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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किरिपा ४५८ किरीटी प्रकाश की अति सूक्ष्म रेखायें जो सूर्य, किरात-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अ० केरात) चंद्र, दीपक आदि कांतिमान पदार्थों से । ४ जौ के बराबर जवाहिरातों की एक तौल। निकल कर फैलती हैं। किरान-क्रि० वि० (दे०) पास, निकट । मु०-किरण फूटना-सूर्य या चंद्र का किराना–संज्ञा, पु० (दे० ) केराना, मेवा. उदय होना । कलेबतून या बादले की मसाला आदि । प्र. क्रि० (दे०) कुंठित बनी झालर । किरिन् (दे०)। या गोठिल होना, टूट कर दाँतेदार होना । किरिपा-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कृपा ''काटि ना किरानीहै "- ( रत्नाकर ) । (सं०)। किरानी-संज्ञा, पु० (दे० ) क्रिश्चियन किरपान-संज्ञा, पु० (दे० ) कृपाण । (अं० ) ईसाई, केरानी। (सं० ) तलवार । किराया--संज्ञा, पु० (अं० ) दूसरे की किसी किरम (किरिम )-संज्ञा, पु० दे० (सं० वस्तु को काम में लाने के बदले जो उसके कृमि ) कीट, कीड़ा, किरमदाना ( दे० )। मालिक को दिया जाय, भाड़ा, मुआवज़ा। किरमाल*- संज्ञा, पु० दे० (सं० करवाल ) । यौ० किराया-भाडा। तलवार । किरवार (दे०)। किरायेदार - संज्ञा, पु. ( फ़ा. किरायादार) किरमिच-संज्ञा, पु० दे० ( अं० कैनवस ) कुछ भाड़ा, देकर दूसरे की वस्तु को कुछ एक प्रकार का महीन टाट या मोटा विला- काल तक काम में लाने वाला। यती कपड़ा जिसके जूते, बेग आदि बनते हैं। किरार--- संज्ञा, पु० (दे०) एक नीच जाति । किरमिज (किर्मिज )-संज्ञा, पु० दे० किरावल-संज्ञा, पु० दे० (तु० करावल ) (सं० कृमिज ) हिरमिजी, मटमैलापन लिये युद्ध क्षेत्र को ठीक करने के लिये आगे करौंदिया । वि. किरमिजो-किरमिज भेजी गई सेना, बंदूक से शिकार करने के रंग का। वाला, शिकारी। किरराना-अ. क्रि० ( अनु० ) क्रोध से किरासन (किरासिन)-संज्ञा, पु० दे० दाँत पीसना, किरकिरें शब्द करना। ( अं० किरोसिन ) मिट्टी का तेल । किरवान*--संज्ञा, पु. (दे० ) कृपाण किरिच ( किर्च )---संज्ञा, पु० (दे०) (सं० ) तलवार, एक प्रकार का दंडक टुकड़ा, खंड, फिरच नामक अस्त्र । छंद-भेद। किरिमदाना-संज्ञा, पु. (दे०) कृमि । किरवारा -संज्ञा, पु० दे० (सं० कृतमाल ) (सं० ) थूहर का किमिज नामक कीड़ा श्रमलतास, खड्ग । (लाख कासा) जो सुखा कर रंगने के किराँची-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अं० कैरेज ) काम में शाता है। रेल की माल गाड़ी का डिब्बा, भूसा आदि किरिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० क्रिया ) लादने की बैल गाड़ी। शपथ, सौगंध, कसम कर्तव्य, मृतक-कर्म, किरात (किरातक)-- संज्ञा, पु० (सं० ) श्राद्धादि कृत्य ( काल), सौंह । ( दे० ) एक प्राचीन जंगली जाति, हिमालय के । यौ०-किरिया-करम-क्रिया-कर्म (सं०) पूर्वीय भाग के आस-पास का प्रदेश मृतक-कर्म श्राद्धादि। ( प्राचीन ) भील, निषाद, चिरायता, किरीट-- संज्ञा, पु० (सं० ) मस्तक का साईल । “ यह सुधि कोल-किरातन पाई" एक भूषण, शिरोभूषण मुकुट, ताज, --रामा० । स्त्री किरातिनी, किरातिन, ८ भगण का एक वर्णिक सवैय्या। किराती यौ० किरात पति--शिव। किरीटी- संज्ञा, पु० (सं० ) इंद्र, अर्जुन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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