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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईपत्कर २६४ उँगली ईषत्कर-वि० (सं० ) अत्यल्प, किंचित। । ईसरगोल-संज्ञा, पु० (दे० ) ईसब गोल । यौ० ईषत्पांडु-धूसर वर्ण । ईषद्रक्त-कुछ। ईसवी-वि० (फा० ) ईसा से सम्बन्ध लाल । रखने वाला । यौ० ईसवी सन्-ईसा ईषत्स्पष्ट-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वर्णो ___ मसीह के जन्म-काल से चला हुआ संवत्, के उच्चारण में एक प्रकार का आभ्यंतर अंग्रेज़ी वर्ष या संवत । प्रयत्न जिसमें जिह्वा, तालु, मूर्धा, और दंत ईसा-संज्ञा, पु. (अ.) ईसाई धर्म के को और दाँत अोष्ठ को कम छूते हैं, य, र, प्रवर्तक ईसा मसीह । ल, व, ये वर्ण ईषत्स्पष्ट माने गये हैं। ईसाई--वि० ( फ़ा ) ईसा का अनुयायी, यौ० ईषदहास-किचित् हाम मुसकान। ईसा को मानने वाला, ईसा के बताये धर्म ईषट-वि० (सं०) ईषत्, कम, थोड़ा। का अनयायी। ईषन्-क्रि० स० दे० ( सं० इक्षण ) । देखना, ईक्षण । ईमान-संज्ञा, पु० (दे० ) ईशान (सं० )। ईषना-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० एषण ) । ईसुर--संज्ञा, पु० दे० (सं० ईश्वर ) प्रवल इच्छा। । ईश्वर, प्रभु । वि० ईसुरी। ईषु-संज्ञा, पु० दे० ( सं० इषु ) वाण। ईहा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) चेष्टा, उद्योग, " नस्यो हर्ष द्वौ ईपु बर्से बिनासी"-के। इच्छा, लोभ, वांछा, यत्न, उपाय । ईस*-संज्ञा, पु० दे० (सं० ईश) ईश्वर, ईहामृग-संज्ञा, पु. ( सं० चौ० ) रूपक का प्रभु । ईसु (दे०)। एक भेद, जिसमें चार अंक होते हैं, कुत्त ईसन*-संज्ञा, पु० दे० (सं. ईशान ) के समान छोटा धूसर वर्ण का एक जन्तु, ईशान कोण । मृग, तृष्णामृग, ( कुसुम-शिखर-विजयईसबगोल-संज्ञा, पु. ( दे० ) एक प्रकार नामक संस्कृत-रूपक इहामृग है)। की औषध । । ईहित--वि० (सं०) ईप्सित, वाँछित, ईसर*-संज्ञा, पु० दे० (सं० ऐश्वर्य ) कृतोद्योग । ऐश्वर्य । | ईहावृक-संज्ञा, पु० (सं० ) लकड़बग्घा । उ-हिन्दी की वर्ण-माला का पाँचवाँ अक्षर रूप में प्रश्न, अवज्ञा, क्रोध, स्वीकृति जिसका उच्चारण-स्थान अोष्ट है। आदि को सूचित करने के लिये प्रयुक्त होता " उपूपध्मानीयानामोष्टौ" पा है, का सूक्ष्मरूप है। उ-संज्ञा, पु० (सं० ) शिव, ब्रह्मा, प्रजा- उंगल-संज्ञा, पु० (दे० ) अंगुल ( हिं० ) पति । अव्य० ( सं० ) संबोधन-सूचक आँगुर-(दे० )। शब्द, रोष-सूचक शब्द, इसका उपयोग उँगली-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अंगुलि) हथेअनुकम्पा, नियोग, पाद-पूरण, प्रश्न और लियों के छोरों से निकले हुये पाँच अवयव, स्वीकृति में होता है। सर्व० ( दे० ) वह ।। जो चीज़ों के पकड़ने का काम करते हैं अव्य० दे०) हि, हू या हु का सूक्ष्म रूप) और जिनके छोरों पर स्पर्श-ज्ञान की शक्ति भी, जैसे--रामउ =राम भी,तउतौभी। अधिक होती है, अँगुली, अंगुरी, आँगुरी उँ-अव्य (दे०) प्रायः अव्यक्त शब्द के (दे० )। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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