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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्फाल ३१८ उथल-पुथल अनट ) कूदना, लांघना, ऊपर फाँदना। वि० उत्सादित-वि० ( सं० ) विनाशित, उत्प्लवनीय। निर्मलीकृत, छिन्न-भिन्न किया हुआ । वि. उत्फाल—संज्ञा, पु. ( सं० ) लाँघना, उत्सादनीय। कूदना, फाँदना । संज्ञा, पु० (सं० ) उत्फा- उत्सारक-संज्ञा, पु. (सं०) द्वारपाल, लन । वि० उत्फालनीय, वि० उत्कालित। चोबदार। उत्फुल्ल-वि० (सं०) विकसित, खिला उत्सारण-संज्ञा, पु. (सं० उत्+स+ हुआ, फूला हुआ, आनन्दित, प्रफुल्लित, अनट ) दूरीकरण, दूसरे स्थान को भेजना। उत्तान, चित्त । | उत्साह—संज्ञा, पु. ( सं० उत् + सह + उत्संग-संज्ञा, पु० (सं० उत्+संज+अल्) । घञ् ) उमंग, उछाह, जोश, फैसला, हिम्मत, गोद, क्रोड, अंक, मध्य भाग, बीच, उपर | साहस की उमंग, वीर रस का स्थायी भाव । का भाग, अँकोर (दे०)। वि० निर्लिप्त, वि० उत्साहित-कृतोत्साह, उमंगित । विरक्त। उत्साही-वि० (सं० उत् + सह-1-णिन् ) उत्सन्न-वि० (सं० उत्+ सद+क्त ) हत, उत्पाह-युक्त, हौसले वाला, उमंगी, साहसी, नष्ट, उत्थित, उत्पतित । उतसाहिल (दे०)। उत्सर्ग-संज्ञा, पु० (सं० उत् + सृज् + अल) उत्सुक-वि० (सं० उत् + सु +कन् ) त्याग, छोड़ना, दान, विसर्जन, न्यौछावर, । उत्कंठित, अत्यन्त इच्छुक, चित-चाही बात समाप्ति। संज्ञा, पु० (सं० ) औत्सवें । वि० में विलम्ब होना न सह कर तदुद्योग में तत्पर । उत्सर्गी, उत्सर्म्य । उत्सुकता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) आकुलता उत्सर्जन-संज्ञा, पु. (सं० उत्+सृज+ इच्छा, उत्कंठा, इष्ट बात की प्राप्ति में विलम्ब अनट ) त्याग, छोड़ना, दान, उत्सर्ग, वितरण, होना, न सह कर तत्प्राप्ति के लिये सद्यः वैदिक कर्म विशेष जो एक बार पौष में और तत्पर होना, एक प्रकार का संचारीभाव । एक बार श्रावण में होता है। संज्ञा, भा० औत्सुक्य । उत्सर्जित-वि० (सं.) व्यक्त, वितरित, | उत्सूर-संज्ञा, पु० (सं०) संध्याकाल, शाम। दत्त । वि. उत्सजेनीय, उत्सृष्ट। उत्सृष्ठ - वि० (सं०) त्यागा हुश्रा, परित्यक्त । उत्सर्पण -संज्ञा, पु० (सं० ) ऊपर चढ़ना, उत्सेध-संज्ञा, पु. ( सं० ) बढ़ती, उन्नति, चढ़ाव, उन्लंघन, लाँघना। ऊँचाई, सूजना, वि० (सं० ) श्रेष्ठ, ऊँचा। उत्सर्पिणी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) काल की उथपना --- स० कि० दे० (सं० उत्थापन ) वह गति या अवस्था जिसमें रूप, रस, गंध, | उठाना, उखाड़ना, नष्ट करना । स्पर्श इन चारों को क्रम क्रम से वृद्धि होती | उथलना-प्र० क्रि० दे० ( सं० उत् + स्थल ) है (जैन)। डगमगाना, डाँवाडोल होना, चलायमान उत्सव--संज्ञा, पु० (सं० उत्+सु+अल् ) | होना, उलटना, उलट-पुलट होना, पानी उछाह, ऊछौ, उच्छव (दे० ) मंगल कार्य, का उथला या कम होना, तले ऊपर करना, धूम-धाम, प्रमोद-विधान, मंगल-समय, औंधाना, उलट देना, उलधना (दे०)। त्यौहार, पर्व, आनन्द, विहार, यज्ञ, पूजा, स० क्रि० नीचे-ऊपर करना, इधर-उधर करना। श्रानन्द-प्रकाश । उथल-पुथल-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० उथलना) उत्सादन-संज्ञा, पु० (सं० उत्+सद् + उलट-पुलट, विपर्यय, क्रम-भंग, इधर का णिच् + अनट् ) उच्छेदकरण, विनाश, छिन्न- उधर, गड़बड़ी, हलचल । वि. उलटा-पलटा, भिन्न करना। । अंड का बंड, गड़बड़, व्यतिक्रम । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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