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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्षणभंगु क्षणभंगुर ५११ रतौंधिया । स्त्री० क्षणदा (सं० ) रात्रि, निशा । यौ० क्षणदाकार - संज्ञा, पु० ( सं० ) चन्द्रमा । यौ० क्षणदांध( वि० ) उल्लू, रतौंधिया । क्षणद्युतिसंज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) बिजली, क्षणप्रभा । क्षणध्वंसी - वि० सं० ) after स्थायी | क्षणभंगु क्षणभंगुर - वि० (सं० यौ० ) शीघ्र या क्षण में ही नष्ट होने वाला, अनित्य, 'कहै ' पदमाकर ' बिचारु छनभङ्गुर रे ।" "तदपि तत्क्षणभंगु करोति"" क्षणप्रति अ० (सं० ) सतत, अनवरत । क्षणरुचि संज्ञा, स्त्री० (सं० ) बिजली, 66... प्रकाश । 1 क्षणिक - वि० (सं० ) क्षण भर रहने वाला, अनित्य । स्त्री० क्षणिका - बिजली । क्षणिकवाद – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) संसार में प्रत्येक वस्तु उत्पत्ति से दूसरे क्षण में ही नष्ट हो जाने वाला सिद्धान्त (बौद्ध) वि० संज्ञा, पु० (सं०) क्षणिकवादीबौद्ध | क्षणिनी-संज्ञा स्त्री० ( सं० ) रात, निशा । क्षत - वि० (सं०) क्षत या श्राघात-युक्त, घाव-युक्त | संज्ञा, पु० (सं० ) घाव, व्रण, फोड़ा, मारना, काटना, श्रावात । क्षतज - वि० (सं० ) चल से उत्पन्न, लाल, सुर्ख | संज्ञा, पु० ( सं० ) रक्त, रुधिर, 1. खून, घाव के कारण प्यास । क्षतघ्नी - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) लाख, लाह । क्षतयोनि - वि० यौ० (सं०) पुरुष समागमकृता स्त्री । विलो० अक्षतानि - पुरुष - समागम - रहित । क्षतव्रत - वि० (सं० ) नष्ट व्रत | ततवरण -- संज्ञा, पु० ० (सं० ) श्राघातस्थान के चीरने से उत्पन्न घाव | क्षत-विक्षत - वि० यौ० (सं०) घायल, लहूलुहान, चोट खाया हुथा । विक्षत होकर शरीर से बहने लगी रुधिर की धार ” – मैथिली । (6 क्षत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षपणक क्षता संज्ञा, स्त्री० (सं० ) विवाह से पूर्व पर पुरुष से दूषित सम्बन्ध रखने वाली कन्या ( विलो० - अक्षता ) । क्षताशौच - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) घायल होने से लगने वाला अशौच । क्षति ) हानि, क्षय, नाश | छति (दे० ) खति (दे० ) । "काछति लाहु जीर्न धनु तोरे - " रामा० । क्षता -- संज्ञा, पु० (सं० ) सारथि, दरबान, मछली, दासी-पुत्र, नियोग करने वाला पुरुष । संज्ञा, स्त्री० (सं० क्षेत्र - संज्ञा, पु० (सं० ) बल, राष्ट्र, धन, जल, देह, क्षत्रिय, छत्र (दे० ) | क्षत्र-कर्म-संज्ञा, पु०या० (सं० ) क्षत्रियोचित कर्म । क्षत्र- धर्म -- संज्ञा, पु० (सं० ) क्षत्रियों का धर्म अध्ययन ( शस्त्रास्त्र - विद्या वेदादि का ) दान, यज्ञ, प्रजापालनादि । क्षत्रप - संज्ञा, पु० (सं० या पु० [फा० ) ईरान के प्राचीन मांडलिक राजाओं की उपाधि जिसे भारत के शक राजाओं ने ग्रहण किया था राष्ट्रपालक । क्षत्रपति - संज्ञा, पु० (सं० ) राजा, क्षत्रधारी, छत्रपति (दे० ) । तत्रबन्धु- संज्ञा, पु० क्षत्रिय | ० (सं० ) निन्दित क्षत्रयोग - संज्ञा, पु० येो० (सं० ) एक प्रकार का राज योग ( ज्यो० ) । क्षत्रवेद - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) धनुर्वेद | क्षत्रान्तक - संज्ञा पु० ० (सं० ) परशुराम । क्षत्रिय - संज्ञा, पु० (सं० ) ब्रह्मा की बाहु से उत्पन्न वर्ण विशेष, चार वर्णों में से दूसरा, क्षत्री, छत्री (दे० ) । इस वर्ण का मुख्य कार्य देश का शासन, पालन, एवं संरक्षण करना है, राजा । स्त्री० क्षत्रिया, त्राणो | (हि०) क्षत्रिन, छत्रिन (दे० ) । क्षपणक संज्ञा, पु० (सं० ) नङ्गा रहने For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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