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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किन्नर ४५७ किरण-किरन किन्नर-संज्ञा, पु० (सं० किं+नर ) घोड़े । खेतों, बगीचों में थोड़े थोड़े अंतर पर पतली के से मुख वाले एक प्रकार के देवता, गाने- | मेड़ों के बीच की भूमि, जिसमें पौधे लगाये बनाने के पेशे वाले। स्त्री० किन्नरी, यौ० जाते हैं, क्यारी, सिंचाई के लिए खेतों में किन्नरेश-कुबेर । बनाये गये विभाग, समुद्र के खारा पानी के किन्नरी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) किन्नर की रखने का कडाह (नमक जमाने के लिये )। अप्सरा, स्त्री, एक प्रकार का तबूरा, सारंगी, कियाह-संज्ञा, पु० (सं० ) लाल घोड़ा। विद्याधरी । " कहँ किन्नरी किन्नरी लै किरंटा-संज्ञा, पु० दे० ( भ० क्रिश्चियन ) सुनावै "- रामा०। केरानी (दे०) तुच्छ, क्रिस्तान या ईसाई। किफ़ायत-संज्ञा, स्त्री० ( म०) काफ़ी या | किरका-संज्ञा, पु० दे० (सं० कर्कट =कंकड़ी) अलम् का भाव, कम ख़र्च, बचत । वि० छोटा टुकड़ा, कंकड़ी, किरकिरी । किफ़ायती-कम खर्च करने वाला। किरकिट -संज्ञा, पु० दे० (अ० क्रिकेट) किबला-संज्ञा, पु० (भ० ) पश्चिम दिशा, गेंद-बल्ले का खेल। पूज्य, पिता। किरकिरा-वि० दे० (सं० कर्कट) कॅकरीला, किबलानुमा-संज्ञा, पु० (१०) अरब महीन और कड़े रवे वाला। लोगों का पश्चिम दिशा बताने वाला यंत्र।। मु०-किरकिरा होना-रंग में भंग किम-वि० सर्व० (सं० ) क्या, कौन सा। होना, आनंद में विघ्न होना। (मन) यौ० किमपि-कुछ भी। यो० किमर्थ - किरकिरा होना-विमनता होना । किरकिराना-अ० कि० (हि. किरकिरा ) किस लिए, क्यों। किरकिरी पड़ने की सी पीड़ा होना। किमाकार-वि० (सं० ) कुत्सित प्राकृति- किरकिराहट-संज्ञा, स्त्री० (हि. किरकिरा वाला, अनभिज्ञ । +हट-प्रत्य० ) अाँख में किरकिरी पड़ने किमाछ—संज्ञा, पु० (दे० ) केवाँच। । की सी पीड़ा, दाँत तले कँकरीली वस्तु का किमाम -- संज्ञा, पु० (अ० ---किवाम् ) गाढ़ा, | शब्द, कॅकरीलापन । शहद का शरबत, तंबाकू का ख़मीर । किरकिरी-किरकिटी-संज्ञा, स्त्री० दे० किमाश-संज्ञा, पु. (म.) तर्ज, ढंग, (सं० कर्कर ) धूल या तिनके का कण जो ' वज़ा, ताज, गंजीफे का एक रंग। आँख में पड़कर पीड़ा पैदा करे, अपमान, किमि-क्रि० वि० दे० (सं० किम् ) कैसे, हेठी। "तनिक किरकिरी परत ही-"रामा० किस प्रकार । " स्याम गौर किमि कहौं किरकिल संज्ञा, पु० दे० (सं० क्रकलास ) बखानी"-रामा०। गिरगिट । संज्ञा, स्त्री० (दे०) कृकल । किमत - भव्य० (सं० ) प्रश्न, वितर्कादि संज्ञा, पु० (दे० ) किलकिल, झगड़ा। सूचक । किरच-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कृति =कैंची) किम्पच-वि० (सं०) कृपण, सूम। नोंक के बल सीधी भोंकी जाने वाली एक किम्भूत-वि० ( सं० किं+भू+क्त ) | छोटी तलवार, छोटा नुकीला टुकड़ा । की दृश, कैसा। " जनु पीक कुपूरन की किरचै"-रामा । कियत-वि० (सं० ) कितना । किरचक ( दे०)। किम्मत -संज्ञा, स्त्री० दे० (अ. हिकमत ) | किरण-किरन-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) रश्मि, युक्ति, होशियारी। अंशु. तेज की रेखा । यौ० किरणमालीकियारी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० केदार ) संज्ञा, पु. (सं०) सूर्य, चंद्र, किरणकर। भा० श. को०-१८ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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