० ( सं० क्षम+अनोयर )
क्षयिष्णु-वि० (सं० क्षय । इष्णुच् ) नष्ट क्षमा के योग्य ।
होने वाला। क्षमना छाना-स० कि० ( दे०) क्षमा
क्षयी वि० (सं० ) क्षय या नष्ट होने करना, मुश्राफ़ करना। 'छमिसबकरिहहि"
वाला, यक्ष्मा का रोगी । संज्ञा, पु० (सं० ) -रामा०।
चन्द्रमा । संज्ञा, स्त्री० (सं० १०) तपेदिक, क्षमा--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सहिष्णुता,
यघमा का रोग जिसमें कम से फेफड़ा सड़ सहन-शक्ति, शांति, सुश्राफी, अन्यकृत
जाता, ज्वर रहता और शरीर धीरे धीरे दुख, दोषादि को सह लेने की चित्त-वृत्ति,
जल जाता है। पृथ्वी, एक की संख्या, दक्ष की कन्या,
क्षय्य-वि० सं०, क्षय होने के योग्य । दुर्गा, रात्रि, कृपा, १३ वर्णो का एक
क्षर-वि० (सं०) नाशवान । संज्ञा, पु० वर्णवृत्त, राधिकाकीसखी छिमा (०)। संज्ञा, स्त्री० क्षमाई-क्षमा करनेकी क्रिया छमता
सं०) जल मेव, जीवात्मा, शरीर, अज्ञान ।
तरण --- संज्ञा, पु० (सं० ) रम रम कर (दे०)। स० कि० (दे०) क्षमाना-छमाना
चूना, रसना, झरना, नाश होना, छूटना, मुश्राफ करना । छमावना (दे०) । " निज
स्राव होना। अपराध छमावन करहू "-रामा० ।
तांत--वि० (सं० ) समाशील, सहनशील । क्षमालु-वि. (सं०) क्षमाशील । क्षमावान--वि. पु. ( सं०) क्षमा करने तांति-संज्ञा, स्त्री. (सं.) क्षमा सहन
वाला, सहनशील । स्त्री० क्षमावती। शीलता, सहिःणुता ।। क्षमाशील-वि. पु. ( सं० ) क्षमावान्, क्षात्र-वि० (सं० ) क्षत्रिय-सम्बन्धी। संज्ञा, शांत प्रकृति का छमावन्त दे०)। पु० (सं० ) क्षत्रियत्व, क्षत्रियपन ।
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