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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उल्लाप्य उष्णिक श्रानन्द, प्रमोद। वि० उल्लसित-प्रसन्न । | उल्लोच-संज्ञा, पु. ( सं० उत् + लुच् + वि० उल्लासी-आनंदी। अल् ) चाँदनी, चंद्रिका । उल्ताप्य—संज्ञा, पु. ( सं० ) उपरूपक उल्लोल-संज्ञा, पु० (सं० ) कल्लोल, का एक भेद, एक गीत । हिलोर, लहर। उल्लाल-संज्ञा, पु० (सं० ) एक मात्रिक | उल्व(उल्वण )-संज्ञा, पु० (सं०) आँवर, अर्धसम छंद (१५+ १३ मात्राओं का)। गर्भाशय, जरायु, गर्भवेष्टन, वशिष्ठ-पुत्र । उल्लाला-संज्ञा, पु. (सं०) एक प्रकार उवना -अ० कि. (दे०) उगना, उदय का मात्रिक छंद (१+१३ मात्राओं)। होना, निकलना। उल्लास-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रकाश, हर्ष, उशना-संज्ञा, पु. स्त्री. उवनि । (सं०) भानन्द, ग्रंथ का एक भाग, पर्व, एक प्रकार | शुक्राचार्य, भार्गव । “कवीनाम् उशना का अलंकार जिसमें एक के गुण-दोष से | कविः "-गीता। दूसरे में गुण-दोष का होना दिखलाया उशबा-संज्ञा, पु. ( म०) रक्त-शोधक एक जाता है । वि० उल्लसित---उल्लाप युक्त । तरु-मूल । वि० उल्लासक (सं० ) श्रानन्दी, प्रसन्न उशोर-संज्ञा, पु. ( सं० ) गाँडर की जड़, करने वाला। खस। उल्लासन-संज्ञा, पु० (सं०) प्रकट या प्रका- | उषा—संज्ञा, स्त्री० (सं० ) प्रभात, तड़का, शित करना, हर्षित या प्रसन्नहोना । स० कि. ब्राह्म बेला, अरुणोदय की अरुणिमा अनरुद्ध उल्लासना। वि० उल्लासी-आनन्दी, को व्याही गई वाणासुर की कन्या । यौ० सुखी । स्त्री० उल्लासिनी। उषाकाल- भोर, प्रभात । यौ. उषाउल्लिखित-वि० (सं० ) खोदा हुआ, | पति-अनिरुद्ध, काम देव का पुत्र । उत्कीर्ण, छीला या खरादा हुआ, चित्रित, उषित-वि० (सं० वस + क्त) दग्ध, स्वरित, ऊपर लिखा हुआ, लिखित, खींचा हुआ। आश्रित, स्थित । उष्ट्र-संज्ञा, पु० (सं० ) ऊँट । उल्लू-संज्ञा, पु० दे० (सं० उलूक ) एक उष्ण-वि० (सं०) तप्त, गर्म, फुरतीला, पती जो दिन में नहीं देखता, खूपट । वि० बेवकूफ़, मूर्ख, लघमी, पाहन । तेज़ । संज्ञा, पु०-प्याज़, एक नर्क का नाम, ग्रीष्म ऋतु। मु०-उल्लू बनाना-मूर्ख बनाना । यौ० उष्ण नदी-बैतरणी, उष्णवाष्पकहीं उल्लू बोलना-उजाड़ होना, मूर्ख पसीना, स्वेद । उष्ण रश्भि-सूर्य, दिनकर। या जड़ । उल्लू सीधा करना-बेवकूफ उष्णिक-संज्ञा, पु० (सं० ) ग्रीष्मकाल, बनाकर काम निकालना। ज्वर, सूर्य । वि. गरम, तप्त, ज्वर-युक्त, उल्लेख-संज्ञा, पु० (सं०) लिखना, वर्णन, | तेज़, फुर्तीला। लेख, चर्चा, ज़िक्र, चित्रण, खींचना । एक | उष्णकटिबंध-संज्ञा, पु० (सं० ) कर्क और प्रकार का अलंकार जिसमें एक ही वस्तु को मकर रेखाओं का मध्यवर्ती भू-भाग । अनेक रूपों में ( एक ही या भिन्न-भिन्न विलोम शीतकटिबंध । व्यक्तियों के द्वारा ) दिखाया जाता है। उष्णता--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) गरमी, ताप। उल्लेखन-संज्ञा, पु. (सं० ) लिखना, संज्ञा, पु० उष्णत्व । चित्रण । वि० उल्लेखनीय (सं० ) लिखने उष्णिक-संज्ञा, पु० (सं०) सात वर्णों के योग्य, प्रसिद्ध, वर्णनीय । | का एक छंद। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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