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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राहत - श्राहृत-वि० (सं०) छीना या लूटा हुआ पाहार्य-वि० (सं० ) ग्रहण किया हुआ, अपहृत, हरण किया हुआ। बनावटी, खाने के योग्य, पकड़ा हुआ, पाहरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० आहनन) कल्पित। लोहारों और सोनारों की निहाई । संज्ञा, पु० (सं० ) चार प्रकार के अनुभावों आहर्तव्य-वि० (सं० ) ग्रहणीय, ले लेने, में से चौथा, नायक और नायिका का लायक । परस्पर एक दूसरे का वेष बनाना, नेपथ्य, प्राहर्ता-वि० ( सं० पा+ह+क्त ) भूषणादि के द्वारा निर्मित्त, नाटकोक्ति में श्रानयन या उपार्जन करने वाला, ले लेने व्यंजक विशेष, अंग-संस्कार। वाला, छीनने वाला। आहार्य शोभा-संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ०) प्राहव-संज्ञा, पु० (सं० ा+हू+अल् ) | कृत्रिम या बनावटी सुन्दरता, भूषणादि के रण, युद्ध, यज्ञ, याग। द्वारा सजाई हुई सुन्दरता। आहवन-संज्ञा, पु. (सं०) यज्ञ करना, पाहार्याभिनय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) होंम करना। बिना बोले और कुछ चेष्टादि किये हुए पाहवतीय-वि० सं० यज को केवल रूप और वेष द्वारा नाटक का योग्य, कर्म-कांड की तीन अग्नियों में से अभिनय करना। एक, यज्ञाग्नि। श्राहाव-संज्ञा, पु० ( सं० पा+हा+घञ् ) ग्राहां-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० माह्वान ) हाँक, | छुद्र जलाशय, चहबच्चा, युद्धाद्वान, दुहाई, घोषणा, पुकार, बुलावा । श्रामंत्रण । अव्य-नहीं, हां, ( स्वीकारार्थ में भी)। । श्राहि--म० क्रि० दे० (सं० प्रस ) वर्तमान पाहा-प्रव्य दे० (सं० अहह ) श्राश्चर्य, कालिक रूप " आसना" से, है, श्राही हर्षादि सूचक शब्द, खेद या आक्षेपार्थक | अहै ( दे०)। शब्द । पाहित-वि० (सं० आ+धा-+क्त ) धन्य धन्य, साधु साधु, वाह वाह । रक्खा हुआ, स्थापित, धरोहर या गिरों "भै आहा पदमावति चली"-प०।। रक्खा हुआ, न्यस्त, अर्पित। प्राहार-संज्ञा, पु० (मान-ह+घञ् ) संज्ञा, पु० (सं० ) पंद्रह प्रकार के दोषों भोजन, खाना, खाने की वस्तु । में से एक, जो अपने स्वामी से इकट्ठा धन लेकर सेवा करे और उसे पाटता जाय, आहारक-संज्ञा, पु० ( सं० ) श्राहरणकारी, गिरवी रक्खा हुया माल, न्यास, धरोहर । संग्राहक। अाहितुण्डिक-संज्ञा, पु० (सं० अहि+ पाहार-विहार-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) तुण्ड+ष्णिक् ) व्यालग्राही, साँप पकड़ने खाना-पीना, सोना आदि शारीरिक वाला, सँपेरा। परिचर्या, रहन-सहन । "मिथ्याहार-विहाराभ्याँ दोषोह्यामाशया प्राहिताग्नि-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) साग्निक, अग्निहोत्री। श्रितः "-मा० नि। आहिस्ता-कि० वि० ( फा०) धीरे से, प्राहारी-वि० (सं० आहारिन् ) खाने- | धीरे धीरे, शनैः शनैः, चुपचाप । वाला, भक्षक, जैसे मांसाहारी (बुरे अर्थ | संज्ञा, स्त्री० श्राहिस्तगी।। में ) शाकाहारी ( अच्छे अर्थ में)। श्राहक-संज्ञा, पु. (सं.) मृत्तिकावत् स्त्री० पाहारिणी पाहारि (दे०)। । नगर के राजा भोज के वंशज अभिजित For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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