________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२
अंशुनाभि
अकड़ अंशुनाभि-संज्ञा, यौ० स्त्री० (सं० अंशु+ स्वधर्म-त्याग, कल्मष, अघ, अपराध, नाभि ) वह बिंदु जहाँ सामानान्तर प्रकाश- | दुष्कृत । किरणें तिरछी और एकत्रित होकर मिलती अंहस्पात-संज्ञा, पु० (सं० ) क्षयमास । हों।
अंहडी-संज्ञा, स्त्री. (?) एक लता, अंशुमान-संज्ञा. यौ० पु० (सं० अंशु+मान) । बाकिला। सूर्य, चंद्र, अयोध्या का एक सूर्यवंशीय प्रक-संज्ञा पु० (सं०) पाप, दुःख, पीड़ा। राजा जो सगर नृप के पौत्र और असमंजस अकउया ( अकौवा) संज्ञा पु० (दे०) के पुत्र थे, यही कपिल मुनि के आश्रम से __ अर्क, मदार, अकवन । सगर का यज्ञाश्व अपने ६० हजार चाचाओं प्रकंटक-वि० (सं० अ---कंटक ) बिना के भस्म हो जाने पर लाये थे और यज्ञ काँटे का, निर्विघ्न, बेखटके, वाधा-रहित, पूरा कराया था, साथ ही गरुड़ जी से | शत्रुहीन, अविरोधी, बेरोक-टोक, मिरुपाधि । पितृव्यों के उद्धार का उपाय जाना था। अकंपन-वि० (सं०, अ+ कंपन) कंपन( हरिवंश पु० वनपर्व ) ।
रहित, दृढ़, स्थिर, एकरावस, वि० अपित अंशुमाली-संज्ञा, पु० यौ० (सं० अंशु+ अकंप्य । माली) अंशुनों या किरणों की माला रखने अका-- वि० (सं० अ-कच-पाल)-बिना वाला, सूय, चंद्र, अग्नि, दीपक, देवता | बालों का, संज्ञा, प० केतु नामक ग्रह । आदि।
अच्छ - वि० (सं० अ-+कच्छ या कक्षश्रम-संज्ञा, पु० (दे०) अंश, भाग, “वाम धोती) नग्न, नंगा, व्यभिचारी, लम्पट, जैन अंस लसत चाप" "कबहुँक बैठि अंसु भुज साधु, जिन्हें निग्रंथ भी कहते हैं। परस्त्रीधरि के" सूर।
गामी। अंसल-वि० (सं०) बलवान, पराक्रमी ।। अकछ-वि० (दे०) अकच्छ । असु-संज्ञा, पु० (सं० अंशु ) अंशु, किर- श्रकट-वि० (हिं०) जो काटा न जा सके णादि । श्रासू-" सुमिरि सुमिरि गरजत _(सं० अकाट्य)। जल-छाँड़त अंसु सलिल के धारे।" अकटक-क्रि० वि० (हिं०) विस्मय की दृष्टि * सुधा (अँसुवा) संज्ञा, पु० दे०) आँसू, | से देखना। (सं० प्रश्र ) “ रहिमन अँसुवा बाहरे, बिथा अकाट्य- वि० (सं० अ + काट्य) न कटने जनावत हीय ।"
वाला, दृढ़। अँसुधान-(बहुवचन)।
अकड़--संज्ञा, स्त्री० (सं० श्रा-भली भाँति + अँसुवाना-अ० क्रि० (हिं आँसू ) अश्रु- कट्ट-कड़ा होना) ऐंठ, तनाव, मरोड़, बन्ध, पूर्ण होना, आँसू से भर जाना।
घमंड, अहंकार, शेख़ी, ढिठाई, हठ, अड़, अहं-संज्ञा, पु० ( सं० अंहस् ) पाप, दुष्कर्म, | ज़िद, बाँकापन, लड़ना। अपराध, विघ्न, वाधा, दुःख, व्याकुलता। मु० अकड़ दिग्बाना--- ऐंठ, घमंड, स० उ० पु. एक ब० (सं० ) मैं। शेखी दिखाना, रोब, धमकी। अकड़ अहँडा-संज्ञा, पु. (दे० ) तौलने का एक | रखना- हठ करना, घमंड रखना। अकड़ बाट ।
निकालना-घमंड, शेख़ी, ऐंठ दूर करना । अंहनि-अंहनी-संज्ञा, स्त्री० (सं० अंह-+-ति) अकड़ जाना- लड़ना । अकड़ में -दान, त्याग, पीड़ा।
श्राना- हठ में श्राना, घमण्ड में आना, अंहसू-संज्ञा पु. (सं०, अंह-+प्रस् ) पाप, अकड़मकड़-ऐंठ से चाल, गर्व ।
For Private and Personal Use Only