________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कितव
किनारे अधिक, क्रि० वि०-कहाँ तक, बहुत, चाहे । संज्ञा, पु० (सं० किण) चिन्ह, दाग़ । कितनो, केतो, कित्तो (व.)। " बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कितव-संज्ञा, पु० (सं० ) जुआरी, धूर्त, कोय"-रही।
छली, दुष्ट, बंचक, धतूर, गोरोचन । किनका-किनिका, किनुका-संज्ञा, पु० किता-संज्ञा पु० (अ.) सिलाई के लिए | दे० (सं० कणिक ) अन्न का टूटा हुआ कपड़ों की काट-छाँट, व्योंत, ढंग, चाल, टुकड़ा, चावलों का कना, छोटा दाना, संख्या, अदद, विस्तार का भाग, प्रदेश, बूंदें, कनूका (७०) “ बिद्रुम, हेम, वज्र भू-भाग।
__ को किनुका"। किताब-संज्ञा, स्त्री. (अ.) पुस्तक, ग्रंथ, किनवानी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कण + बही, रजिस्टर, कितेब-(दे० ) वि०- पानी ) छोटी छोटी बंदों की झड़ी, फुहो। किताबी-किताब का, किताब का सा। किनवैय्या--वि० (दे० ) ग्राहक, गाहक । म०--किताबीकीड़ा-सदैव पुस्तक पढ़ने | क्रि० स० (दे० ) खरीदना। वाला, किताबी चेहरा--किताब का किनहा- वि० दे० ( सं० कर्णक, प्रा. सा लंबा चेहरा।
करण-+ हा-प्रत्य० ) जिसमें कीड़े पड़ कितिक-वि० (दे० ) कितक, कितना। गये हों ( फल ) कन्ना। कितीक-केतिक (दे०)।
किनार-किनारा*--संज्ञा, पु० (फा०) कार, कितक-वि० दे० (सं० कियदेक) कितना, तीर, तट, छोर, प्रान्त, हाशिया, किसी असंख्य, बहुत । "बारन कितेक करै "- | लंबी-चौड़ी वस्तु का लंबाई या चौड़ाई के ऊ. श०।
अंतिम भाग। कितै*-अव्य० ( दे० ) कित, कहाँ। मु०-किनारे लगना-( या लगाना)कितो*-वि० दे० (सं० कियत् ) कितना,
किसी कार्य को समाप्ति पर पहुँचाना, पार केतो (७०) क्रि० वि०--कितना । स्त्री०
लगाना (जीवन या नौका ) । लंबाई किती, कित्ती।
चौड़ाई वाली वस्तु के विस्तार के अंतिम कित्ता-वि० दे० (सं० कियत् ) कितना,
भाग, भिन्न रंग या बुनावट वाले कपड़े कित्तो । स्त्री० कित्तो।
श्रादि का छोर, गोट, बिना चौड़ाई की कित्ति-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कीति, वस्तु का छोर, पार्श्व, बग़ल । प्रा० कित्ति) कीर्ति, यश । “अखंड कित्ति मु०-किनारा खींचना (किनारा कशी लेय देय मान लेखिये "--राम ।
करना) दूर होना, हटना । किनारे न किदारा-केदारा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) गर्मी जाना–अलग रहना, बचना। किनारे में आधी रात को गाई जाने वाली एक बैठना ( रहना, होना ) अलग या दूर रागनी।
होना । किनारा करना छोड़ देना। किधर-क्रि० वि० दे० (सं० कुत्र) किस वि० किनारदार-जिसमें किनारा बना ओर, कहाँ, कितै (दे०)।
हो । स्त्री० किनारी । ब० व० किनारे। किधौं *-अव्य० दे० (सं० किम् ) अथवा, . किनारी-संज्ञा, स्त्री० (फ० किनारा) सुन
या, या तो, न जानें । कैधौं (दे०) “ किधौं | हरा या रूपहला पतला गोटा जो किनारे पमिनिकौं सुख देत धनो"--- राम। पर लगाया जाता है, मगजी, गोट । किन-सर्व० (हि०) किस का ब० व०। किनारे-क्रि० वि० (हि० किनारा) कोर कि० वि० दे० (सं० किम् + न ) क्यों न. या बाढ़ पर, तटपर, अलग ।
For Private and Personal Use Only