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अकड़ना
प्रकर अकड़ना--प्र० क्रि० (सं० आ-अच्छी तरह | अकद-संज्ञा, पु० (सं०) प्रतिज्ञा, वचन, +कड-कड़ापन ) सूख कर सिकुड़ना, टेढ़ा | वादा। होना, कड़ा पड़जाना, ऐंठना, मरोड़ना, | अकदबंदी-संज्ञा, स्त्री० ( हिं० ) प्रतिज्ञाठिठुरना, सुन्न होना, शरीर को तनाना, पत्र, इकरारनामा। शेखी करना, घमंड करना, ढिठाई, हठ, | *कधक संज्ञा, पु. ( हिं० धक ) आशंका, ज़िद करना, अड़जाना, चिटकना, गुस्सा | श्रागा-पीछा, भय, डर, सोच-विचार। दिखाना, रोब या धमकी दिखाना, संज्ञा | अकनना-क्रि० स० (सं० आकर्णन ) कान अकड़, अकड़ाव अकड़पन ।
लगाकर सुनना, आहट लेना, उनाना (दे०) अकड़बाई-संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० कडु- अकना- अ० क्रि० (सं० पाकुल ) ऊबना, कड़ापन+वायु ) ऐंठन, देह की नसों का घबड़ाना। पीड़ा के साथ खिंचना या तनना। अकनि वि० (सं० आकर्य) सुनकरअकड़बाज़-वि० (हि० अकड़बाज़-फा०)
"तुएँग नचावहि कुँवर, अकनि मृदंग शेखीबाज़, घमंडी।
निसान, रामा० नगर सोर अकनत सुनत अकड़बाज़ी-संज्ञा, स्रो० (हि० अकड़+फा०
अति रुचि उपजावत " सूबे । बाज़ी) ऐंठ, शेखी, घमंड, ।
अकपट-संज्ञा, पु० (सं० अ+कपट) कपटअकड़ाव-संज्ञा, पु० (हि. अकड़ ) ऐंठन,
हीन, सरल, सीधा, छलहीन, अकपटता खिंचाव।
-संज्ञा भा० स्त्री०-सरलता। अकड़न-वि० ( दे० ) अकड़बाज, अकड़
अकबक - संज्ञा, स्त्री. (अनु० दे० अक+
बक ) निरर्थक वाक्य, व्यर्थ बकना, अनाप-(प्रान्ती० ) अकड़ा--संज्ञा, पु. ( हि० ) रोग विशेष,
शनाप, अटाँय शटाँय, अंड-बंड, असंबद्ध खिंचाव, तनाव, ऐंठन ।
प्रलाप, धड़क, खटका, छक्का-पंजा, चतुराई
वि० (सं० अवाक् ) भौचक्का, निस्तब्ध । *अकत-वि० (सं० अक्षत) समूचा,
अकबकाना-अ० क्रि० (सं० अवाक् ) पूरा, क्रि० वि० सरासर, बिलकुल ।
चकित होना, भौचक्का रह जाना, घबराना। *अकत्थ-वि० (दे०) अकथ ।
(संज्ञा भा०) अकबकी अकबकाहट । अकश-वि. ( सं० अ+कथ) न कहने ! अकवरी-- संज्ञा, स्त्री० (सं० अ+कबरी योग्य, कथन-शक्ति से परे या बाहर, --बालों का गुच्छा) बालों से रहित, जो न कहा जा सके, अनिर्वचनीय, (फा०) अकबर की, एक प्रकार की मिठाई, अवर्णनीय ।
लकड़ी पर एक प्रकार की नक्काशी । अकथनाय - वि० (सं० ) अवर्णनीय, | अकबाल--संज्ञा, पु० दे० ( फा० इकबाल) अनिर्वचनीय ।
प्रताप, भाग्य, स्वीकार । अकथ्य-वि० (सं०) न कहा जाने योग्य, अकर-वि० (सं० ) न करने योग्य, कठिन अकथनीय।
" कर-अकर दुमाहे पग--." रत्नाकर । अकायतव्य-संज्ञा, पु० (सं०) अवक्तव्य । (अ-कर) बिना हाथ का, हाथ-रहित, प्रकथा-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) कुकथा, मंद बिना कर या महसूल का, आकर, कथा, अपभाषा।
खानअकथित-वि० (सं० अ+कथ+ इत ) न "हिम कर सोहै तेरे जसके प्रकर कहा हुआ । (स्त्री०) अकाथता ।
| सो" भू०
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