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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ उथला उदन्धान मु०-उथल-पुथल होना ( मचना ) पर कितने हाथ की दूरी पर जल है यह गड़बड़ी होना। जानने की विद्या। उथला-वि० दे० (सं० उत् + स्थल ) कम उदगार*-संज्ञा, पु० (दे०) उद्गार (सं०) गहरा, छिछला, उछल (दे०)। उबाल, वमन, आधिक्य, मन में रक्खी हुई उदंत-वि० दे० (सं० अ+दंत) जिसके दाँत बात को एक बारगी प्रगट करना । न जमें हों, अदंत, दाँतों से रहित (पशुओं उदगारना*-स० क्रि० दे० (स० उद्गार ) के लिये )। संज्ञा, पु० दे०-वृत्तान्त, विवरण, बाहर निकालना, बाहर फेंकना, उभाड़ना, "तब उदंत छाला लिखि दीन्हा"-प० ।। उत्तेजित करना, भड़काना, डकार लेना, उद-उप० (सं० ) एक उपसर्ग जो शब्दों कै करना, “ज्यौं कछु भच्छ किये उदगाके पूर्व पाकर उनके अर्थों में विशेषता रत"-सुन्द० ।। पैदा करता है। इसके अर्थ होते हैं:- | उदगारी-वि० ( दे० ) बाहर निकालने १--ऊपर-( उद्गमन ), २-अति वाला, वमन करने वाला, मन की बातों का क्रमण-उत्तीर्ण, ३--उत्कर्ष-उद्बोधन, प्रगट करने वाला। ४–प्रावल्य-उद्वेग, ५-प्राधान्य उदग्ग*-वि० दे० (सं० उदग्र ) ऊंचा, उद्देश्य, ६-अभाव--उत्पथ, ७-प्रगट उन्नत, उग्र, उद्धत, प्रचड । -उच्चारण, दोष-उन्मार्ग । उदघटना-स० कि० दे० (सं० उद्घटन) उदउ-संज्ञा, पु० दे० ( सं० उदय ) सूर्यादि प्रगट होना, उदय होना, निकलना। ग्रहों का प्रगट होना, निकलना, उदय ।। उदघाटना*-स० कि० दे० (सं० उद्घाटन) उदै (दे०)। प्रकट करना, प्रकाशित करना, खोलना । उदक-संज्ञा, पु. ( सं० ) जल, पानी, उदघाटी-स० वि० सा० भू० स्त्री० (दे०) खोली, प्रकटी, प्रकाशित की। संज्ञा, स्त्री० या. सलिल । उदक-क्रिया-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) मरे (दे० ) उदयाचल पर्वत की घाटी। " तव हुए मनुष्य को लक्ष्य करके जल देना, जल- । भुज-बल-महिमा उदघाटी"-रामा० तर्पण की क्रिया, तिलांजलि, “नष्ट पुण्यो- उदथ - संज्ञा, पु० दे० (सं० उद्गीथ) सूर्य, दक-क्रिया"-गीता। सूरज, - "होत बिसराम जहाँ इन्दु श्री उदकना -अ० कि० (दे० ) उछलना, - उदथ के "-भू०।। कूदना। उदधि-संज्ञा, पु. (सं.) समुद्र, सागर, उदक-परीक्षा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) ! घड़ा, मेव । " उदधि रहै मरजाद मैं, बहैं शपथ देने की एक क्रिया विशेष, जिसमें उमड़ि नद-नीर"-वृंद०।। शपथ करने वाले को अपनी सत्यता के उदधि-मेखला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्रमाणित करने के लिये पानी में डूबना __ पृथ्वी, भूमि । पड़ता था, अब केवल गंगा जैसी पवित्र उदधि-सुत-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) सागर नदियों के जल को हाथ में लेना ही पड़ता है। से उत्पन्न वस्तु, चंद्रमा, अमृत, शंख, उदकाद्रि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) हिमालय धन्वन्तरि, ऐरावत, आदि, कमल, कल्पवृक्ष, पर्वत। धनुष । संज्ञा, स्त्री. उदधि-सुता-श्री उदगरना-अ० कि० दे० (सं० उद् गरण ) ( लघमी) रंभा, कामधेनु, मणि ( कौस्तुभ ) निकलना, प्रकट होना, बाहर होना, उभड़ना, वारुणी, सीप । प्रकाशित होना। उदन्वान-संज्ञा पु० (सं० ) समुद्र, सागर, उद्गर्गल-संज्ञा, पु. (सं० ) किसी स्थान ! पयोधि । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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