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प्राहत
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श्राहृत-वि० (सं०) छीना या लूटा हुआ पाहार्य-वि० (सं० ) ग्रहण किया हुआ, अपहृत, हरण किया हुआ।
बनावटी, खाने के योग्य, पकड़ा हुआ, पाहरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० आहनन) कल्पित। लोहारों और सोनारों की निहाई । संज्ञा, पु० (सं० ) चार प्रकार के अनुभावों आहर्तव्य-वि० (सं० ) ग्रहणीय, ले लेने,
में से चौथा, नायक और नायिका का लायक ।
परस्पर एक दूसरे का वेष बनाना, नेपथ्य, प्राहर्ता-वि० ( सं० पा+ह+क्त )
भूषणादि के द्वारा निर्मित्त, नाटकोक्ति में श्रानयन या उपार्जन करने वाला, ले लेने
व्यंजक विशेष, अंग-संस्कार। वाला, छीनने वाला।
आहार्य शोभा-संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ०) प्राहव-संज्ञा, पु० (सं० ा+हू+अल् ) | कृत्रिम या बनावटी सुन्दरता, भूषणादि के रण, युद्ध, यज्ञ, याग।
द्वारा सजाई हुई सुन्दरता। आहवन-संज्ञा, पु. (सं०) यज्ञ करना, पाहार्याभिनय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) होंम करना।
बिना बोले और कुछ चेष्टादि किये हुए पाहवतीय-वि० सं० यज को केवल रूप और वेष द्वारा नाटक का योग्य, कर्म-कांड की तीन अग्नियों में से अभिनय करना। एक, यज्ञाग्नि।
श्राहाव-संज्ञा, पु० ( सं० पा+हा+घञ् ) ग्राहां-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० माह्वान ) हाँक, | छुद्र जलाशय, चहबच्चा, युद्धाद्वान, दुहाई, घोषणा, पुकार, बुलावा ।
श्रामंत्रण । अव्य-नहीं, हां, ( स्वीकारार्थ में भी)। । श्राहि--म० क्रि० दे० (सं० प्रस ) वर्तमान पाहा-प्रव्य दे० (सं० अहह ) श्राश्चर्य,
कालिक रूप " आसना" से, है, श्राही हर्षादि सूचक शब्द, खेद या आक्षेपार्थक |
अहै ( दे०)। शब्द ।
पाहित-वि० (सं० आ+धा-+क्त ) धन्य धन्य, साधु साधु, वाह वाह ।
रक्खा हुआ, स्थापित, धरोहर या गिरों "भै आहा पदमावति चली"-प०।।
रक्खा हुआ, न्यस्त, अर्पित। प्राहार-संज्ञा, पु० (मान-ह+घञ् )
संज्ञा, पु० (सं० ) पंद्रह प्रकार के दोषों भोजन, खाना, खाने की वस्तु ।
में से एक, जो अपने स्वामी से इकट्ठा धन
लेकर सेवा करे और उसे पाटता जाय, आहारक-संज्ञा, पु० ( सं० ) श्राहरणकारी,
गिरवी रक्खा हुया माल, न्यास, धरोहर । संग्राहक।
अाहितुण्डिक-संज्ञा, पु० (सं० अहि+ पाहार-विहार-संज्ञा, पु० यौ० (सं० )
तुण्ड+ष्णिक् ) व्यालग्राही, साँप पकड़ने खाना-पीना, सोना आदि शारीरिक
वाला, सँपेरा। परिचर्या, रहन-सहन । "मिथ्याहार-विहाराभ्याँ दोषोह्यामाशया
प्राहिताग्नि-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० )
साग्निक, अग्निहोत्री। श्रितः "-मा० नि।
आहिस्ता-कि० वि० ( फा०) धीरे से, प्राहारी-वि० (सं० आहारिन् ) खाने- | धीरे धीरे, शनैः शनैः, चुपचाप । वाला, भक्षक, जैसे मांसाहारी (बुरे अर्थ | संज्ञा, स्त्री० श्राहिस्तगी।। में ) शाकाहारी ( अच्छे अर्थ में)। श्राहक-संज्ञा, पु. (सं.) मृत्तिकावत् स्त्री० पाहारिणी पाहारि (दे०)। । नगर के राजा भोज के वंशज अभिजित
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